मध्य प्रदेश की शांतिप्रिय राजनीतिक फिजा में कभी भी जातिवादी सियासत ने पैर नहीं पसारे और न ही जातियों के आधार पर राजनीति करने वाली पार्टियां पनप पाईं। यह पहला मौका है जब एट्रोसिटी एक्ट, पदोन्नति में आरक्षण और आदिवासी हित जैसे विषयों ने जातिवादी संगठन खड़े कर दिए है। ये संगठन इसी के दम पर चुनाव लड़ने का दम भी भर रहे हैं।
ये संगठन भाजपा और कांग्रेस, दोनों पर ही टिकट में भागीदारी करने के लिए भी दबाव बना रहे हैं। वैसे प्रदेश का अब तक का इतिहास देखा जाए तो जातिवादी राजनीति करने वाले दल बहुजन समाज पार्टी, गोंडवाना पार्टी और सवर्ण समाज पार्टी कभी भी सफल नहीं हो पाए पर इस चुनाव में परिदृश्य एकदम बदला हुआ नजर आ रहा है। भोपाल में अब तक करणी सेना, भीम आर्मी और जयस जैसे संगठनों ने भारी तादाद में लोगों को एकत्र कर शक्ति प्रदर्शन किया है।
अब तक सामान्य और ओबीसी वर्ग भारतीय जनता पार्टी के साथ रहा है। इस वर्ग के ज्यादातर वोट भाजपा को ही मिलते हैं, इसकी खास वजह है प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान, पूर्व सीएम उमा भारती ओबीसी बिरादरी से हैं। वहीं सामान्य वर्ग से केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह जैसे भाजपा के बड़े चेहरे हैं।
मप्र के चुनाव हमेशा सरकार के परफारमेंस और विकास पर केंद्रित रहे हैं पर इस बार कांग्रेस ने इसे जातियों और धर्म में बांटने की कोशिश की है। लेकिन जनता इन जातिवादी ताकतों को स्वीकार नहीं करेगी। आने वाले चुनाव में जातिवादी ताकतों की सक्रियता निश्चित ही पिछले चुनाव से ज्यादा दिख रही है, हमें पूरा भरोसा है कि मप्र की जनता इनके छिपे मंसूबों को अच्छी तरह जानती है और चुनाव में वह इन्हें सबक सिखाएगी।
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