उत्तराखंड हाईकोर्ट ने नियमों से उलट एक फैसला दिया है। हाईकोर्ट ने 16 साल की रेप पीड़िता को करीब 8 महीने के गर्भ को गर्भवात करने की अनुमति दे दी है। जबकि मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी एक्ट के तहत सिर्फ 24 हफ्ते की प्रेग्नेंसी को ही नष्ट करने का प्रावधान है। कोर्ट ने आदेश में कहा कि पीड़िता के कोख में पल रहे भ्रूण से ज्यादा महत्वपुर्ण पीड़िता की जिंदगी है। आगे कोर्ट ने कहा कि यदि पीड़िता को प्रेग्नेंसी जारी रखने के लिए मजबूर किया जाएगा, फिर ये संविधान के अनुसार पीड़िता की मानवीय गरिमा के साथ जीने के अधिकार का उल्लंघन होगा। अगर बच्चा जिंदा पैदा होता है तो वह उसे क्या नाम देगी, उसका पालन पोषण कैसे करेगी, जबकि वह खुद नाबालिग है। वो अपने साथ हुए दुष्कर्म को कभी भी याद नहीं रखना चाहती। इसलिए प्रेग्नेंसी टर्मिनेशन की इजाजत देना ही न्याय होगा।
बता दें ये फैसला जस्टिस आलोक कुमार वर्मा की एकल पीठ कर रही थी। कोर्ट ने निर्देश दिया है कि पीड़िता का गर्भपात मेडिकल टर्मिनेशन बोर्ड के मार्गदर्शन और चमोली के CMHO की निगरानी किया जाएगा। इसके साथ ही कोर्ट ने 48 घंटे के भीतर गर्भपात करने के अतिरिक्त निर्देश दिए हैं। इस दौरान यदि पीड़िता के जीवन पर कोई जोखिम आता है तो इसे तुरंत रोक दिया जाए।
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