नई दिल्ली: हर इंसान को किसी न किसी दिन उसके सद्कर्मों का फल जरूर मिलता है। उसके परिणाम दोगुने रूप में आपके पास लौट आते हैं। गीता में भी लिखा है,
‘कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन।“
जिसका अर्थ है, कर्तव्य करना ही हमारा अधिकार है, फल की इच्छा करना हमारे अधिकार में नहीं है।
साथ ही ये भी लिखा है कि,
”कर्मप्रधान विश्व रची राखा। जो जस करहीं सो तस फल चाखा।।“
जिसका अर्थ है विश्व में कर्म ही प्रधान है, जो जैसा कर्म करेगा वो वैसा ही फल पाएगा।
इसी प्रकार से गुजरात की एक नर्स को भी उनके सेवाभाव, संघर्षों और सद्कर्मों का फल मिला है। गुजरात में वडोदरा के सर सयाजीराव जनरल अस्पताल की नर्स भानुमति घीवला को फ्लोरेंस नाइटिंगेल अवार्ड से सम्मानित किए जाने का ऐलान किया गया है। उन्हें यह अवार्ड कोरोना काल और 2019 में बाढ़ के वक्त बिना थकान का अनुभव किए, अस्पताल में लगातार ड्यूटी देने के लिए दिया जा रहा है।
अस्पताल के स्त्री व बाल रोग डिपार्टमेंट में सेवा देने वाली नर्स भानुमति घीवला का कहना है कि ‘मुझे कैजुअल लीव लेना पसंद नहीं है।‘ घीवला ने कोविड-19 के दौरान कई गर्भवती महिलाओं की डिलीवरी कराई थी, साथ ही साथ नवजात बच्चों की देखभाल भी की थी।
इसके अलावा भी 2019 में आई बाढ़ के दौरान पानी भरे अस्पताल में भानुमति लगातार ड्यूटी पर आती रहीं और स्त्री रोग विभाग व बाल रोग वार्ड में सेवा देती रहीं। उनके इसी जज़बे और सेवाभाव के लिए उन्हें भारतीय नर्सिंग परिषद, स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय द्वारा फ्लोरेंस नाइटिंगेल अवार्ड से नवाजा जाएगा।
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