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सियासत के बदलते मिजाज को कैसे भांप लेते थे पासवान

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राम विलास पासवान सियासी जीवन के शुरुआत से लेकर अंत तक राष्ट्रीय राजनीति में हमेशा चर्चा में बने रहे। 9 बार सांसद बने और 6 प्रधानमंत्रियों के साथ उन्होंने काम किया। राजनीतिक सफर पांच दशर से भी पुराना था। इसलिए देश की सियासी नब्ज पर मजबूत पकड़ की वजह से वह मौसम वैज्ञानिक भी कहलाए। ये उपाधि उन्हें पूर्व मुख्य मंत्री और राजद अध्यक्ष लालू प्रसाद यादव ने दी थी।

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लेकिन राजनीतिक बाजrगरी में माहिर समझे जाने वाले रामविलास पासवान शुरुआत में केवल राजनेता ही बनने वाले थे, ऐसा नहीं था। रामविलास पासवान को सियासत विरासत में नहीं मिली थी। बल्कि अपनी काबिलित से उन्होंने हासिल की थी। पढ़ने-लिखने में तेज-तर्रार रामविलास पासवान का सेलेक्शन 1969 में डीएसपी पद के लिए हुआ था। 1969 में ही वो पहली बार संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी से बिहार विधानसभा के लिए विधायक चुने गए थे। तभी बेगूसराय के रहनेवाले रामविलास पासवान के दोस्त और समाजवादी नेता ने उन्हें राजनीति में आने के लिए प्रेरित किया।

चुनाव से पहले ही समझ लेते थे की हवा किस तरफ बढ़ रही

पासवान समय के साथ-साथ बदलते उनके स्वरूप के साथ देश के महत्वपूर्ण दलित नेता बनकर ऊभरे। उन्होंने सियासी सफर की शुरुआत 70 के दशक में की। सभी विचारधाराओं वाले लोगों के साथ वो मिलजुकर रहते और काम किया करते थे। उनके साथ लालू प्रसाद यादव और नीतीश कुमार ने भी सियासी सफर की शुरुआत की थी। बाद में बिहार और पूरे देश में गुजरात दंगों के खिलाफ नरेंद्र मोदी पर जमकर प्रचार किया था। बाद में उन्हीं की सरकार में मंत्री भी बने।

पासवान के व्यक्तित्व में विशेष आकर्षण यह भी था कि पार्टी और गठबंधन चाहे किसी भी विचारधारा के हों, उनके संबंध सभी के साथ हमेशा मधुर रहे हैं। उनकी एक विशेष खासियत थी वो चुनाव से पहले ही समझ लेते थे की हवा किस तरफ बढ़ रही है। इसलिए उन्हें को राजनीति का मौसम वैज्ञानिक कहा जाता था। लेकिन ये उपाधि मिली कैसे ये जानते है?

हर गठबंधन में शामिल हुए पासवान

साल 1994 में जब नीतीश कुमार ने लालू यादव के खिलाफ विद्रोह कर में समता पार्टी बनायी, तो रामविलास पासवान लालू यादव के कब्जे वाली जनता दल पार्टी में ही रहे। और अगले साल 1995 में विधान सभा चुनावों में जब भारी बहुमत से लालू यादव की जीत हुई तो लोगों को समझ आ गया कि पासवान अपने उस फैसले पर सही थे।

उसके बाद जब लालू यादव ने चारा घोटाले में नाम आने पर 1997 में अपनी नई पार्टी (राजद) बना ली उसके बाद भी पासवान शरद यादव के साथ जनता दल में ही बने रहे और 1998 का लोक सभा चुनाव जीतने में कामयाब रहे।

हालांकि, तब तक उन्हें आभास हो गया था कि अब उन्हें लालू या एनडीए में से किसी एक को चुनना होगा। फिर जनता दल और समता पार्टी का विलय होकर जनता दल यूनाइटेड बनी और 1999 के लोक सभा चुनाव में लालू यादव को इस नए गठबंधन के सामने हार स्वीकार करनी पड़ी।

रामविलास पासवान मेन स्ट्रीम पॉलिटिक्स में भी एक अलग लाइन लेकर आगे बढ़ते रहे। उन्होंने लोकसभा चुनाव में हार के बाद अपनी नई पार्टी लोक जनशक्ति पार्टी बना ली। सियासत के बदलते मिजाज को भांपते हुए पासवान साल 1999 में एनडीए में शामिल हो गए। चुनाव में एनडीए की भारी जीत हुई और वो वाजपेयी की सरकार में पहले संचार मंत्री बने। लेकिन कुछ कारणों से यह मंत्रालय उनसे दो वर्षों में छीन लिया गया और उन्हें कोयला मंत्रालय दे दिया गया जिससे वो काफी नाराज थे।

कैसे मिली पासवान को मौसम वैज्ञानिक की उपाधि

तभी उन्होंने गुजरात दंगों को आधार बनाकर अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार से इस्तीफा दे दिया। इसके बाद 2004 के लोकसभा चुनाव के दौरान उन्होंने पाला बदल लिया और वे यूपीए का हाथ थाम लिया। पासवान ने एक बार फिर बिहार में लालू यादव और कांग्रेस के साथ मिलकर चुनाव लड़ा और पिछले लोकसभा चुनावों का परिणाम पलट डाला।

पार्टी से खफा पासवान 2005 के फरवरी में उनकी पार्टी लोक जनशक्ति पार्टी अकेले बिहार विधान सभा चुनाव लड़ी। उनकी पार्टी को 29 सीटें आईं। इसी कारण त्रिशंकु विधानसभा का परिणाम आया। राबड़ी देवी मुख्यमंत्री नहीं रहीं। राज्य में राष्ट्रपति शासन लग गया। हालाँकि, 2005 के अक्टूबर- नवंबर में हुए दूसरे विधानसभा चुनाव में उन्हें मात्र 10 सीटों से ही संतोष करना पड़ा। राज्य में नीतीश कुमार की सरकार बनी।

 नीतीश कुमार ने दलितों में पासवान जाति के वर्चस्व के खिलाफ महादलित नाम का पासा फेंक दिया। तो रामविलास पासवान इससे काफी नाराज हुए। फिर क्या पासवान एक बार फिर लालू यादव के साथ तालमेल करने पर मजबूर हो गए। हालाँकि, इसका लाभ उन्हें राजनीतिक रूप से खासकर चुनाव में नहीं मिला। इसके बाद 2009 का लोकसभा चुनाव पासवान हार गए। 2010 के विधानसभा चुनाव में लोजपा को मात्र तीन सीटें मिलीं।

2014 में पासवान फिर से एक बार एनडीए के साथ हो गए। दिलचस्प बात यह भी है कि बिहार और पूरे देश में गुजरात दंगों के खिलाफ तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी की ओलाचना में उन्होंने कोई कोर-कसर बाकी नहीं रखी थी, लेकिन मई, 2014 में मोदी के नेतृत्व में पासनाव विश्वासपात्र बन गए।

इसलिए केन्द्र में सत्ता में आने वाले गठबंधन के साथ पानी में नमक की तरह घुलमिल जाने की प्रवृत्ति के कारण कई बार आलोचक उन्हें ‘‘मौसम वैज्ञानिक’’ भी बुलाते थे।

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