
शैलपुत्री: आज नवरात्र का पहला दिन है और इस दिन घटस्थापन के बाद मां दुर्गा के प्रथम स्वरूप शैलपुत्री का पूजन, अर्चन और स्तवन किया जाता है। शैल का अर्थ है हिमालय और पर्वतराज हिमालय के यहां जन्म लेने के कारण इन्हें शैलपुत्री कहा जाता है।
मंत्र
ऊं ऐं ह्नीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे ॐ शैलपुत्री देव्यै नम:
मां शैलपुत्री की पूजा अराधना विधि
इस दिन सुबह उठकर स्नान करने के बाद स्वच्छ वस्त्र पहनें। मंदिर को फिर से अच्छे से साफ करें। पूजा से पहले शुभ मुहूर्त में अखंड ज्योति जलाएं और घट स्थापित करें। अब पूर्व की ओर मुख कर चौकी पर माता का चित्र रखकर लाल वस्त्र बिछाएं। पहले गणपति का आह्वान करें, फिर मां शैलपुत्री का आह्वान करें, हाथ में लाल पुष्प रखकर। मां की पूजा में लाल फूलों का उपयोग करें। मां को अक्षत, सिंदूर, धूप, पुष्प और गंध दें। माता का नामजप करें। दीपक जलाएं। मां की पूजा करें। शंखनाद करो। घंटी बजाओ। मां को धन्यवाद दें।
गाय के घी से बनाया गया भोजन शैलपुत्री को खाना चाहिए। गाय के घी से बनाया गया सामान आम तौर पर मां दुर्गा को बहुत अच्छा लगता है। गाय के घी से बनाया गया बादाम का हलवा मां शैलपुत्री को खिलाया जा सकता है।
माता शैलपुत्री की कथा
प्रजापति दक्ष ने एक बार एक बड़ा यज्ञ किया। इस यज्ञ में उन्होंने सभी देवताओं को बुलाया, लेकिन शिव जी को नहीं बुलाया। सती को वहाँ जाने की इच्छा हुई जब उन्होंने सुना कि उनके पिता एक बड़े यज्ञ का अनुष्ठान कर रहे हैं।उन्होंने अपनी यह इच्छा शिव को बताई। बातों को विचार करने के बाद, शिव ने कहा उन्होंने हमें नहीं बुलाया इसलिए हमारा बीन-बुलाए वहां जाना सही नहीं होगा। लेकिन माता पार्वती की इच्छा कम नहीं हुई, वो अपने परिवार से मिलना चाहती थी। इसलिए शिव ने उन्हें वहां जाने की अनुमती दे दी।
सती के वहां पहुंचने पर किसी ने उनका आदर सत्कार नहीं किया। बहनों ने उनका बीन बुलाए आने की वजह से मजाक बनाया और पिता ने उनके पति शिव के प्रति अपमानजनक शब्द प्रयोग किए। केवल उनकी माता ने ही उन्हें स्नेह किया।अपने पति के लिए ऐसी अपमानजनक शब्द सुनकर बर्दाश्त नहीं कर सकी और वह क्रोध में आकर अग्नि में अपने शरीर को भस्म कर लिया।
सती ने योगाग्नि द्वारा अपने शरीर को भस्म कर अगले जन्म में शैलराज हिमालय की पुत्री के रूप में जन्म लिया। इस बार वे ‘शैलपुत्री’ नाम से विख्यात हुर्ईं। पार्वती, हैमवती भी उन्हीं के नाम हैं।