Arrhythmia: हम अक्सर शायराना अंदाज में दिल की धड़कन के लिए कई बातें कहते हैं। असल जिंदगी में जब ये धड़कन अनियंत्रित हो जाए तो जान पर बन आती है। ऐसे में इस धड़कन पर काबू जरूरी है। जब ये धड़कन बेकाबू हो जाए तो मेडिकल की भाषा में इसे एरिथमिया कहते हैं। एरिथमिया एक बीमारी का नाम है जो अधिकतर वृद्धजनों में देखने को मिलती है। हां लेकिन कुछ केस में यह उम्र के विभिन्न पड़ावों में भी देखी जा सकती है।
हमारे दिल की धड़कन सामान्य तौर पर 60 से 100 प्रति मिनट तक होती है। इसमें भी यह व्यायाम के समय 100 प्रति मिनट और नींद के समय 50 प्रति मिनट तक चली जाती है। जब यह अधिकांशत 100 प्रति मिनट से ऊपर या 60 प्रति मिनट से नीचे रहने लगे तो इसे Arrhythmia or Irregular Heartbeat कहते हैं।
सामान्य दिल की धड़कन को हम साइनस रिदम कहते हैं… लेकिन जब यह धड़कन जरूरत से ज्यादा बढ़ जाए तो इसे टेकी एरिथमिया… और गर काफी कम हो जाए तो इसे ब्रेडी एरिथमिया कहा जाता है।
चक्कर आना
सुधबुध खो देना
बेचैन रहना
बहुत अधिक पसीना आना
एरिथमिया के प्रमुख लक्षण हैं। हालांकि इसके अन्य कई और भी लक्षण हैं, जिसमें उल्टी आना, चेस्ट पेन भी शामिल है।
वैसे तो एरिथमिया वृद्धजनों में देखने को मिलता है। कई बार इसका कारण हार्ट ब्लाकेज भी हो सकता है, क्योंकि इस स्थिति में आपके ह्रदय के ऊपरी कक्ष और निचले कक्ष के बीच आने वाली इंपल्स का कंडक्शन ब्लॉक हो जाता है। वहीं थॉयरोटॉक्सिकोसिस भी एरिथमिया का एक कारण हो सकता है। यदि कोई बच्चा जन्म से ही चेनेलोपैथी से पीड़ित है तो उसे एरिथमिया का खतरा ज्यादा रहता है। कई बार कुछ दवाइयों का उपयोग भी इस बीमारी का कारण बन सकता है। जैसे…
एंटी एरिथमेटिक ड्रग्स
डाईगॉक्सिन
एंटी साईकोटिक दवाएं
गैस्ट्रोइंटेस्टिनल स्टिमुलांट्स, आदि।
इस बीमारी में सामान्य तौर पर मरीज की ईसीजी करके बीमारी को पहचाना जाता है। कई बार ईसीजी में संकेत स्पष्ट नहीं होते हैं। इसलिए जरूरत पड़ने पर डॉक्टर्स एक्सटर्नल लूप रिकॉर्डर या इंप्लांटबल रिकॉर्डर का प्रयोग भी करते हैं। हालांकि इसका डिसीजन डॉक्टर्स ही लेते हैं कि उन्हें किस पद्धति का प्रयोग करना है। इसके लिए और भी कई प्रकार के टेस्ट किए जा सकते हैं।
दवाओं के माध्यम से ही डॉक्टर्स इस बीमारी को नियंत्रित करते हैं। कई बार परिस्थिति के हिसाब से पेस मेकर इंप्लाटेंशन और एआईसीडी इंप्लाटेशन भी किया जाता है। वहीं उपचार के अन्य तरीके भी हो सकते हैं।
इस बीमारी में डाक्टरी सलाह से ही व्यायाम करना चाहिए। व्यायाम की शुरुआत धीमी गति से करनी चाहिए। अक्सर ऐसे मरीजों को हल्के-फुल्के व्यायाम जैसे
योग
प्राणायाम
ध्यान
आम एरोबिक्स एक्सरसाइज
चलना
साइकिलिंग
आदि की सलाह दी जाती है। मुख्यत ह्रदय जिससे ऑक्सीजन का बेहतर उपयोग कर पाए और रक्त परिसंचरण में सुधार हो, ऐसे व्यायाम इसमें लाभकारी हैं। थकान महसूस होने पर व्यायाम के बीच में ब्रेक भी लेना जरूरी है।
मरीज को इस बीमारी में
ओट्स
फल
रेशेदार हरी सब्जियां
साबुत अनाज
लेने चाहिए। चिकनाईयुक्त भोजन और जंक फूड से परहेज जरूरी है।
डिस्क्लेमरः यह सिर्फ एक सामान्य जानकारी है। हम किसी भी प्रकार की दवा या इलाज का दावा नहीं करते। बीमारी के लक्षण दिखने पर डॉक्टरी सलाह आवश्यक है।
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