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मुख्यमंत्री ममता बनर्जी का सियासी दांव, बंगाल में विधान परिषद के गठन का प्रस्ताव पारित

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नई दिल्ली : पश्चिम बंगाल की सीएम ममता बनर्जी ने बड़ा दांव खेला है। दरअसल, उत्तराखंड के सियासी उलटफेर के बाद लगातार सवाल उठ रहे थे कि अगर उपचुनाव नहीं हुए तो ममता कैसे विधानसभा की सदस्य बन पाएंगी। क्योंकि बंगाल में विधान परिषद नहीं है, वहां एक ही सदन यानी कि विधानसभा है।’ हालांकि, बंगाल में चुनाव नहीं होंगे ऐसा कोई कानूनी पेंच नहीं है। उत्तराखंड और बंगाल की स्थिति अलग-अलग है। उत्तराखंड में विधानसभा का कार्यकाल 1 साल से कम का शेष है। जबकि बंगाल में अभी हाल ही में चुनाव हुए हैं तो वहां 4 साल से ज्यादा का वक्त है।

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गौरतलब है कि जनप्रतिनिधि अधिनियम 1951 की धारा 151 ए के तहत किसी भी खाली विधानसभा सीट का चुनाव 6 महीने के अंदर काराना होता है। इसकी जिम्मेदारी चुनाव आयोग की होती है। लेकिन अगर विधानसभा का कार्यकाल एक साल से कम का बचा हो तो चुनाव आयोग स्वतंत्र होता है कि वह उपचुनाव कराए या नहीं कराए। उक्त प्रावधानों का हवाला देते हुए उत्तराखंड की पूर्व सीएम तीरथ सिंह रावत ने मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दिया थाा।

तीरथ ने कहा था कि वह नहीं चाहते कि राज्य में संवैधानिक संकट उत्पन्न हो इस लिए वह इस्तीफा दे रहे हैं। तीरथ के इस बयान पर अटकलें लगाई जाने लगीं कि उत्तराखंड में संवैधानिक संकट तो बहाना है बंगाल पर निशाना है। क्योंकि बंगाल की सीएम ममता विधानसभा सदस्य नहीं हैं। ऐसे में कहा जा रहा है कि केंद्र में बीजेपी की सरकार है। इसलिए चुनाव आयोग केंद्र इशारे पर बंगाल में कोरोना के वजह से चुनाव नहीं कराएगा। लिहाजा ममता को मुख्यमंत्री पद गवांना पड़ेगा। क्योंकि वह विधानसभा की सदस्य़ नहीं है। इन्हीं चर्चाओं के बीच ममता ने बड़ा दांव खेल दिया है।

बता दें कि पश्चिम बंगाल विधानसभा ने राज्य विधान परिषद के गठन के प्रस्ताव को मंजूरी दे दी। 18 मई को तीसरी बार पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री की शपथ लेने के बाद मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने राज्य विधानसभा के उच्च सदन विधान परिषद बनाने के कैबिनेट के फैसले को मंजूरी दी थी। ममता बनर्जी ने घोषणा की थी कि जिन बुद्धिजीवि लोगों और दिग्गज नेताओं को विधानसभा चुनाव के लिए नामांकित नहीं किया गया था, उन्हें विधान परिषद का सदस्य बनाया जाएगा। सीएम ने 2011 के विधानसभा चुनावों के बाद नंदीग्राम और सिंगूर में उनके अभियान का हिस्सा रहने वालों को विधान परिषद में भेजने का वादा किया था। 

मीडिया में आ रही खबरों के अनुसार, मौजूदा वित्त मंत्री अमित मित्रा, पूर्णेंदु बोस जैसे पार्टी के कई सीनियर नेताओं को विधानसभा में शामिल नहीं किया जा सकता है, इन्हें विधान परिषद में भेजने की तैयारी चल रही है। इसे देखते हुए एक विधान परिषद स्थापित करने का निर्णय लिया गया है।

उल्लेखनीय है कि देश में 6 राज्यों में विधान परिषद है। इनमें बिहार, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र और कर्नाटक शामिल है। पश्चिम बंगाल में 294 विधानसभा सीटें हैं। एक विधान परिषद में सदस्यों की संख्या विधानसभा के सदस्यों से एक तिहाई से अधिक नहीं हो सकती है, लिहाजा बंगाल में विधान परिषद में 98 सदस्य हो सकते हैं। 

नियमानुसार विधान परिषद गठित करने के लिए राज्य सरकार को पहले विधानसभा में बिल पारित करना होगा। सदस्यों में से एक तिहाई सदस्य विधायकों द्वारा चुने जाएंगे, जबकि अन्य वन थर्ड सदस्य नगर निकायों, जिला परिषद और अन्य स्थानीय निकायों द्वारा चुने जाते हैं। सरकार द्वारा परिषद में सदस्यों को मनोनीत करने का भी प्रावधान होगा।

राज्यसभा की तरह विधान परिषद में भी एक सभापति और एक उपाध्यक्ष होते हैं। इन सभी का कार्यकाल 6 वर्ष का होगा। बंगाल में पहले विधान परिषद थी, लेकिन 1969 में समाप्त कर दी गई थी। भाजपा ने सरकार के इस प्रस्ताव पर कोई प्रतिक्रिया नहीं दी है, लेकिन वामदलों ने ममता के इस फैसले का विरोध करते हुए कहा कि ममता का यह कदम राज्य के हित के लिए नहीं है। 

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