सुषमा स्वराज केवल एक अच्छी नेता ही नहीं, बल्की एक प्रखर प्रवक्ता भी थीं। अपने ओजस्वी भाषण में वह जितनी आक्रामक दिखती थीं, निजी जीवन में उतनी ही सरल और सौम्य व्यक्तित्व रखती थीं। सुषमा शायद देश की एक ऐसी नेता थीं जिनके ममता बनर्जी से लेकर कई और विपक्षी नेताओं के साथ अच्छे रिश्ते थे। लेकिन यूपीए की चेयरपर्सन सोनिया गांधी से उनके संबंध शायद कभी मधुर नहीं हो पाए।
अपने राजनीतिक करियर में कई बार सुषमा स्वराज आक्रमक दिखीं। उनकी एक बात आज भी याद की जाती है, जब उन्होंने कहा था कि यदि सोनिया गांधी पीएम बनीं तो वे अपना सिर मुंडवा लेंगी। जब उन्होंने यह बात कही थी तो पूरे देश में हलचल मच गई थी।
साल 2004 के लोकसभा चुनावों के बाद कांग्रेस पार्टी विजयी हुई थी। तब सोनिया गांधी के प्रधानमंत्री बनने की चर्चाएं तेज हो गई थीं। जिसका बीजेपी ने जमकर विरोध किया था। इस दौरान बीजेपी ने सोनियां गांधी के विदेशी मूल के होने को मुद्दा बनाया था। तब ऐसे में सुषमा स्वराज का एक अलग रूप देखने को मिला।
उन्होंने एक ऐसा ऐलान कर दिया था, जिसे सुनकर राजनीतिक गलियारों में हलचल मच गई थी। सुषमा स्वराज ने ऐलान कर दिया था कि अगर सोनिया गांधी प्रधानमंत्री बनती हैं तो वे अपना सिर मुंडवा लेंगी। सफेद साड़ी पहनेंगी, जमीन पर सोएंगी और सूखे चने खाएंगी। उनके इस बयान के बाद कई बड़े-बड़े दिग्गज चौंक गए थे।
सुषमा स्वराज ने कहा था, ‘अगर संसद में जाकर बैठती हूं तो हर हालत में मुझे सोनिया गांधी को माननीय प्रधानमंत्री जी कहकर संबोधित करना होगा, जो मुझे गंवारा नहीं मेरा राष्ट्रीय स्वाभिमान मुझे झकझोरता है। मुझे इस राष्ट्रीय शर्म में भागीदार नहीं बनना। हालांकि, बाद में सोनिया गांधी ने प्रधानमंत्री बनने से इंकार कर दिया और उनकी जगह मनमोहन सिंह को देश का नया प्रधानमंत्री बनाया गया।
दरअसल सुषमा और सोनिया के बीच में टकराव 1999 के लोकसभा चुनाव के साथ ही शुरु हो गया था। बेल्लारी सीट (कर्नाटक) कांग्रेस का गढ़ माना जाता था। सोनिया गांधी की चुनावी मुहिम के लिए वह उस वक्त कांग्रेस की सबसे महत्वपूर्ण सीटों में से एक थी। बीजेपी ने सोनिया को टक्कर देने के लिए अपनी करिश्माई नेता सुषमा स्वराज को बेल्लारी से मैदान में उतार दिया।
सुषमा ने उस चुनौती को स्वीकार करते हुए महज 15 दिनों में कन्नड़ भाषा सीखकर सोनिया को जबर्दस्त टक्कर दी। वह उस दौर में सोनिया के विदेशी मूल के मुद्दे पर काफी मुखर भी थीं। हालांकि चुनावी नतीजा भले ही सोनिया गांधी के पक्ष में रहा लेकिन सुषमा ने उनको टक्कर दी। सुषमा स्वराज को 3, 58,000 वोट मिले और हार-जीत का अंतर महज 7% रहा।
बेल्लारी के लोकसभा चुनाव में हार के बाद बीजेपी ने अप्रैल 2000 में सुषमा स्वाराज को उत्तर प्रदेश के कोटे से राज्यसभा में भेजा। इसके बाद उन्हें फिर अटल बिहारी वाजपेयी सरकार में सूचना और प्रसारण मंत्रालय सौंपा गया। इस पद पर वो सितंबर 2000 से जनवरी 2003 तक रहीं। सन 2003 में उन्हें स्वास्थ्य, परिवार कल्याण और संसदीय मामलों का मंत्री बनाया गया। मई 2004 में एनडीए सरकार के सत्ता से बाहर होने तक वे मंत्री बनी रहीं।
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