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बिहार राज्य प्रदूषण नियंत्रण परिषद की कार्यशाला में जलवायु परिवर्तन के प्रभावों पर मंथन

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Meeting on climate change: बिहार राज्य प्रदूषण नियंत्रण परिषद द्वारा शुक्रवार को एक जागरूकता कार्यशाला का आयोजन  किया गया। इसका उद्देश्य Council on Energy, Environment and Water तथा WRI India के संयुक्त तत्वावधान में यूनाईटेड नेशन्स फेमवर्क कन्वेंशन ऑन क्लाईमेंट चेंज के अन्तर्गत प्रतिवर्ष होने वाले पक्षों के सम्मेलन (Conference of Parties- COP) के संबंध में मंथन करना रहा।

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‘कम करना होगा ग्रीन हाऊस गैसों का उत्सर्जन’

कार्यक्रम का उद्घाटन करते हुए बिहार राज्य प्रदूषण नियंत्रण परिषद के अध्यक्ष डॉ. डी.के. शुक्ला ने बताया कि प्रत्येक वर्ष ‘कॉप सम्मेलन के जरिए हम जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को कम करने की दिशा में आगे बढ़ते हैं। गत कॉप-28 में भी इसी प्रकार से जलवायु परिवर्तन से होने वाले स्वास्थ्य पर प्रभावों को शामिल किया गया है। मानव स्वास्थ्य पर जलवायु परिवर्तन का पड़ने वाला प्रभाव भी एक चिंता का विषय है, जिसपर ध्यान देने की आवश्यकता है। धरती के बढ़ते हुए तापमान को रोकने के लिए ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन को कम करना अतिआवश्यक है, जिसका प्रयास सभी क्षेत्रों में किया जा रहा है।

‘पूरे विश्व को साथ मिलकर करना होगा कार्य’

कार्यक्रम में सभी प्रतिभागियों का स्वागत एवं विषय वस्तु से अवगत कराते हुए पर्षद् के वरीय वैज्ञानिक,  डॉ० नवीन कुमार ने बताया कि वर्ष 1992 में रिओ सम्मेलन के दौरान यूनाईटेड नेशन्स फ्रेमवर्क कन्वेनशन ऑन क्लाईमेंट चेंज की शुरूआत हुई। वर्ष 1994 से इसे लागू किया गया। इस कन्वेनशन के अंतर्गत सभी प्रतिभागी देशों ने यह तय किया कि बढ़ते वैश्विक तापमान एवं जलवायु परिवर्तन को रोकने हेतु पूरे विश्व को साथ मिलकर कार्य करने की आवश्यकता है।

कन्वेंशन में शामिल हैं 198 देश

उन्होंने कहा, सभी के द्वारा मानव जनित कारणों से ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन में कमी लाने की आवश्यकता है। जरूरी है कि इसके लिए एकजुट होकर प्रयास किया जाए। इसी उद्देश्य से सभी देशों, जो इस सम्मेलन में शामिल है, का एक Conference of Parties COP का आयोजन प्रतिवर्ष किया जाता है। अभी इस कन्वेंशन में सभी प्रमुख देशों समेत 198 देश शामिल हैं। उन्होंने ने कहा कि इस वैश्विक प्रयास में सभी नागरिकों का सहयोग अपेक्षित है।

‘वैश्विक तापमान दो डिग्री से ज्यादा न बढ़े’

काउन्सिल ऑन इनर्जी, इन्वायरमेंट एण्ड वाटर (CEEW) के विशेषज्ञ डॉ वैभव चर्तुवेदी ने बताया कि यदि वैश्विक तापमान को 2 डिग्री सेल्सियस से अधिक नहीं बढ़ने देना है तो पूरे विश्व के पास समेकित रूप से मात्र 1000 गीगा टन कार्बन डाईऑक्साइड उत्सर्जित किए जाने की सीमा सीमित है। पेरिस समझौते में लिये गये निर्णयानुसार पूरे विश्व ने वैश्विक तापमान को जहां तक संभव हो, 1.5 डिग्री सेंटीग्रेड से 2 डिग्री सेंटीग्रेड से अधिक वृद्धि नहीं होने का प्रयास रखने का लक्ष्य रखा गया है।

कॉप सम्मेलन की प्रमुख उपलब्धियां बताईं

उन्होंने बताया कि 1850 की तुलना में औद्योगिकरण एवं अन्य मानव जनित कारणों से उत्सर्जित ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन के कारण वैश्विक तापमान में 1.1 सेंटीग्रेड की वृद्धि देखी जा चुकी है। अतः आवश्यकता है कि सभी क्षेत्रों में ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन को कम से कम किया जाय। उन्होंने अबतक सम्पन्न हुए सभी 28 कॉप सम्मेलन की प्रमुख उपलब्धियां भी साझा कीं।

‘आर्थिक रूप से कमजोर पर पड़ता सबसे ज्यादा प्रभाव’

WRI India की कार्यकारी निदेशिका, उल्का केलकर ने गत वर्ष दुबई शहर में संपन्न कॉप के 28वें सम्मेलन में भाग लेने के दौरान वहां हो रहे विकास एवं सम्पन्नता को देखते हुए अपना अनुभव साझा किया। उन्होंने कहा कि मानव जाति किसी भी परिस्थिति को अपना अनुकूल ढालने की क्षमता रखता है। जलवायु परिवर्तन का सबसे ज्यादा प्रभाव आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग को प्रभावित करता है।

‘अपशिष्टों के पुर्नचक्रण से होगी लक्ष्य प्राप्ति’

उन्होंने कहा, बिहार राज्य ने जलवायु परिवर्तन के प्रभावों से निपटने के लिये न्यून कार्बन पद्धति विकसित करने हेतु अध्ययन की शुरूआत कर इस दिशा में एक अच्छी पहल की है। राज्य में जलवायु अनुकूल जीवन शैली को प्रोत्साहित कर, सहनयोग्य विकास, लोक परिवहन, नवीकरणीय उर्जा तथा विभिन्न प्रकार के अपशिष्टों के पुर्नचक्रण को बढ़ावा देकर लक्ष्य प्राप्ति की ओर अग्रसर हुआ जा सकता है।

‘बिहार जलवायु परिवर्तन के प्रति संवेदनशील’

परिषद के वैज्ञानिक सलाहकार श्री एस.एन जायसवाल ने धन्यवाद ज्ञापन करते हुए कहा कि बिहार राज्य जलवायु परिवर्तन के प्रभावों के प्रति संवेदनशील है, राज्य में जलवायु अनुकूल कृषि को प्रोत्साहित किया जा रहा है, जिसके दूरगामी सकारात्मक परिणाम अपेक्षित है।

रिपोर्टः सुजीत श्रीवास्तव, ब्यूरोचीफ, बिहार

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