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जूंओं के पेस्ट से टायफस का टीका विकसित करने वाले रुडोल्फ वीग्ली की आज 138वीं जयंती, गूगल ने लगाया डूडल

Rudolf Weigl

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नई दिल्ली: गूगल डूडल ने Rudolf Weigl को आज का डूडल समर्पित किया है। बता दें ये वही रुडोल्फ वीग्ली हैं जिन्होंने 20वीं सदी में टायफस का टीका बना कर इस बीमारी को दुनिया से खत्म करने में सबसे महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी।

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जर्मन वीग्ल ने अपनाई थी पोलिश संस्कृति

रुडोल्फ वीग्ली का पूरा नाम रुडोल्फ स्टीफ़न जान वीग्ल था। वीग्ल का जन्म 2 सितंबर 1883 को हुआ था। वीगल की परवरिश पोलैंड के जस्लो में हुई थी। हालांकि वे एक मूल जर्मन वक्ता थे, जब परिवार पोलैंड चला गया, तो उन्होंने पोलिश भाषा और संस्कृति को अपनाया।
ग्रेजुएशन तक पढ़ाई करने के बाद वीगल नुसबौम के सहायक बन गए और उसके बाद उन्होंने प्राणीशास्त्र, तुलनात्मक शरीर रचना विज्ञान और ऊतक विज्ञान में डॉक्टरेट की उपाधि प्राप्त की।

पहले विश्व युद्ध के वक्त ही शुरू की थी रिसर्च

पहले विश्व युद्ध शुरु होने के बाद, 1914 में वीगल को ऑस्ट्रो-हंगेरियन सेना की चिकित्सा सेवा में शामिल किया गया और टाइफस और इसके कारणों पर शोध शुरू किया। शोध के दौरान उन्होंने पाया कि मनुष्यों में टाइफस के प्रेरक एजेंट ‘रिकेट्सिया प्रोवाज़ेकी’ से संक्रमित जूँ के पेट से एक टीका विकसित किया जा सकता है।

उन्होंने 1933 तक इस तकनीक को परिष्कृत किया जब उन्होंने बैक्टीरिया की खेती के लिए बड़े पैमाने पर परीक्षण किया और सूक्ष्म संक्रमण रणनीति को जूँ के साथ प्रयोग किया।

अपने प्रयोग को वीग्ली ने चार चरणों में बांट दिया। पहले चरण में लगभग 12 दिनों तक स्वस्थ जूँ का बढ़ाया जाना था। फिर दुसरे चरण में जूँ को टायफस से संक्रमित कराया गया। उसके बाद उन्हें और 5 अतिरिक्त दिनों के लिए बढ़ाने के लिए छोड़ना था जो की तीसरे चरण का हिस्सा था। चौथे चरण में जूँओं के आहार नाल के मध्य भाग को निकालना और उन्हें पीसकर पेस्ट बना लेना, इस पेस्ट को ही टीके के तौर पर इस्तेमाल किया गया।

दो बार नोबेल पुरस्कार के लिए किया गया था नामांकन

1939 में जर्मनी द्वारा पोलैंड पर आक्रमण के बाद, वीगल ने ल्विव में एक संस्थान में अपना शोध और कार्य को जारी रखा।
रुडोल्फ वीग्ली को नोबेल पुरस्कार के लिए दो बार नामांकित किया गया लेकिन दोनों बार जर्मनों के द्वारा उनका नामांकन रद्द कर दिया गया था।

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