जादू विरासत में मिली थी मंच पर दिखाने के लिए। लेकिन हाथों की लकीरों में कुछ और ही लिखा था। लिखा था ये कि उनका जादू राजस्थान के वोटरों पर बार-बार चलेगा। वो रहनूमा-ए-राजस्थान बनेगा। एक बार नहीं, दो बार नहीं बल्कि तीसरी बार भी। हम बात कर रहें ‘जादूगर’ गहलोत यानी अशोक गहलोत।
इस समय राजस्थान में सत्ताधारी कांग्रेस के दो धड़ों में खींचतान के कारण सरकार पर संकट पैदा होता दिख रहा है। कांग्रेस कुर्सी को लेकर अशोक गहलोत और सचिन पायलट के बीच खींचतान किसी से छिपी नहीं है। ऐसे में राजस्थान के सियासी तूफान में कांग्रेस बुरी तरह फंसी दिख रही है।
खैर ये पहली बार नहीं जब राजस्थान में अशोक गहलोत और सचिन पायलट के बीच मुख्यमंत्री की कुर्सी को लेकर रस्साकशी हो रही है। दो साल पहले भी जून 2020 में भी सचिन पायलट और अशोक गहलोत सामने आ गए थे। तब सचिन पायलट ने गहलोत के खिलाफ खुलकर बगावत कर दी थी।
कांग्रेस आलाकमान सोनिया गांधी का मानना है की अशोक गहलोत को अध्यक्ष बनाकर कांग्रेस दो संकटों का समाधान कर सकती है। एक तो लगभग तीन साल से खाली पार्टी अध्यक्ष पद पर नेहरू-गांधी परिवार के बाहर का कोई व्यक्ति बैठेगा और ऐसा करके कांग्रेस परिवारवाद के आरोपों का जवाब दे देगी और दूसरा राजस्थान में गहलोत और सचिन पायलट गुट के बीच चल रही अंदरूनी राजनीति का समाधान हो जाएगा।
गहलोत अध्यक्ष बन पाएंगे या नहीं यह तो आने वाला समय ही बताएगा, लेकिन जानिए गहलोत के सियासी सफर के बारे में, कैसे वे इस पद के दावेदार बने। पूर्वोत्तर क्षेत्र में शरणार्थियों के बीच अच्छा काम कर रहे गहलोत से इंदिरा काफी प्रभावित थीं। इसलिए वो उन्हे राजनीति में लाई। बस तब से शुरू हुई गहलोत का सियासी सफर आज तक जारी है।
राजस्थान की नीली नगरी कहे जाने वाले जोधपुर में 3 मई 1951 को अशोक गहलोत का जन्म हुआ था। उनके पिता स्वर्गीय लक्ष्मण सिंह गहलोत जादूगर थे। गहलोत की शुरुआती पढ़ाई शहर में ही हुई। उन्होंने अपने पिता से जादू सीखा और उनके साथ कई जगह कार्यक्रम करने भी गए। हालांकि, बाद में गहलोत ने जादू दिखाना बंद कर दिया। गहलोत साइंस ग्रेजुएट हैं, एलएलबी करने के साथ उन्होंने इकनॉमिक्स में पीजी किया है। पढ़ाई के दौरान ही वे छात्र राजनीति में एक्टिव हो गए थे।
1973 से 1979 की अवधि के बीच गहलोत राजस्थान एनएसयूआई के अध्यक्ष रहे और उन्होंने कांग्रेस पार्टी की इस छात्र विंग को मजबूती दी। गहलोत वर्ष 1979 से 1982 के बीच जोधपुर शहर की जिला कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष रहे। वर्ष 1982 में राजस्थान प्रदेश कांग्रेस कमेटी के महासचिव भी रहे।
अशोक गहलोत 7वीं लोकसभा के लिए साल 1980 में पहली बार जोधपुर संसदीय क्षेत्र से सांसद बनें थे। साल 1982 में जब वो दिल्ली में राज्य मंत्री पद की शपथ लेने तिपहिया ऑटोरिक्शा में सवार होकर राष्ट्रपति भवन पहुंचे तो सुरक्षाकर्मियों ने उन्हें रोक लिया था। मगर तब किसी ने सोचा नहीं था कि जोधपुर से पहली बार सांसद चुन कर आया ये शख्स सियासत का इतना लम्बा सफर तय करेगा।
अशोक गहलोत सबसे पहले 1998 में मुख्यमंत्री चुने गए थे। तब कांग्रेस के दिग्गज नेता परसराम मदेरणा सीएम पद के दावेदार थे।ज्यादातर विधायक उनके पक्ष में थे। लेकिन सीएम तत्कालीन कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष अशोक गहलोत बने। इसके बाद साल 2008 में सीपी जोशी में अगुवाई में लड़ा चुनाव लेकिन प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष सीपी जोशी के नेतृत्व में चुनाव लड़ा गया। कांग्रेस को बहुमत मिला, लेकिन सीपी जोशी खुद 1 वोट से चुनाव हार गए। इसके बाद दूसरे नंबर के दावेदार अशोक गहलोत को ही राज्य की कमान सौंप दी गई।
फिर साल 2018 में युवा चेहरे और प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष सचिन पायलट के नेतृत्व में चुनाव लड़ा गया। कांग्रेस को राज्य में बहुमत मिला, एमपी और छत्तीसगढ़ में भी कांग्रेस को बहुमत मिला। एमपी और छत्तीसगढ़ में तत्कालीन प्रदेश अध्यक्ष सीएम बन गए। लेकिन राजस्थान में प्रदेश अध्यक्ष का पत्ता कट गया और फिर से अशोक गहलोत सीएम बने।
राजनीति को सेवा का माध्यम समझने वाले गहलोत की राजनीतिक पृष्ठभूमि की ही तरह सामाजिक पृष्ठभूमि भी काफी मजबूत है। नेहरू युवा केन्द्र के माध्यम से गहलोत ने प्रौढ़ शिक्षा के विस्तार में अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया।
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