New Delhi : श्रीराम मंदिर में रामलला की प्राण-प्रतिष्ठा को लेकर भक्ति-उत्साह की गंगा हर तरफ बह रही है। इसका सबसे ज्यादा श्रेय श्रीराम भक्तों और उनकी आस्था को जाता है। बीजेपी और इससे जुड़े संगठनों ने भी कड़ा संघर्ष किया।
हर वर्ष जब दिवाली के दौरान सड़कों और घरों को दीपक से जगमगाया जाता है, तो पूरे भारत में लोग भगवान श्रीराम की प्रतीकात्मक घर वापसी का जश्न मनाते हैं। यह एक मार्मिक क्षण है, जो 14 साल के वनवास के बाद उनकी अयोध्या वापसी और रावण पर उनकी जीत का प्रतीक होता है। लेकिन, हम उस उल्लास में भूल जाते थे कि रामलला 500 साल से अपने ही देश में अपने ही घर से बेदखल थे और सत्ता में बैठे लोग तुष्टिकरण की राजनीति में इतने अंधे थे कि उन्होंने अपने आराध्य को भी भुला दिया।
22 जनवरी, पिछले 500 सालों में देश के लिए सबसे महत्वपूर्ण क्षणों में से एक होगा। यह करोड़ों देशवासियों के जीवन का सबसे बड़ा क्षण होगा। हम सब गौरवशाली हैं कि आजादी के अमृतकाल में अपने जीवन में श्रीराम मंदिर बनता हुआ देख रहे हैं। यह पूरे विश्व की मानवता के कल्याण का महायज्ञ है। भगवान श्रीराम का जीवन, उनका चरित्र एवं उनकी शासन व्यवस्था पूरी दुनिया के लिए आदर्श है। तभी तो रहीम को भी श्रीराम प्रिय हैं, अंबेडकर को भी, गांधी को भी। ये अलग बात है कि घमंडिया गठबंधन के नेता को प्रभु श्रीराम से नफरत है।
किसने रोका था विपक्ष को श्रीराम मंदिर के निर्माण से? विपक्ष तो आजादी के 70 सालों तक केंद्र से लेकर राज्य तक सत्ता में था। क्यों उन्होंने भगवान श्रीराम को काल्पनिक बताया?
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