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Jharkhand

झारखंड स्थापना दिवस: राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने बिरसा मुंडा को दी श्रद्धांजलि, CM सोरेन भी रहे मौजूद

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झारखंड को आज 22 साल पूरे हो चुकें हैं। स्थापना दिवस के इस खास मौके पर माननीया राष्ट्रपति श्रीमती द्रौपदी मुर्मू भी समेत माननीय राज्यपाल श्री रमेश बैस का मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने दोनों का फूलों का साथ स्वागत किया। इसके बाद बिरसा मुंडा की जयंती पर महामहिम राष्ट्रपति श्रीमती द्रौपदी मुर्मू ने उनकी मूर्ति पर पुष्प अर्पित किए और नमन करते हुए उनको श्रद्धांजलि दी।

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इस दौरान केंद्रीय मंत्री अर्जुन मुंडा, केंद्रीय शिक्षा राज्य मंत्री अन्नपूर्णा देवी और झारखंड की महिला, बाल विकास और समाज कल्याण मंत्री जोबा मांझी ने उलीहातू में भगवान बिरसा मुंडा की प्रतिमा पर माल्यार्पण कर श्रद्धांजलि दी। इस अवसर परराष्ट्रपति ने धरती आबा भगवान बिरसा मुंडा के वंशजों से मुलाकात की।

राष्ट्रपति बनने के बाद द्रौपदी मुर्मू पहली बार झारखंड आईं हैं। राज्यपाल के तौर पर उनका इस राज्य से गहरा रिश्ता रहा है। राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को इस राज्य की पहली महिला राज्यपाल होने का गौरव प्राप्त है। द्रौपदी मुर्मू का झारखंड में छह साल एक माह अठारह दिनों का कार्यकाल रहा। वे इस दौरान विवादों से बेहद दूर रहीं। बतौर कुलाधिपति द्रौपदी मुर्मू ने अपने कार्यकाल में झारखंड के विश्वविद्यालयों के लिए चांसलर पोर्टल शुरू कराया।

विश्वविद्यालयों के कॉलेजों के लिए एक साथ छात्रों का ऑनलाइन नामांकन शुरू कराया। विश्वविद्यालयों में यह नया और पहला प्रयास था। राज्य राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू के नाम ऐसे कई बेहतरीन फैसले दर्ज हैं। झारखंड आने का मुख्य उद्देश्य है भगवान बिरसा मुंडा को श्रद्धांजलि अर्पित करना। इस यात्रा के दौरान राष्ट्रपति के साथ राज्य के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन भी मौजूद रहे।

बिरसा मुंडा का जन्म 15 नवंबर 1875 के दशक में छोटे किसान के गरीब परिवार में हुआ था। बिरसा 19वीं सदी के प्रमुख आदिवासी जननायक थे। उनके नेतृत्‍व में मुंडा आदिवासियों ने उलगुलान आंदोलन को अंजाम दिया। बिरसा को मुंडा समाज के लोग भगवान के रूप में पूजते हैं। उन्होंने अंग्रेजों के खिलाफ आंदोलन किया। लगान माफ करने को लेकर मुंडा समाज को एकजुट किया। अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ आवाज उठाने के कारण उन्हें गिरफ्तार किया गया था। बिरसा ने अपनी अंतिम सांसें 9 जून 1900 को रांची कारागार में लीं थी।

अपने जीवन काल में ही एक महापुरुष का दर्जा पाया। उन्हें उस इलाके के लोग ‘धरती बाबा’ के नाम से पुकारा और पूजा जाता था। उनके प्रभाव की वृद्धि के बाद पूरे इलाके के मुंडाओं में संगठित होने की चेतना जागी। आज भी बिहार, ओडिशा, झारखंड, छत्तीसगढ़ और पश्चिम बंगाल के आदिवासी इलाकों में बिरसा मुण्डा को भगवान की तरह पूजा जाता है।

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