अपराधी के राजनेता बनने की और नेता के अपराधी बनने की लिस्ट हमारे देश में काफी लंबी है। लेकिन अपराध से राजनीति की और राजनीति से अपराध की दोस्ती कराने वालों के लिस्ट का बात की जाती है तो सबसे पहला नाम आता है गोरखपुर के हरिशंकर तिवारी का।
ये वही हरिशंकर तिवारी हैं जिन्हें राजनीति के अपराधीकरण के लिए जाना जाता है। गोरखपुर जिले के दक्षिणी छोर पर चिल्लूपार विधानसभा सीट से लगातार 6 बार विधायक रहे हरिशंकर की पहचान ब्राह्मणों के बाहुबली नेता के तौर पर है। 80 के दशक में राजनीति में धनबल और बाहुबल के जनक के तौर पर स्थापित हरिशंकर तिवारी की तूती बोलती थी।
दरअसल बाहुबलियों ने सोचा कि ये नेता अगर हमारे दम पर ही चुनाव जीत रहे हैं तो क्यों न हम ही चुनाव लड़ें। ऐसे में पूर्वी उत्तर प्रदेश के गोरखपुर ज़िले की एक विधानसभा सीट है चिल्लूपार। 1985 में ये सीट एकाएक उस वक़्त चर्चा में आई जब हरिशंकर तिवारी नाम के निर्दलीय उम्मीदवार ने जेल की दीवारों के भीतर रहते हुए चुनाव जीता और भारतीय राजनीति में ‘अपराध’ के सीधे प्रवेश का दरवाजा खोल दिया।
इसके बाद से ही भारतीय राजनीति में अपराध और राजनीति के गठजोड़ की नहीं, बल्कि अपराध के राजनीतिकरण की बहस शुरू हुई।
इंदिरा गांधी के खिलाफ जय प्रकाश नारायण मोर्चा खोले हुए थे। इस दौरान छात्र जेपी के साथ और इंदिरा के खिलाफ विरोध कर रहे थे. लेकिन पूर्वांचल में अलग ही कहानी चल रही थी। पूर्वांचल में माफिया, शक्ति और सत्ता की लड़ाई शुरू हो चुकी है। कॉलेजों और विश्वविद्यालयों के छात्र यहां बंदूकों की नाल साफ कर रहे थे। यही वह पल है जब हरिशंकर तिवारी की राजनीति में एंट्री होती है।
हरिशंकर तिवारी के मुताबिक वे राजनीति में इसलिए आए क्योंकि उस समय के तत्कालीन मुख्यमंत्री वीर बहादुर सिंह ने उन पर झूठे केस लगाकर जेल भेज दिया। उन्होंने एक इंटरव्यू में कहा था कि वह पहले प्रदेश कांग्रेस के सदस्य थे। इंदिरा गांधी के साथ काम कर चुके हैं, लेकिन चुनाव कभी नहीं लड़ा। तत्कालीन राज्य सरकार द्वारा किए गए उत्पीड़न के कारण उन्होंने राजनीति में आने का फैसला किया।
पूर्वांचल में 1980 के दशक में विकास कार्यों हेतु सरकारी परियोजनाओं का आगमन हुआ। लेकिन सरकारी परियोजनों पर भी वर्चस्व हमेशा बाहुबलियों का रहा है। ऐसे में हरिशंकर तिवारी के पाले में पूरे पूर्वांचल का ठेका जाने लगा। पूर्वांचल में एक समय ऐसा भी था, जब सभी ठेके खुद ब खुद तिवारी को मिलने लगे क्योंकि उनके खिलाफ खड़ा होने के लिए कोई नहीं था। ऐसे में पूर्वांचल के रेलवे, कोयले सप्लाई, खनन, शराब इत्यादि उन्य तरह के सभी ठेकों पर हरिशंकर तिवारी और उनके लोगों का कब्जा रहा।
