Silkyara Tunnel Collapsed: 12 नवंबर को धरती का स्वर्ग कहे जाने वाले उत्तराखंड के सिलक्यारा में एक निर्माणाधीन टनल का हिस्सा गिर जाने से वहां काम कर रहे 41 मजदूरों की जिंदगी ख़तरे में आ गई. हादसे को आज 12 दिन बीत चुके हैं. लेकिन मजदूर अब भी टनल के अंदर ही फंसे हुए हैं.
जिस धीमी गति से मजदूरों को सुरक्षित बाहर निकालने का काम चल रहा है उससे लोगों में तो दुख और रौष है बल्कि अब मजदूर संगठनों ने भी सवाल खड़े करना शुरू कर दिए हैं.
देश के मजदूर संगठनों ने कहा है कि उत्तरकाशी के टनल में 41 लोगों के फंसने के वाकये से ये एक बार फिर सामने आ गया है कि सरकार मज़दूरों की सुरक्षा को लेकर ‘कितना गैरजिम्मेदाराना रवैया’ रखती है.
11 ट्रेड यूनियनों और सेक्टोरल फेडरेशनों के बयान में कहा गया है, “केंद्रीय ट्रेड यूनियनों और सेक्टोरल फेडरेशन/एसोसिएशन उत्तराकाशी का सिलक्यारा सुरंग ढहने में प्रशासन की विफलता पर दुख व्यक्त करता है.”
समाचार एजेंसी पीटीआई के अनुसार, कर्मचारी संगठनों का कहना है कि वर्कप्लेस पर सुरक्षा के मामले में क़ानून कितने कमज़ोर हैं इस घटना ने उसे उजागर कर दिया है. सिल्क्यारा टनल में जो हुआ है वो ऐसी तमाम घटनाओं में से एक है.
यूनियन का कहना है कि केंद्र की ओर से जो टीम पूरे ऑपरेशन की निगरानी के लिए भेजी गयी वो काफ़ी देरी से पहुंची.
बयान में कहा गया, “लंबी सुरंगों के निर्माण में एक बचाव टनल तैयार किया जाता है और ये टनल इमरजेंसी प्लान का हिस्सा होता है, ये ज़रूरी होता है. लेकिन सिल्क्यारा टनल बनाते समय इसकी कोई योजना ही नहीं की गयी.”
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