रायपुर: मैरिटल रेप का मामला लंबे समय से भारतीय समाज के बीच चर्चा का विषय रहा है। कुछ लोग इसे सही मानते है तो कुछ इसकी परिभाषा के आधार को ही खारिज कर देते है। फिर भी समय-समय ऐसे मामले आते रहते हैं, जो इस मामले को बहस का मुद्दा बनाते रहते हैं।
ऐसा ही एक मामला छत्तीसगढ़ हाई-कोर्ट से सामने आया है, जहां पीड़िता का आरोप है कि उसके ससुराल वाले उससे दहेज की मांग करते थे। उसके मना करने पर उसके पति द्वारा जबरदस्ती अप्राकृतिक यौन संबंध बनाया जाता था। लेकिन गुरुवार को छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट ने आरोपी को वैवाहिक बलात्कार के आरोप से बरी कर दिया।
कोर्ट ने कहा कि पति-पत्नी के बीच बनाए जाने वाले संबंध बलात्कार की श्रेणी में नही आएंगे, भले ही संबंध जबरन क्यों न बनाए गए हों। हांलाकि कोर्ट ने आरोपी शख्स के खिलाफ अप्राकृतिक यौन संबंध की धारा 377 को बरकरार रखा है।
जस्टिस एनके चंद्रवंशी ने सुनवाई के दौरान कहा, ‘किसी पुरुष द्वारा अपनी ही पत्नी के साथ मैथुन या यौन क्रिया करना, जिसकी आयु अठारह वर्ष से कम न हो, उसे बलात्कार नहीं कहा जा सकता है। इस मामले में शिकायतकर्ता आवेदक संख्या 1 की कानूनी रूप से विवाहित पत्नी है, इसलिए आवेदक संख्या 1/पति द्वारा उसके साथ यौन संबंध या कोई भी यौन कृत्य बलात्कार का अपराध नहीं माना जाएगा, भले ही वह बलपूर्वक या उसकी इच्छा के विरुद्ध हो।
ऐसे ही एक मामले में नाबालिग लड़की ने मुरादाबाद के भोजपुर थाने में केस दर्ज कराया था। लड़की का आरोप था कि उसका पति(वयस्क) खुशाबे अली उसके साथ दहेज के लिए मारपीट, आपराधिक धमकी और जबरन यौन संबंध बनाता था। इस मामले की सुनवाई करते हुए इलाहाबाद उच्च न्यायालय के न्यायधीश मोहम्मद असलम ने अप्राकृतिक सेक्स और दहेज के लिए प्रताड़ित किए जाने पर कहा था कि 15 वर्ष से अधिक उम्र की नाबालिग ‘पत्नी’ के साथ यौन संबंध ‘बलात्कार’ नहीं माना जाएगा। इसके बाद हाईकोर्ट ने आरोपित खुशाबे अली को इस आधार पर बेल दे दी थी।
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