काबुल: अफगानिस्तान के पूर्व राष्ट्रपति अशरफ गनी यूएई में मौजूद हैं। यूएई के विदेश मंत्रालय ने बुधवार को ही बयान जारी कर कहा है कि उन्होंने अशरफ गनी और उनके परिवार को मानवीय आधार पर शरण दी है। अफगानिस्तान छोड़ने के सवाल पर गनी ने कहा कि वे देश नही छोड़ना चाहते थे मगर सुरक्षा सलाहकार के कहने पर उन्हें ऐसा करना पड़ा।
आगे उन्होंने कहा कि उनके राष्ट्रपति भवन से निकलते ही वहां कुछ लोग आए और वे लोग उन्हें ढूंढ़ने लगे। वे लोग अफगानिस्तान की राष्ट्रीय भाषा भी नही बोल रहे थे। अफगानिस्तान से पैसे लेकर भागने पर उन्होंने कहा, ‘ये आरोप झुठे हैं। जो लोग मुझे नही जानते वे ऐसी राय बनाने से बचें। मैनें कोई पैसे नही लिए हैं।’ उन्होंने आगे कहा कि तालिबान से बातचीत से कोई हल की उम्मीद नही थी इसलिए देश छोड़ना पड़ा। अगर मैं वहां होता तो इसका खामियाजा काबुल के लोगों को भुगतना पड़ता।
आपको बता दें कि अफगानिस्तान में अभी तक सत्ता का हस्तांतरण नही हुआ है। तालिबान ने कब्जे के बाद राष्ट्रपति का नाम घोषित नही किया है। इसी बीच अफगानिस्तान के उप-राष्ट्रपति अमरुल्लाह सालेह ने तालिबान से आमना-सामना करने की बात कर दी है। उन्होंने ट्विटर के हवाले से कहा है कि अशरफ गनी के देश छोड़ने के बाद कानून के अनुसार वो ही राष्ट्रपति पद के लिए बाध्य है।
सालेह का जन्म 15 अक्टूबर 1972 में अफगानिस्तान के पंजशीर प्रांत में हुआ था। वह ताजिक जातीय समूह से संबंध रखते हैं। बताया जाता है कि सालेह की एक बहन थी जिसे तालिबान के लड़ाकों ने मौत के घाट उतार दिया था। उसके बाद सालेह ने तालिबानियों के खिलाफ अपनी लड़ाई शुरु कर दी। सोवियत संघ के 1989 में अफगानिस्तान से जाने के बाद तालिबान अफगानिस्तान में अपनी पैठ बढ़ाता गया।
इसी दौर में तालिबान के खिलाफ अहमद शाह मसूद सरीखे नेता और फौजी अड़ गए। इस दरमियान ही सालेह ने भी फौज की ट्रेनिंग ली और शेर-ए-पंजशीर कहे जाने वाले अहमद शाह के साथ जुड़ गए।
1994 में तालिबान से लड़ाई के लिए उत्तरी अलाइंस बनने के बाद सालेह भी उसके मेंबर बन गए। साल 1997 में, सालेह को अहमद शाह मसूद द्वारा ताजिकिस्तान की राजधानी दुशांबे में अफगानिस्तान के दूतावास में अंतरराष्ट्रीय संपर्क कार्यालय का नेतृत्व करने के लिए नियुक्त किया था, जहां उन्होंने NGO के लिए एक समन्वयक के रूप में और विदेशी खुफिया एजेंसियों के साथ एक संपर्क भागीदार के रूप में कार्य किया।
सन् 2004 में इस्लामिक गणराज्य अफगानिस्तान के गठन के बाद तब के तत्कालीन राष्ट्रपति हामिद करजई द्वारा सालेह को राष्ट्रीय सुरक्षा निदेशालय के प्रमुख के रूप में नियुक्त किया गया था।
2010 में काबुल पीस कॉन्फ्रेंस में हमले के बाद सालेह अफगानिस्तान के जासूस प्रमुख के पद से बर्खास्त कर दिये गये थे। 2018 में राष्ट्रपति अशरफ गनी ने सालेह को अफगानिस्तान का गृह मंत्री बनाया। फिर 2019 में उन्हें उपराष्ट्रपति बनाया गया। साल 2019 से 2020 के बीच में उनके ऊपर 2 बार हमले हुए।
मीडिया रिपोर्टों के एक हमले के दौरान उनके भतीजे की मौत की मौत भी हो गयी। 2021 के साल में अमेरिका ने अफगानिस्तान से अपनी सेना को वापस बुलाने का फैसला किया। इसके बाद तालिबान ने अफगानिस्तान पर अपना कहर बरसाना शुरु कर दिया। अब मीडिया सूत्रों से खबर है कि अमरुल्लाह सालेह अहमद शाह मसूद के बेटे अहमद मसूद से तालिबान से लड़ने की रणनीति पर बात कर रहें हैं।
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