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प्रधानमंत्री सीरीज: शास्त्री ने कैसे युद्ध में चटाई पाक को धूल

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जब भारत को आजादी मिली तो हर कोई अपने सपनों का भारत देख रहा था। इन सपनों के नया भारत को बनाने के लिए कई लोगों ने कुर्बानियों भी दी। कई जानें शहीद हुई। इस स्वतंत्रता संग्राम में हमें मिले नेशनल हीरोज। इन हीरोज में एक हीरो थे भारत के दूसरे प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री। उन्होंने देश के स्वतंत्रता आंदोलन और नये भारत के निर्माण में महत्वपूर्ण योगदान दिया। उनका पूरा जीवन ही देश की सेवा में बीता।

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सादगी, शालीनता और ईमानदार व्यक्तित्व के धनी शास्त्री जी ने देश की सुरक्षा और संप्रभुता से कभी भी समझौता नहीं किया। लाल बहादुर का कद बेशक छोटा था लेकिन जो बड़े-बड़े फैसले भारतवर्ष के दूसरे प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री ने लिए वो एतिहासिक थे। शास्त्री जी के नेतृत्व में भारत ने 1965 में पाकिस्तान को जंग में धूल चटाई थी।

बतौर प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री का कार्यकाल महज 19 महीने का था, लेकिन इतने कम समय में उन्होंने आंतरिक, सैन्य और विदेश के मोर्चे पर कई इतने महत्वपूर्ण कार्य कर गए, जिसके चलते वो भारतीयों को हमेशा के लिए अपना कायल बना गए।

लाल बहादुर शास्त्री का जन्म उत्तर प्रदेश के मुगलसराय में 2 अक्टूबर, 1904 को हुआ था। शास्त्री जी बहुत ही सामान्य परिवार से निकलकर देश की सत्ता के सर्वोच्च शिखर तक पहुंचे थे। लेकिन उनके जीवन की सादगी में फिर भी कोई असर नही पड़ा।

छोटे कद के शख्स का बड़ा फैसला

1965 के भारत-पाक युद्ध की काफी रोचक, दरअसल भारत 1962 में चीन के खिलाफ युद्ध में हारा था। तब देश में लोग काफी निराश और हताशा थे। नेहरु जी से देश का जनता सख्त नाराज चल रही थी। पाकिस्तान को भी लग रहा था कि यही सही मौका है कि कश्मीर पर कब्जा जमा लिया जाए क्योंकि अभी भारत सदमें में है। लेकिन ये सोच पाकिस्तान के राष्ट्रपति अयूब खान और उनके विदेश मंत्री जुल्फिकार अली भुट्टो की भारी पड़ जाएगी ये नहीं जानते थे।

बहरहाल पाकिस्तान ने जनवरी 1965 से ही कच्छ में अपनी नापाक हरकतें चालू कर दीं थीं। अयूब ने सोचना शुरू कर दिया था कि हिंदुस्तान कमजोर है। एक तो लड़ना नहीं जानते हैं और दूसरे राजनीतिक नेतृत्व बहुत कमजोर है। लेकिन पाकिस्तान शास्त्री के बारे में अच्छे से शायद परिचित नहीं था तभी तो मुंह की खानी पड़ी।

1965 युद्ध के वक्त लाल बहादुर शात्री

तालियों की गड़गड़ाहट के बीच शास्त्री ने ऐलान किया, “सदर अयूब ने कहा था कि वो दिल्ली तक चहलकदमी करते हुए पहुंच जाएंगे। वो इतने बड़े आदमी हैं।तो मैंने सोचा कि उन्हें दिल्ली तक चलने की तकलीफ क्यों दी जाए। हम ही लाहौर की तरफ बढ़ कर उनका इस्तकबाल करें। ये वही शास्त्री थे जिन्हें बौना कहकर अयूब ने एक साल पहले मजाक उड़ाया था।

ताशकंद समझौता

पाकिस्तान की अप्रैल 1965 में रण ऑफ कच्छ में भारतीय सैनिकों के साथ मुठभेड़ हुई। फिर 5 अगस्त 1965 को 33 हजार पाकिस्तानी फौजियों को कश्मीरी लिबास में घाटी में प्रवेश करवा दिया और 15 अगस्त को भारत ने लाइन ऑफ कंट्रोल (LOC) को पार करके हमला कर दिया। भारत के वीर सैनिकों ने पाकिस्तान के 8 किलोमीटर अंदर हाजीपीर दर्रा पर कब्जा कर लिया। अयूब खां का यह कहना था कि भारतीय आधुनिक हथियारों, टैंकों और गोला बारूद का मुकाबला नहीं कर सकेंगे। दूसरी तरफ 6 सितंबर 1965 को भारत ने पंजाब और राजस्थान की अंतर्राष्ट्रीय सीमा को पार करके जोरदार हमला किया। पाकिस्तान यह सोच भी नहीं सकता था कि भारत अंतर्राष्ट्रीय सीमा से आक्रमण कर देगा। लाहौर को खतरे में देखते हुए पाकिस्तान ने अपनी फौज का बहुत सारा हिस्सा पंजाब की तरफ लगा दिया। इससे उनका कश्मीर में दबाव कम होने लगा। इसके साथ ही सियालकोट पर भी भारत ने जोरदार आक्रमण किया और पाकिस्तान के काफी अंदर तक जाकर कब्जा कर लिया।

वर्ष 1966 में ताशकंद समझौते के दौरान पाकिस्तान के राष्ट्रपति अयूब खान, सोवियत संघ के प्रमुख अलेक्सी कोशिगिन के साथ भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री लालबहादुर शास्त्री

बाद में भारत पाकिस्तान में युद्ध बंद हो गया। 1965 के युद्ध ने लाल बहदुर शास्त्री को महानायक का दर्जा दिलवा दिया था। इसके बाद मध्यस्थता के लिए आगे आया सोवियत संघ। तय हुआ कि जनवरी 1966 में ताशकंद में बैठक होगी। ताशकंद उज्बेकिस्तान में आता है। उस समय ये सोवियत संघ का हिस्सा था। वहां शास्त्री ने 10 जनवरी 1966 में पाकिस्तान के राष्ट्रपति अयूब खान के साथ ऐतिहासिक समझौते पर हस्ताक्षर किए। भारत ने सारे जीते हुए इलाके वापस कर दिए। इस पर भारतीयों को बड़ा आक्रोश था। 11 जनवरी 1966 को लाल बहादुर शास्त्री की दिल का दौरा पडऩे से अचानक मृत्यु हो गई

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