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यूक्रेन-रूस युद्ध: जंग के लिए रूस उतारेगा अब अफगानी सेना, दे रहा कई लालच भरे प्रस्ताव

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रूस और यूक्रेन के युद्ध को चलते हुए 9 महीने का समय बीत चुका है लेकिन युद्ध खत्म होने का नाम ही नहीं ले रहा है। दोनों ही देश पीछे हटने को तैयार नहीं हैं। वहीं रूस और भी ज्यादा आग बबूला हुआ है। जबसे उसके देश के क्रीमिया ब्रिज को गिराया गया है तबसे रूस और भी ज्यादा खतरनाक हो गया है और यूक्रेन पर नए नए तरीकों से हमला करना शुरू कर दिया है और अब यूक्रेन के खिलाफ नई प्लानिंग के तहत रूस अब अमेरिका में ट्रेनिंग कर चुके अफगानिस्तान की स्पेशल फोर्स के सैनिकों को अपनी सेना में शामिल कर रहा है।

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इसके लिए उन्हें तरह-तरह के लालच भी दिए जा रहे हैं। रूस इन सैनिकों को यूक्रेन के खिलाफ युद्ध में भेजेगा। मामले के जानकार मानते हैं कि पिछले कुछ महीनों से युद्ध में यूक्रेन ही नहीं रूसी सैनिक भी बड़े पैमाने पर मारे गए। रूस में नौजवानों को जबरन सेना में भर्ती किया जा रहा है। हाल यह है कि रूसी लोग चुपके-चुपके देश भी छोड़ रहे हैं।

तीन पूर्व अफगान जनरलों ने एसोसिएटेड प्रेस को बताया कि रूसी सरकार अफगान कमांडो को अपनी सेना में शामिल करने के लिए कई तरह के लालच दे रहा है। इसमें बढिया सैलरी और उनकी और परिवार की सुरक्षा भी शामिल है जो तालिबान शासित अफगानिस्तान में फंसे हुए हैं।

तीनों में से एक पूर्व जनरल अब्दुल रावफ अरघंडीवाल ने कहा, “वे लड़ाई नहीं करना चाहते हैं – लेकिन उनके पास कोई विकल्प नहीं है। ईरान में दर्जन या अधिक कमांडो छिपे हैं जो तालिबान शासन के बाद अफगानिस्तान छोड़कर भाग गए थे लेकिन अभी भी उनके परिवारवाले अफगानिस्तान में फंसे हैं।” अब्दुल कहते हैं, “वे मुझसे पूछते हैं, ‘मुझे कोई समाधान दें? क्या करे? अगर हम वापस अफगानिस्तान गए तो तालिबान हमें मार डालेगा।”

अरघंडीवाल ने कहा कि भर्ती का नेतृत्व रूसी भाड़े के बल वैगनर ग्रुप ने किया था। तालिबान के सत्ता संभालने से पहले अंतिम अफगान सेना प्रमुख हिबतुल्लाह अलीजई ने कहा कि इस प्रयास में एक पूर्व अफगान विशेष बल कमांडर द्वारा भी मदद की जा रही थी जो रूस में रहता था और भाषा बोलता था। भर्ती के लिए अफगान सैनिकों को तरह-तरह के लालच दिए जा रहे हैं। जिसमें 1500 डॉलर प्रतिमाह सैलरी और परिवारवालों की सुरक्षा भी शामिल है।

रूस जिन अफगान सैनिकों को अपनी सेना में भर्ती कर रहा है, ये सभी अमेरिकी सेना के साथ प्रशिक्षित हैं। यह उस वक्त की बात है जब अमेरिकी सेना तालिबान के खिलाफ अफगानिस्तान में मौजूद थी। इन्होंने अमेरिकी सैनिकों के साथ तालिबानियों के खिलाफ जंग लड़ी थी लेकिन, हार के बाद इन्हें अफगानिस्तान से भागना पड़ा और ईरान समेत कई जगहों पर छिपना पड़ा।

अफगानिस्तान में सेवा देने वाले एक सेवानिवृत्त सीआईए अधिकारी माइकल मुलरॉय का कहना है कि ये अफगान कमांडो स्पेशली ट्रैंड हैं। ये वे भयंकर लड़ाके हैं जो पलभर में दुश्मनों की सेना में तबाही मचाकर परिणाम को पलट सकने में काबिल हैं। मैं नहीं चाहता कि वे यूक्रेन के खिलाफ जंग में उतरें।”

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