80 के दशक में छात्र राजनीति का वर्चस्व बढ़ा और गोरखपुर में ब्राह्मण- ठाकुर की लॉबी शुरू हुई। वीरेंद्र शाही को मठ का समर्थन मिला तो हरिशंकर तिवारी ब्राह्मणों के नेता बनकर उभरे। यहीं से दोनों में गैंगवार शुरू होती है। उस वक्त खौफ इस कदर तक था कि गैंगवार से पहले ऐलान हो जाता था कि आज घर से कोई निकलेगा नहीं और स्थानीय लोग घरों में दुबके रहते थे। बाहर फायरिंग की आवाजें आती थीं और कई लोग मारे जाते थे।’
80 के दशक में हरिशंकर तिवारी पर गोरखपुर जिले में 26 मामले दर्ज हुए। इनमें हत्या करवाना, हत्या की कोशिश, किडनैपिंग, छिनैती, रंगदारी, वसूली, सरकारी काम में बाधा डालने जैसे मामले दर्ज हुए। लेकिन आज तक कोई भी अपराध उन पर साबित नहीं हो पाया।
दरअसल, अपने गैंग को विस्तार देने के लिए हरिशंकर तिवारी ने जो तरीका आजमाया वो पूर्वांचल के युवाओं को लुभाने लगा था। लेकिन शातिर हरिशंकर तिवारी ने कभी भी सीधे फ्रंटफुट पर नहीं खेला। क्षेत्र के लोग दबी जुबान कहते हैं कि असल में तिवारी धनबल बाहुबल और हथियारों के जरिए अपराध को संरक्षण देते थे।
उन्होंने हमेशा मोहरों का इस्तेमाल किया। इन्हीं में से एक बड़ा मोहरा था श्रीप्रकाश शुक्ला, जिसने क्षेत्र के राजपूत नेता माने जाने वाले वीरेन्द्र प्रताप शाही की लखनऊ में सरेआम हत्या कर दी थी। हत्या भले श्रीप्रकाश ने की लेकिन माफिया की दुनिया में हरिशंकर तिवारी का कद बढ़ गया क्योंकि सब जानते थे कि श्रीप्रकाश उनका खास गुर्गा था।
चिल्लूपार सीट से लगातार रहे विधायक
हरिशंकर तिवारी जेल की सलाखों के पिछे रहकर विधायक बनने के बाद लगातार 22 सालों तक चिल्लूपार विधानसभा सीट से विधायक रहे। सिर्फ विधायक ही नहीं बल्कि साल 1997 से लेकर 2007 तक लगातार यूपी कैबिनेट में मंत्री भी रहे।
सबसे पहली बार हरिशंकर तिवारी 1998 में कल्याण सिंह द्वारा बसपा को तोड़कर बनाई सरकार में साइंस और टेक्नोलॉजी मंत्री रहे। दुसरी बार 2000 में राम प्रकाश गुप्त की भारतीय जनता पार्टी सरकार में स्टाम्प रजिस्ट्रेशन मंत्री बने। 2001 में राजनाथ सिंह की सरकार में भी मंत्री रहे। 2002 में मायावती की बसपा सरकार में भी मंत्रिमंडल के सदस्य रहे। 2003 से 2007 तक मुलायम सिंह की सरकार में भी मंत्री रहे।
हरिशंकर तिवारी का अपना अलग ही स्वैग था। निर्दलीय चुनाव लड़ो और हर पार्टी की सरकार में मंत्री रहे। फिलहाल हरिशंकर तिवारी की उम्र तकरीबन 85 साल है। 2012 में मिली हार के बाद उन्होंने एक भी चुनाव नहीं लड़ा। लेकिन चिल्लूपार इलाके में इनका वर्चस्व आज भी कम नहीं हुआ है। शायद यहीं वजह है कि 2017 में मोदी लहर में भी हरिशंकर ने अपने छोटे बेटे विनय शंकर तिवारी को चिल्लूपार, सीट के विधायक बने।
कहा जाता है कि अगर आपको यूपी की राजनीति में दिलचस्प है तो आप हरिशंकर तिवारी को प्यार कर सकते है, नफरत कर सकते है लेकिन उनको इग्नोर नहीं कर सकते।
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