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Mirzapur में इस बार विंध्याचल में लगने वाला नवरात्रि मेला बनेगा श्रद्धालुओं के लिए खास

Mirzapur News: आदिशक्ति का परम धाम विन्ध्याचल केवल एक तीर्थ नहीं बल्कि सिद्धपीठ है। वर्ष में प्रति छह माह पर पड़ने वाले नवरात्रि में लगने वाले विशाल मेले में दूर दूर से भक्त माँ के दर्शन के लिए आते हैं | वासंतिक नवरात्रि भोर की मंगला आरती से आरम्भ हो गया। नवरात्रि में आदिशक्ति के नौ रूपों की आराधना की जाती है। नवरात्रि के पहले दिन श्रद्धालुओं ने पूरी आस्था के साथ आदिशक्ति माँ विंध्यवासिनी का दर्शन पूजन किया। माँ का दर्शन पूजन कर भक्त विभोर रहे।

ये है मान्यताएं

अनादिकाल से भक्तो के आस्था का केंद्र विन्ध्य पर्वत व पतित पावनी माँ भागीरथी के संगम तट पर श्रीयंत्र पर विराजमान माँ विंध्यवासिनी का प्रथम दिन शैलपुत्री के रूप में पूजन अर्चन किया जाता है । शैल का अर्थ पहाड़ होता है। कथाओं के अनुसार पार्वती पहाड़ो के राजा हिमालय की पुत्री थी। पर्वत राज हिमालय की पुत्री को शैलपुत्री भी कहा जाता है। उनके एक हाँथ में त्रिशूल और दूसरे हाँथ में कमल का फूल है। भारत के मानक समय पर बिंदु स्थल विराजमान माँ को बिंदुवासिनी भी कहा जाता है। प्रत्येक प्राणी को सदमार्ग पर प्रेरित वाली माँ शैलपुत्री सभी के लिए आराध्य है।

घर के ईशान कोंण में कलश स्थापना के साथ ही माता भक्त साधना में जुट गए है। नौ दिन माँ दुर्गा मन, वचन, कर्म सहित इस शरीर के नौ द्वार से माँ सभी भक्तों की मनोकामना को पूरा करती है। भक्त को जिस – जिस वस्तुओं की जरूरत होता है वह सभी माता रानी प्रदान करती है। माता के धाम में पहुंचे भक्त निराली छटा और दिव्य दर्शन पाकर विभोर रहे।

विद्वान आचार्य अनुपम महाराज ने बताया कि माता रानी का नवरात्रि में पूजन अर्चन करने से भक्तों की सारी मनोकामना पूर्ण होती हैं। समूचे ब्रम्हांड में आज के दिन साधना करने से साधक के मूलाधार चक्र का जागरण होता है। पूरे ब्रह्मांड में विंध्य क्षेत्र जैसा दूसरा क्षेत्र नहीं है ।

मिर्ज़ापुर से आशुतोष त्रिपाठी की रिपोर्ट

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