भगत सिंह का जन्म 27 सितंबर, 1907 को एक सिख परिवार में हुआ था। उनका जन्म-स्थान ग्राम चक 105 जिला लायलपुर, पंजाब है जो कि अब पाकिस्तान के हिस्से में आता है। भगत सिंह का परिवार राजनीतिक गतिविधियों में गहराई से शामिल थे। कहा जाता है भगत के जन्म के समय उनके पिता किशन सिंह जेल में थे। भगत सिंह ने भारतीय स्वतंत्रता के लिए अपना जीवन समर्पित कर दिया। उन्होनें तेरह वर्ष की आयु में स्कूल छोड़ दिया था।
साल 1926 में भगत सिंह ने ‘नौजवान भारत सभा (यूथ सोसाइटी ऑफ इंडिया) की स्थापना की और हिंदुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन में शामिल हो गए। यहाँ उन्होंने कई प्रमुख क्रांतिकारियों से मुलाकात की और स्वतंत्रता संग्राम में कूद गए। अब तक भगत सिंह पुलिस और अंग्रेजी हुकुमत के आंखों में खटकने लगे थे।
एक बम विस्फोट में शामिल होने के आरोप में उन्हें मई 1927 में गिरफ्तार किया गया था। हालांकि कई हफ्ते बाद उन्हें रिहा कर दिया गया और इसके बाद उन्होंने विभिन्न क्रांतिकारी समाचार पत्रों के लिए लिखना शुरू कर दिया।
सन् 1928 में ब्रिटिश सरकार ने भारतीय लोगों के लिए स्वायत्तता पर चर्चा करने के लिए साइमन कमीशन का आयोजन किया। कई भारतीय राजनीतिक संगठनों ने इस आयोजन का बहिष्कार किया क्योंकि आयोग में कोई भारतीय प्रतिनिधि नहीं था। अक्टूबर में भगत सिंह के साथी लाला लाजपत राय ने आयोग के विरोध में एक मार्च का नेतृत्व किया। पुलिस ने बड़ी भीड़ को तितर-बितर करने का प्रयास किया और इस दौरान लाठी लगने से लाला लाजपत राय मौत हो गयी। बता दें इस हत्या के पीछे पुलिस अधीक्षक जेम्स स्काउट का नाम सामने आया था।
जिसके बाद लाला लाजपत राय के मौत का बदला लेने के लिए भगत सिंह और दो अन्य लोगों ने पुलिस अधीक्षक को मारने की साजिश रची, लेकिन इसके बजाय पुलिस अधिकारी जॉन पी. सॉन्डर्स की गोली मारकर हत्या कर दी।
सन् 1929 के अप्रैल महीने में, भगत सिंह और एक सहयोगी ने सार्वजनिक सुरक्षा विधेयक के कार्यान्वयन का विरोध करने के लिए दिल्ली के केंद्रीय विधान सभा पर बमबारी की। वे कथित तौर पर जो बम ले गए थे, वे मारने के लिए नहीं बल्कि डराने के लिए थे। भगत सिंह ने गिरफ्तार होने और मुकदमा चलाने की योजना बनाई ताकि वे अपने कारण को और बढ़ावा दे सकें।
बमबारी के कारण उनके ऊपर मुकदमा कर दिया गया। उन्होंने मुकदमे के दौरान कोई बचाव नहीं किया, लेकिन राजनीतिक हठधर्मिता के साथ कार्यवाही को बाधित कर दिया। उन्हें दोषी पाया गया और उन्हें आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई। इसके बाद उन्हें पुलिस अधिकारी जॉन पी. सॉन्डर्स की हत्या का दोषी पाया गया और 23 मार्च, 1931 को फांसी दे दी गई। कहते है फांसी के बाद अंग्रेजी सरकार ने रातों-रात उनके शव को जला दिया था।
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