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बलूचिस्तान में है 51 शक्तिपीठों में सबसे प्रमुख शक्तिपीठ, ‘नानी का हज’ नाम से मुस्लिम करते हैं यात्रा

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पाकिस्तान। शारदीय नवरात्रि चल रही है और हिन्दू देशों के साथ-साथ कुछ मुस्लिम राष्ट्र भी माता की भक्ति से सराबोर हैं। उन्हीं मुस्लिम देशों में से एक है पाकिस्तान। पाकिस्तान के बलूचिस्तान में इस समय माता के जयकारे गूंज रहे हैं।

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दर्शन करने विदेशी भी आते हैं

दरअसल बलूचिस्तान के लासबेला-मकरान तटीय मार्ग पर हिंगलाज माता का मंदिर स्थापित है। नवरात्रि-पर्व के दौरान पाकिस्तान में सबसे अधिक श्रद्धालु यहीं आते हैं। कोविड के चलते दो साल नवरात्रि बहुत साधारण तरीके से मनाई गई है। लेकिन इस बार यहाँ विदेशियों को भी आने की इजाजत दे दी गई है।  जिसके बाद से भारत, बांग्लादेश, सिंगापुर, बैंकॉक, थाईलैंड और अन्य कई देशों से भी भक्तों के काफिले यहाँ पहुंच रहे हैं।

‘नानी का हज’ नाम से करते हैं मुस्लिम माता के दर्शन

कहा जाता है कि जो स्थान मुस्लिमों के लिए मक्का का है, हिंदुओं के लिए हिंगलाज का भी वही स्थान है।’ माता के दर्शन के लिए स्थानीय मुस्लिम भी उतनी ही श्रद्धा के साथ जाते हैं जितनी श्रद्धा से हिन्दू। वे हिंगलाज मंदिर को ‘नानी का हज’ यानी मां के मंदिर की तीर्थयात्रा कहते हैं। पहाड़ी रास्तों से होकर जाने वाला यह मंदिर ख़ूबसूरत नजारों से भरा पड़ा है।

नवरात्रि में होता है खास आयोजन

इस बार नवरात्रि में यहाँ बड़ी संख्या में श्रद्धालुओं के स्वागत की तैयारियां की गई हैं। आयोजन समिति के प्रमुख कृष्ण लाल के अनुसार इस बार यहाँ करीब 30 हजार लोगों के आने की संभावना है। मंदिर की ओर जाने वाली सड़कों पर कालीन बिछाई गई है, साथ ही श्रद्धालुओं के रूकने व ठहरने के लिए व्यापक व्यवस्था की गई है। उन्होंने बताया कि ‘इस समय यहाँ दिन-रात भंडारा चल रहा है।’

तीर्थयात्रा के लिखित प्रमाण 14वीं सदी

मंदिर के  इतिहास और उसके पौराणिक महत्व की बात करें तो तीर्थयात्रा के लिखित प्रमाण 14वीं सदी से मिलते हैं, लेकिन कहा जाता है कि इसकी यात्रा का इतिहास इससे कहीं अधिक प्राचीन है। इस यात्रा पर श्रद्धालु पैदल ही आते हैं। ऐसा माना जाता है कि यहाँ की गर्मी में शरीर को तपाने से सारे पाप धुल जाते हैं। आत्मा का शुद्धिकरण होता है। उसके बाद हिंगोल नदी में स्नान करके मां के दर्शन करते हैं, जिससे उन्हें पुनर्जन्म की सी अनुभूति होती है।’

बंटवारे के बाद कई बार यात्रा रोकी गई

नवरात्रि का आयोजन सिंध व बलूचिस्तान के हिंदुओं की समिति हिंगलाज शिव मंडली करती है। आयोजक प्रकाश कुमार के अनुसार बंटवारे से 20 वर्ष पहले इस मंडली को बनाया गया था। फिर भारत-पाक युद्ध के बाद कई बार तीर्थयात्रा बंद की गई। लेकिन 1986 में 125 तीर्थयात्रियों के साथ शुरू की गई इस यात्रा में अब पहले की तरह ही हजारों लोग आते हैं।’

बलूचिस्तान प्रांत की प्रांतीय विधानसभा के सदस्य श्याम लाल ने बताया कि ‘तीर्थयात्रियों की सुरक्षा के लिए अतिरिक्त जवानों को भी तैनात कर दिया गया है। इस बीच, स्थानीय सरकार ने तीर्थयात्रियों के लिए मुफ्त चिकित्सा शिविर लगाए हैं, जहाँ उन्हें कोरोना वैक्सीन भी दी जाएगी।’

गुलाब और चमेली के फूल किए जाते हैं अर्पित

भक्त 300  फीट की ऊँचाई पर स्थित चंद्रगुप और खंडेवरी ज्वालामुखी पर नारियल और फूल चढ़ाते हैं। उसके बाद नजदीक में ही स्थित हिंगोल नदी में स्नान करके मां के दर्शन करते हैं। यहाँ मां को गुलाब और चमेली के फूल अर्पित किए जाते हैं।

51 शक्तिपीठों में यह सबसे प्रमुख शक्तिपीठ

कहा जाता है कि सती के हवन-कुंड में दाह होने के बाद दुनिया को भगवान शिव के तांडव से बचाने के लिए विष्णु ने सुदर्शन चक्र से सती के पार्थिव शरीर को कई खंडों में विभाजित कर दिया था। ये खंड जिन-जिन स्थानों पर गिरे, वे शक्तिपीठ कहे गए। हिंगलाज पहाड़ी पर देवी का सिर गिरा था, इसलिए कुल 51 शक्तिपीठों में यह सबसे प्रमुख माना जाता है।

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