आज कहानी शहीद ए आजम भगत सिंह की जिन्होंने आजादी के लिए इंक्लाब जिंदाबाद के नारे को देश के कोने-कोने तक पहुंचाया। भगत सिंह ने देश की आजादी के लिए साहस के साथ शक्तिशाली ब्रिटिश सरकार का मुकाबला किया था। भारतीय इतिहास में भगत सिंह इकलौते ऐसे क्रांतिकारी हैं, जिन्होंने अपनी मौत को खुद डिजाइन किया था।
17 दिसंबर, 1928 को पुलिस अधिकारी सांडर्स की हत्या का दोषी करार देते हुए उन्हें फांसी की सजा सुनाई गई थी। वो चाहते तो अपने मुकदमे की पैरवी के लिए वकील कर सकते थे, लेकिन न तो सांडर्स की हत्या की सुनवाई के लिए और न ही सेंट्रल असेंबली में बम धमाके की सुनवाई के लिए उन्होंने कोई वकील किया और इस तरह से उन्होंने अपनी नियति को खुद चुना।
लेकिन 91 साल पहले 23 मार्च 1931 को दी गई भगत सिंह को फांसी पर दावा हमेशा से किया जाता रहा है कि महात्मा गांधी ने उनकी फांसी रोकने के लिए कोई प्रयास नहीं किया।
हालांकि, ये दावा सच नहीं है, ऐसे कई दस्तावेज सार्वजनिक हो चुके हैं जिनसे पुष्टि होती है कि महात्मा गांधी ने ब्रिटिश हुकूमत से एक नहीं कई बार भगत सिंह की फांसी रुकवाने का आग्रह किया था।
ऐतिहासिक दस्तावेजों से पता चलता है कि गांधी ने वाइसरॉय लॉर्ड इरविन से न सिर्फ दो बार भगत सिंह की फांसी स्थगित करने का आग्रह किया। बल्कि 23 मार्च, 1931 को एक पत्र लिखकर फांसी पर एक बार फिर विचार करने को भी कहा था।
दावा किया जाता है कि महात्मा गांधी ने 23 मार्च 1928 को एक निजी पत्र लिखा था और भगत सिंह और उनके साथियों की फांसी पर रोक लगाने की अपील की थी। इस बात का जिक्र My Life is My Message नाम की किताब में बताया गया है।
14 फरवरी, 1931 को पंडित मदनमोहन मालवीय ने वायसराय के सामने अपील की और कहा कि भगत सिंह की फांसी को आजीवन कारावास में बदल दिया जाए। उनकी अपील खारिज हो गई। 16 फरवरी को एक और बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका खारिज हो गई। फिर 18 फरवरी को महात्मा गांधी की वायसराय से बात हुई, जिसमें महात्मा गांधी ने वायसराय से कहा कि उन्हें भगत सिंह और उनके साथियों की फांसी की सजा खत्म कर देनी चाहिए।
महात्मा गांधी यंग इंडिया में लिखते हैं, भगत के बारे में बात करते हुए मैंने उनसे (लॉर्ड इरविन से) कहा ‘इसका हमारी वर्तमान बातचीत से कोई संबंध नहीं, हो सकता है ये मेरी तरफ से थोड़ी अनुपयुक्त बातचीत लगे। पर अगर आप इस माहौल को उचित समझें तो भगत सिंह की फांसी आपको स्थगित कर देनी चाहिए।’
वाइसरॉय को ये बात बहुत अच्छी लगी। उन्होंने कहा ‘मुझे अच्छा लगा कि आपने ये बात मेरे सामने इस तरह से रखी। सजा का वापस लेना एक मुश्किल बात हो सकती है, लेकिन फांसी स्थगित करने पर विचार किया जा सकता है।
दूसरी तरफ महात्मा गांधी ने आसफ अली को भगत सिंह के पास भेजा ताकि भगत से वादा करवा सकें कि उनकी सजा माफ हो जाएगी तो वो हिंसा का रास्ता छोड़ देंगे।
भगत सिंह ने आसफ अली से मिलने से भी इनकार कर दिया। भगत अड़े रहे। फिर महात्मा गांधी ने 21 मार्च और 22 मार्च को लगातार दो बार इरविन से बात की। इरविन नहीं माने। 23 मार्च को फिर महात्मा गांधी ने चिट्ठी लिखी। लेकिन जब तक इरविन चिट्ठी पढ़ते, तय तारीख से एक दिन पहले ही 23 मार्च को भगत सिंह को फांसी दे दी गई।
इसके बाद लोगों में आक्रोश की लहर दौड़ गई। लेकिन ये आक्रोश सिर्फ अंग्रेजों नहीं बल्कि गांधी जी के ख़िलाफ़ भी था क्योंकि उन्होंने इस बात का आग्रह नहीं किया कि ‘भगत सिंह की फांसी माफ नहीं तो समझौता भी नहीं। साल 1931 की 26 मार्च के दिन कराची में कांग्रेस का अधिवेशन शुरू हुआ ‘जिसमें पहली और आख़िरी बार सरदार पटेल कांग्रेस के अध्यक्ष बने।
25 मार्च को जब गांधी जी इस अधिवेशन में हिस्सा लेने के लिए वहां पहुंचे तो उनके खिलाफ विरोध प्रदर्शन किया गया। उनका स्वागत काले कपड़े से बने फूल और गांधी मुर्दाबाद-गांधी गो बैक जैसे नारों के साथ किया गया।
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