इस बार महालक्ष्मी व्रत 17 सितंबर, शनिवार को किया जाएगा। महालक्ष्मी व्रत से कई पौराणिक कथाएं भी जुड़ी हैं। इस व्रत में हाथी पर विराजित मां लक्ष्मी की पूजा की जाती है। इस दिन को कन्या संक्रांति से भी जाना जाता है। कहते हैं इस दिन व्रत रखने से मां लक्ष्मी हर मनोकामनाएं पूरी करती हैं घर में सुख-समृद्धि बनी रहती है। इसलिए इसे हाथी अष्टमी या हाथी पूजन भी कहा जाता है। कई स्थानों पर सिर्फ हाथी की ही पूजा भी की जाती है।
महालक्ष्मी शुभ मुहूर्त
हिंदू पंचांग के अनुसार, महालक्ष्मी व्रत आश्विन मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को किया जाता है। 17 सितंबर, शनिवार को अष्टमी तिथि की शुरुआत दोपहर 02 बजकर 33 मिनट पर होगी और 18 सितंबर यानी अगले दिन रविवार को शाम 04 बजकर 33 मिनट तक रहेगी।
महालक्ष्मी पूजन विधि
व्रत के दिन सुबह जल्दी उठकर स्नान करने के बाद व्रत-पूजा का संकल्प करें। व्रत का संकल्प लेने के बाद किसी साफ जगह पर देवी लक्ष्मी की प्रतिमा या चित्र की स्थापना करें। ध्यान रखें कि इस दिन गजलक्ष्मी यानी हाथी पर बैठी देवी लक्ष्मी की पूजा करनी होती है। इसके बाद देवी लक्ष्मी के सामने घी का दीपक जलाएं और तिलक लगाकर पूजा शुरू करें। सबसे पहले माता को हार-फूल अर्पित करें। इसके बाद चंदन, अबीर, गुलाल, दूर्वा, लाल सूत, सुपारी, नारियल चढ़ाएं। पूजन के दौरान नए सूत 16-16 की संख्या में 16 बार रखें। इसके बाद देवी लक्ष्मी के साथ-साथ हाथी की भी पूजा करें। कुछ स्थानों पर इस व्रत को हाथी पूजा के नाम से भी जाना जाता है। अंत में भोग लगाकर देवी की आरती करें।
एक गांव में एक गरीब ब्राह्मण रहता था। वह नियमित रूप से जगत के पालनहार विष्णु भगवान की आराधना करता था। उसकी पूजा-भक्ति से प्रसन्न होकर उसे भगवान श्री विष्णु ने दर्शन दिए और ब्राह्मण से वर मांगने के लिए कहा। तब ब्राह्मण ने लक्ष्मी जी का निवास अपने घर में होने की इच्छा जाहिर की। तब भगवान विष्णु ने लक्ष्मी जी की प्राप्ति का मार्ग बताया। उन्होंने बताया कि मंदिर के सामने एक स्त्री आती है, जो यहां आकर उपले थापती है, तुम उसे अपने घर आने का निमंत्रण देना। वही देवी लक्ष्मी हैं।
विष्णु जी ने ब्राह्मण से कहा, जब धन की देवी मां लक्ष्मी के तुम्हारे घर पधारेंगी तो तुम्हारा घर धन और धान्य से भर जायेगा। यह कहकर श्री विष्णु जी चले गए। अगले दिन वह सुबह ही वह मंदिर के सामने बैठ गया। लक्ष्मी जी उपले थापने के लिये आईं तो ब्राह्मण ने उनसे अपने घर आने का निवेदन किया। ब्राह्मण की बात सुनकर लक्ष्मी जी समझ गईं, कि यह सब विष्णु जी के कहने से हुआ है।
लक्ष्मी जी ने ब्राह्मण से कहा कि मैं चलूंगी तुम्हारे घर लेकिन इसके लिए पहले तुम्हें महालक्ष्मी व्रत करना होगा। 16 दिनों तक व्रत करने और 16वें दिन रात्रि को चंद्रमा को अर्घ्य देने से तुम्हारा मनोरथ पूरा होगा। ब्राह्मण ने देवी के कहे अनुसार व्रत और पूजन किया और देवी को उत्तर दिशा की ओर मुंह करके पुकारा। इसके बाद देवी लक्ष्मी ने अपना वचन पूरा किया। मान्यता है कि उसी दिन से इस व्रत की परंपरा शुरू हुई थी।
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