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Uttarakhand Election Commission : उत्तराखंड पंचायत चुनाव 2025 में बड़ा खुलासा – क्या चुनाव आयोग सरकार के दबाव में है?

अहम बातें एक नजर में –

  • नेता प्रतिपक्ष यशपाल आर्य ने राज्य निर्वाचन आयोग पर गंभीर आरोप लगाए.
  • आयोग निष्पक्ष चुनाव कराने में विफल, सरकारी दबाव में काम कर रहा है.
  • चुनावी प्रक्रिया में अवरोध उत्पन्न करने का आरोप लगाया.
  • प्रत्याशियों की आपराधिक पृष्ठभूमि.
  • परिसंपत्तियां व देनदारियां.
  • शैक्षिक योग्यता – सब सार्वजनिक की जाएं.

Uttarakhand Election Commission : उत्तराखंड में 2025 के पंचायत चुनावों को लेकर बड़ा राजनीतिक विवाद सामने आया है. नेता प्रतिपक्ष यशपाल आर्य ने राज्य निर्वाचन आयोग पर गंभीर आरोप लगाए हैं. उन्होंने कहा कि आयोग का आचरण, निर्णय और कार्यशैली राज्य में निष्पक्ष और पारदर्शी चुनावों के लिए खतरा बनती जा रही है. यशपाल आर्य ने आरोप लगाते हुए कहा कि आयोग सरकार के दबाव में काम कर रहा है और उसके अधिकारी चुनावी प्रक्रिया में बार-बार अवरोध पैदा कर रहे हैं, साथ ही आर्य ने आयोग पर निष्पक्ष चुनाव कराने के लिए पहले से बनाए गए निर्णयों को भी लागू नहीं करने का आरोप लगाया है.


पुराने आदेशों की अवहेलना?

यशपाल आर्य ने साल 2003 का उल्लेख करते हुए कहा कि जब राज्य गठन के बाद तत्कालीन मुख्यमंत्री नारायण दत्त तिवारी की सरकार ने पंचायत चुनावों को पारदर्शी और निष्पक्ष बनाने के लिए अहम कदम उठाया था. 24 फरवरी 2003 को राज्य निर्वाचन आयोग के तत्कालीन आयुक्त दुर्गेश जोशी द्वारा सभी जिलाधिकारियों और जिला निर्वाचन अधिकारियों को एक आदेश भेजा गया था. इस आदेश का उद्देश्य था कि प्रत्येक प्रत्याशी के नामांकन पत्र के साथ प्रस्तुत की गई जानकारी और शपथ पत्र को जनता के लिए सार्वजनिक किया जाए, ताकि मतदाता सही निर्णय ले सकें.

आदेश में साफ लिखा गया था कि प्रत्याशी की आपराधिक पृष्ठभूमि, परिसंपत्तियों, देनदारियों और शैक्षिक योग्यता की जानकारी उनके नामांकन पत्र के साथ नोटिस बोर्ड पर प्रदर्शित की जाए. इससे ग्रामीण मतदाता भी अपने प्रतिनिधि को बेहतर समझ सकें और पारदर्शिता बनी रहे.


आयोग पर अनदेखी का आरोप

आर्य ने कहा कि इतने स्पष्ट और पुराने आदेश के बावजूद आज तक किसी भी जिले के निर्वाचन अधिकारी ने इन सूचनाओं को न तो कार्यालय के सूचना पट पर लगाया और न ही वेबसाइट पर अपलोड किया है. यह न सिर्फ आयोग की गंभीर लापरवाही है, बल्कि लोकतांत्रिक प्रक्रिया के साथ अन्याय है.

उन्होंने यह भी कहा कि कई जागरूक नागरिकों ने इस संबंध में राज्य निर्वाचन आयोग को लिखित शिकायतें भी भेजी हैं, लेकिन उन पर कोई ठोस कार्रवाई नहीं हुई. चुनाव के दौरान ऐसी लापरवाही पंचायती लोकतंत्र की जड़ों को कमजोर करती है.


क्या चहेते प्रत्याशियों को दिया जा रहा है लाभ?

यशपाल आर्य ने शंका व्यक्त की कि जानबूझकर कुछ “चहेते” प्रत्याशियों की गलत या अधूरी जानकारी को छुपाया जा रहा है, ताकि उन्हें चुनाव में फायदा मिल सके. यह मतदाता के अधिकारों का सीधा हनन है, क्योंकि वे बिना जरूरी जानकारी के निर्णय लेने को मजबूर हो रहे हैं.


2025 की गाइडबुक में भी आदेश शामिल, फिर भी पालन नहीं

हांलाकि चौंकाने वाली बात यह है कि आयोग ने 2025 के पंचायत चुनाव के लिए जो दिशा-निर्देश पुस्तिका जारी की है, उसमें भी इस आदेश को शामिल किया गया है. गाइडबुक के पृष्ठ संख्या 300 से 303 तक इस आदेश का स्पष्ट उल्लेख है, लेकिन इसके बावजूद जिले के किसी भी निर्वाचन अधिकारी ने इसका पालन नहीं किया.


अवहेलना करने वालों पर हो तत्काल कार्रवाई – यशपाल आर्य

इतना ही नहीं नेता प्रतिपक्ष ने मांग की है कि प्रत्येक प्रत्याशी की जानकारी को नोटिस बोर्ड और वेबसाइट पर अतिशीघ्र प्रकाशित किया जाए. साथ ही, जो अधिकारी इस आदेश की अवहेलना कर रहे हैं, उन पर नियम अनुसार कार्रवाई की जाए और भविष्य में निर्वाचन से जुड़े कार्यों से वंचित किया जाए.


चुनावी पारदर्शिता पर सवाल, लोकतंत्र को खतरा

उत्तराखंड के आगामी पंचायत चुनावों से पहले जो सवाल राज्य निर्वाचन आयोग की पारदर्शिता और निष्पक्षता को लेकर उठे हैं, वे लोकतंत्र की जड़ों को झकझोरने वाले हैं. नेता प्रतिपक्ष यशपाल आर्य द्वारा उठाए गए बिंदु यह दर्शाते हैं कि यदि समय रहते आयोग ने सुधारात्मक कदम नहीं उठाए, तो चुनावी प्रक्रिया की विश्वसनीयता पर गहरा असर पड़ सकता है.  मतदाताओं को सही जानकारी देना सिर्फ कानूनी नहीं, नैतिक जिम्मेदारी भी है. ऐसे में यह बेहद जरूरी है कि प्रत्याशियों की सूचनाएं सार्वजनिक की जाएं और लापरवाही बरतने वाले अधिकारियों पर कड़ी कार्रवाई की जाए, ताकि उत्तराखंड में लोकतंत्र की पारदर्शिता और विश्वास को कायम रखा जा सके.


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