Dengue Precautions: डेंगू सिर्फ एक सामान्य बुखार नहीं है। कई मामलों में यह जानलेवा भी हो सकता है लेकिन यदि समय से इसकी जांच कराएं और सही उपचार मिले तो इस बीमारी के घातक लक्षणों से बचा जा सकता है।
Dengue Precautions: डेंगू एडीज मच्छर के काटने से होता है। कई लोगों को यह भ्रम है कि संक्रमित व्यक्ति के संपर्क में आने से यह बीमारी फैलती है तो यह बात सही नहीं है। दरअसल जब एडीज मच्छर आपको काटता है तो आपकी रक्त कोशिकाओं में इस बीमारी का वायरस आपके खून के साथ प्रवाहित होने लगता है और आप इस रोग से संक्रमित हो जाते हैं।
यदि आपके आसपास सिर्फ दो चम्मच साफ पानी भी जमा है तो इसमें डेंगू का मच्छर पनप सकता है। कूलर के पानी, गमलों के नीचे और पक्षियों के लिए रखे पानी में या जहां भी जल जमाव हो वहां इस मच्छर के पनपने का खतरा रहता है। खासकर साफ पानी में इस मच्छर के पनपने की संभावना ज्यादा होती है। यदि हम जल जमाव न होने दें तो इस बीमारी से काफी हद तक बचा जा सकता है।
फिजीशियन और चाइल्ड स्पेशलिस्ट डा. मनोज माहेश्वरी के अनुसार डेंगू का वायरस चार प्रकार का होता है। डेन-1, डेन-2, डेन-3, डेन-4। इंटरनेशनल जरनल लान्सेंट में प्रकाशित स्टडी के अनुसार डेन-2 कम प्रभावी है। यदि आप डेंगू के किसी एक वायरस से पीड़ित होकर रिकवर हो जाते हैं। तो उसके प्रति आपकी प्रतिरक्षा दीर्घकालिक हो जाती है लेकिन अन्य वायरस से प्रभावित होने का खतरा बना रहता है। अभी तक इस बीमारी की कोई भी वैक्सीन नहीं बनाई जा सकी है। हालांकि इसके लिए रिसर्च लगातार जारी है।
डेंगू का मच्छर सूर्योदय के दो घंटे बाद से सूर्यास्त के दो घंटे पहले तक ज्यादा सक्रिय रहता है। रात के समय यह अधिकांशत निष्क्रिय हो जाता है। घर के कोनों आफिस में फाइलों के बीच में मेज के नीचे इसके होने की ज्यादा संभावना है। इसकी उड़ान ज्यादा ऊंची नहीं होती।
डेंगू से पीड़ित व्यक्ति में बुखार तीन से 14 दिन तक रह सकता है वहीं वायरस शरीर में दो से सात दिन तक रहता है। इस बीमारी के लक्षण बुखार खत्म होने बाद भी देखने को मिलते हैं।
यदि किसी पेशेंट की प्लेटलेट्स 10 हजार रह जाएं, उसे इंटरनल ब्लीडिंग होने लगे, उसके नाक, मसूढ़ों, पेशाव के रास्ते या मल त्याग के समय खून आए तो प्लेटलेट्स चढ़ाना जरूरी हो जाता है। इस बीमारी में रक्त की कमी से शरीर के कई अंग निष्क्रिय होने लगते हैं। लीवर का बढ़ना भी इस बीमारी का ही एक लक्षण है।
कभी-कभी मरीज में इसके हल्के लक्षण पाए जाते हैं। खासकर जिन्हें पहली बार यह बीमारी होती है उनमें लक्षण कम या देर में विकसित होते हैं, लेकिन अनदेखी करने से यह समस्या गंभीर रूप ले सकती है।
इस बीमारी में हमें ऑयली चीजों और देर में पचने वाले खाने से परहेज करना जरूरी है। क्योंकि इस दौरान पाचनतंत्र ठीक प्रकार से कार्य नहीं कर पाता। बेहतर है कि इस दौरान लिक्विड डाइट ज्यादा ली जाए। इसमें विटामिन सी और एंडीऑक्सीडेंट भरपूर मात्रा में हों।
नारियल पानी
हर्बल टी
इलक्ट्रोलाइट
पपीते के पत्ते का रस
बकरी का दूध
पानी
ताजा सब्जियों का सूप
कीवी
एवोकेडो
संतरा,नींबू, अंगूर
बेरीज़
हरा सलाद, पत्तेदार सब्जियां
पालक
हल्दी, अदरक, लहसुन
ऑलिव ऑयल, तेलीय मछली
विटामिन सी से युक्त सभी फल
अन्ननास, पपीता
पिसे हुए ड्राइफ्रूट्स
ब्रोकली, चुकंदर
आयरन से भरपूर फल, सब्जियां
गर्म पेय पदार्थ
डिस्क्लेमरः यह एक सामान्य जानकारी है। हम किसी प्रकार की दवा या इलाज का दावा नहीं करते। बीमारी से सबंधित लक्षण होने पर डॉक्टर से परामर्श लें।
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