बिहार की राजनीति में अहम रोल रखने वाले नीतीश कुमार आज 8वीं बार मुख्यमंत्री का पदभार संभालेंगें। कई लोग उन्हें सुशासन बाबू तो कई लोग उन्हें दलबदलू कहते हैं। आज हम उनके इसी राजनीतिक सफर की बात करेंगे। आपको बताएंगे उनके राजनीतिक सफर की पूरी कहानी।
एक जवाना था जब लालू प्रसाद यादव और नीतीश कुमार बहुत ही खास मित्र हुआ करते थे।कुछ जानकार तो ये भी कहते हैं कि लालू की पार्टी और सरकार में कोई भी बड़ा राजनीतिक और प्रशासनिक फैसला लेने से पहले नीतीश लालू यादव से ही राय लेते थे। समय बीता और कुछ वर्षों के भीतर, कुछ राजनीतिक मुद्दों पर दोनों नेताओं में मतभेद होने लगे और उनके रिश्ते में खटास आ गई, जब लालू की इच्छा के विरुद्ध, 12 फरवरी, 1994 को गांधी मैदान में अपनी जाति के लोगों, यानी “कुर्मी चेतना महारली” में नीतीश कुमार शामिल हुए।
इस रैली को संबोधित करने के बाद नीतीश ने लालू की राजनीतिक परिधि से निकलकर नीतीश ने अपनी राजनीतिक लाइन पकड़ी और लालू के विकल्प के रूप में नया चेहरा बनने की कोशिश की लेकिन उनकी उम्मीदों पर तब पानी फिर गया जब उनकी नवगठित समता पार्टी 1995 के चुनावों में लड़ी और 310 सीटों में से सिर्फ सात सीटें जीतीं।
हालांकि, पार्टी की संभावनाएं 1996 के लोकसभा चुनावों में उज्ज्वल हुईं, जब भाजपा के साथ गठबंधन में, उसने अकेले बिहार में आठ सीटें जीतीं. 1996 में नीतीश ने बीजेपी के साथ जो गठबंधन किया, वह लगातार 17 साल तक चला। नीतीश वाजपेयी सरकार में रेल मंत्री बने और इस दौरान बीजेपी की मदद से तीन बार बिहार के सीएम बनने में भी सफल हुए।
साल 2013 में गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी को 2014 के लोकसभा चुनावों के लिए भाजपा का प्रचार प्रमुख बनाया गया, जिसके बाद JDU ने एनडीए का साथ छोड़ दिया, लेकिन 2014 के चुनावों में अकेले जाना नीतीश के लिए विनाशकारी साबित हुआ क्योंकि जद (यू) राज्य की 40 लोकसभा सीटों में से सिर्फ दो पर जीत हासिल कर सकी और साल 2009 के चुनाव में 20 सीटों के मुकाबले में फिर से JDU ने भाजपा से गठबंधन किया।
2015 के विधानसभा चुनाव में नीतीश कुमार ने राजद और कांग्रेस का दामन थामा था। आपको बता दें कि नीतीश जब भी अकेले गए हैं उन्हें हमेशा एक झटका लगा है। दूसरी ओर, मुख्यमंत्री बनने के सभी सात मौकों पर वह केवल सहयोगियों की मदद से ऐसा कर सके हैं। पांच बार भाजपा की मदद से, और दो बार अन्य राजनीतिक दलों की मदद से, 2015
में वह महागठबंधन के सीएम बने, लेकिन महागठबंधन भी दो साल से ज्यादा नहीं चल सका और सरकार गिराकर नीतीश ने फिर से भाजपा का दामन थाम लिया। 2022 में फिर से एक बार नीतीश कुमार ने बाजी पलट दी है।
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