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राष्ट्रीय

PM ने किया जलियांवाला बाग परिसर का उद्घाटन, कहा- हर राष्ट्र का दायित्व होता है कि वो अपने इतिहास को संजो कर रखे

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अमृतसर: पीएम मोदी ने पुनर्निर्मित जलियांवाला बाग परिसर का उद्घाटन किया। हालांकि इसका उद्घाटन 13 अप्रैल को जलियांवाला बाग हत्याकांड के 102 साल पुरे होने पर किया जाना था लेकिन अप्रैल में कोरोना के त्रासदी की वजह से ऐसा नही हो पाया था।

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पीएम मोदी ने अपने भाषण में कहा, ‘मां भारती के उन संतानों को नमन जिनके सपने आज भी जलियांवाला बाग के दीवारों में अंकित गोलियों के निशाने में दिखते है, उन सभी को जिनके सपने को रौंद डाला गया उनको हम याद कर रहे हैं। 13 अप्रैल 1919 के वो 10 मिनट हमारे आजादी की लड़ाई की सत्यगाथा बन गए जिसके कारण आज हम आजादी के अमृत महोत्सव को मना पा रहे हैं। जलियांवाला स्मारक का आधुनिक रुप देश को मिलना एक प्रेरणा का अवसर है’।

प्रधानमंत्री ने आगे कहा कि ‘जलियांवाला स्मारक ने क्रांतिकारियों के योगदान को और जीवंत बना दिया। हर राष्ट्र का दायित्व होता है कि वो अपने इतिहास को संजो कर रखे। इतिहास में घटी घटनाएं हमें सिखाती भी हैं और आगे बढ़ने की प्रेरणा भी देती हैं। आने वाली पीढ़ियां विभाजन के दर्द को याद रखें इसलिए हमने विभाजन विभीषिका दिवस मनाने का फैसला किया है। गुरुवाणी हमें सिखाती है की सुख दूसरो की सेवा से ही आता है। कोरोना काल या अफगानिस्तान के संकट के दौरान हमने सबकी मदद की। देश को मजबूत करें और गर्व करें’।

क्या है जलियांवाला हत्याकांड

13 अप्रैल 1919 को बैसाखी का दिन था और कई स्वतंत्रता सेनानी अमृतसर के जलियांवाला बाग में शांतिपूर्ण तरीके से सभा कर रहे थे। ये सभा रौलट एक्ट के विरोध में हो रही थी। तभी जनरल डायर नाम के एक ब्रिटिश अफसर ने सभा में गोलियां चलवा दी, जिसके बाद ब्रिटिश सरकार के आधिकारिक आंकड़ो के अनुसार 388 लोगों की मौत हुई थी। जबकि अनाधिकारिक आंकड़ो के अनुसार 1000 से अधिक लोग मारे गए थे और 2000 से अधिक घायल हुए थे। कहते हैं भगत सिंह इस घटना से बेहद प्रभावित हुए थे, उन्होंने जलियांवाला बाग में खून से सनी मिट्टी को बोतल में भरकर रखा था और मिट्टी का तिलक कर अंग्रेजों को उखाड़ फेंकने की कसम खाई थी।

आजादी के आंदोलन पर अंकुश कसने के लिए रौलट एक्ट लागू किया गया था। इस कानून के अंतर्गत ब्रिटिश सरकार आंदोलन कर रहे लोगों को शक के आधार पर बिना वॉरण्ट के गिरफ़्तार कर सकती थी। कई स्वतंत्रता सेनानियों को काला पानी की सजा इस कानून के आधार पर दी जाती थी।

2013 में इंग्लैंड के प्रधानमंत्री डेविड कैमरॉन भी इस स्मारक पर आए थे। विजिटर्स बुक में उन्होंनें लिखा कि ब्रिटिश इतिहास की यह एक शर्मनाक घटना थी। कहा जाता है की भारत के कुछ नेताओं ने इंग्लैंड के सरकार से इस कृत्य के लिए माफी मांगने के लिए कहा था जिसके जवाब में इंग्लैंड ने बेहद निराशाजनक टिप्पणी की थी। उन्होंने कहा था कि अगर ऐसे माफी मांगने लग गए तो हमें सारी दुनिया से माफी मांगनी पड़ेगी क्योंकि हमने लगभग सारी दुनिया पर राज किया है।

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