
Chitrakoot Murder Verdict : उत्तर प्रदेश के चित्रकूट में प्रेम प्रसंग में हुई निर्मम हत्याओं के मामले में 8 साल बाद न्याय मिला है. अपर सत्र न्यायालय, चित्रकूट ने गुरुवार को एक ऐतिहासिक फैसला सुनाते हुए पांच लोगों की नृशंस हत्या के दोषी अवधेश यादव को फांसी और उसकी पत्नी कुसुम कली को आजीवन कारावास की सजा सुनाई है. कोर्ट ने दोनों पर 1,10,000 का जुर्माना भी लगाया है.
क्या था पूरा मामला?
यह खौफनाक घटना राजापुर थाना क्षेत्र के कस्बे की है, जहां 2017 में चार मासूम बच्चों और एक महिला की गला रेतकर हत्या कर दी गई थी. आरोपियों ने हत्या के बाद शवों को बोरियों में बांधकर तालाब के पास अलग-अलग स्थानों पर फेंक दिया था. शुरुआत में पुलिस को हत्यारों का कोई सुराग नहीं मिला, लेकिन ग्राम चौकीदार की तहरीर पर पुलिस ने जांच शुरू की और पीड़ितों की पहचान गुजरात निवासी लालमुनि और उसके चार नाबालिग बच्चों के रूप में की गई.
प्रेम प्रसंग बना खूनी साजिश का कारण
पुलिस जांच में सामने आया कि अवधेश यादव, जो सिकरी अमान गांव का निवासी है, मजदूरी के लिए गुजरात गया था। वहीं उसका संबंध चार बच्चों की मां लालमुनि से बन गया. जब प्रेमिका ने उसके साथ रहने की जिद की, तो उसकी पत्नी कुसुम कली को इस अवैध संबंध की भनक लग गई. इसके बाद दोनों ने मिलकर हत्या की साजिश रची.
हत्या की खौफनाक रात
लालमुनि को उसके चार बच्चों सहित अवधेश ने अपने गांव बुला लिया. रात में जब सभी सो रहे थे, तब पति-पत्नी ने सब्जी काटने वाले चाकू से पहले प्रेमिका और फिर एक-एक कर चार मासूम बच्चों की गला रेतकर हत्या कर दी. तीन बेटियां और एक बेटा उस रात मौत के घाट उतार दिए गए. शवों को तीन बोरियों में भरकर तालाब में फेंक दिया गया. इस दौरान एक रिश्तेदार ने उन्हें यह जघन्य अपराध करते देख लिया और बाद में पुलिस के सामने गवाही दी.
8 साल की लंबी लड़ाई के बाद मिला न्याय
सरकारी अधिवक्ता अजय सिंह ने बताया कि पीड़िता का पति इतना भयभीत था कि उसने 5 वर्षों तक गवाही देने से इनकार कर दिया. लगातार प्रयासों और सुरक्षा के बीच उसकी गवाही कराई गई, जिसके बाद न्यायालय ने यह सख्त फैसला सुनाया. अदालत ने दोषी अवधेश यादव को फांसी की सजा सुनाई है, जबकि उसकी पत्नी कुसुम कली को आजीवन कारावास की सजा दी गई है. दोनों दोषियों पर कुल 1,10,000 का जुर्माना भी लगाया गया है. इस मामले में सबसे चुनौतीपूर्ण बात यह रही कि पीड़िता का पति इतना भयभीत था कि उसने 5 वर्षों तक गवाही देने से इनकार कर दिया था. लेकिन सरकारी अधिवक्ता अजय सिंह के लगातार प्रयासों और कड़ी सुरक्षा व्यवस्था के चलते गवाही कराई जा सकी, जिसके बाद 8 साल की लंबी कानूनी लड़ाई के बाद आखिरकार न्याय मिला.
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