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Uttar Pradesh

मथुरा: गोकुल में मनाई गई छड़ीमार होली, जानें क्या है महत्व

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मथुरा: होली खेलने के लिए जो छड़ी तैयार की जाती हैं उन पर कपड़ा बांधा जाता है, ताकि भगवान के बाल स्वरूप को हुरियारिनो की छड़ी से कोई चोट ना लगे। बरसाना और नंदगांव में होली खेलने के लिए लाठियों को तेल पिलाया जाता है। हुरियारिन और हुरियारो को भी दूध दही मक्खन और काजू बादाम खिलाकर होली खेली के लिए तैयार किया जाता है।

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लेकिन गोकुल में छड़ी मार होली अपने आप में अलग महत्व रखती है। यहां भगवान के बाल स्वरूप के साथ होली खेली जाती है। इसीलिए छड़ी से कपड़ा बांधा जाता है, ताकि भगवान को किसी प्रकार की कोई चोट ना लगे। भगवान श्री कृष्ण का विग्रह डोली में सवार होकर नंद किले से निकली, जिसके आगे कृष्ण बलराम के स्वरूप होते हैं, गोकुल नगरी का भ्रमण करते हुए डोला मुरलीधर घाट पर आकर समाप्त होता है।

यहां पर दिव्य और भव्य छड़ीमार होली का होता है आयोजन

मथुरा, जिले में यूं तो हर जगह होली की धूम मची हुई है। वहीं भगवान बालकृष्ण की नगरी गोकुल में छड़ीमार होली खेली गई। जिसमें हुरियारिनों ने छड़ियां बरसाईं तो बालकृष्ण के स्वरूपों ने अपने डंडे से उनकी छड़ियां से बचाव किया।

विदित हो कि बरसाना और नंदगांव में लट्ठमार होली खेली जाती है, लेकिन गोकुल में भगवान का बाल स्वरुप होने के कारण होली छड़ी से खेली जाती है। भगवान श्रीकृष्ण का जन्म मथुरा में हुआ। उनका बचपन गोकुल बीता। यही कारण है कि यहां की होली पूरे ब्रज से अलग है।

भक्ति भाव से भक्त सबसे पहले बाल गोपाल को फूलों से सजी पालकी में बैठाकर नन्द भवन से मुरलीधर घाट ले जाते हैं। जहां भगवान बगीचे में भक्तों के साथ होली खेलते हैं।

 छड़ीमार होली के पहले चरण की शुरुआत हुई। गोकुल में यमुना किनारे स्थित नंद किले के नंद भवन में ठाकुर जी के समक्ष राजभोग रखा गया।

2 बजे भगवान श्री कृष्ण और बलराम होली खेलने के लिए मुरली घाट को निकले। बाल स्वरूप भगवान के डोला को लेकर सेवायत चल रहे थे। उनके आगे ढोल नगाड़े और शहनाई की धुन पर श्रद्धालु नाचते गाते आगे बढ़ रहे थे। मार्ग में जगह जगह फूलों की वर्षा हो रही थी और दोनों ओर खड़े भक्त अपने ठाकुरजी को नमन कर रहे थे। डोला के पीछे हाथों में हरे बांस की छड़ी लेकर गोपियां चल रही थीं। विभिन्न समुदायों की रसिया टोली गोकुल की कुंज गलियों में रसिया गायन करती हुई निकल रही थीं। नंद भवन से डोला मुरली घाट पहुंचा जहां भगवान के दर्शन के लिए पहले से ही श्रद्धालुओं का हुजूम मौजूद था। भजन कीर्तन, रसिया गायन के बीच छड़ी मार होली की शुरुआत हुई।

बता दें कि छड़ीमार होली गोकुल में ही खेली जाती है। भगवान कृष्ण और बलराम पांच वर्ष की आयु तक गोकुल में रहे थे। इसलिये उनके लाला को कहीं चोट न लग जाए इसलिए यहां छड़ी मार होली खेली जाती है। गोकुल में भगवान कृष्ण पलना में झूले हैं वही स्वरूप आज भी यहां झलकता है।

ये भी पढ़ें : राधा और कृष्ण के प्रेम का प्रतीक है लट्ठमार होली, ऐसे हुई इस परंपरा की शुरूआत

रिपोर्ट – Pravesh

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