
फटाफट पढ़ें
- सरकार का हटाने का कोई इरादा नहीं
- कोई कानूनी प्रक्रिया शुरू नहीं हुई
- सुप्रीम कोर्ट ने संशोधन बरकरार रखा
- ‘समाजवादी’ कल्याणकारी राज्य का प्रतीक
- ‘पंथनिरपेक्ष’ संविधान की मूल भावना
Constitution : कानून मंत्री अर्जुनराम मेघवाल ने साफ किया है कि सरकार का संविधान की प्रस्तावना में ‘समाजवादी’ और ‘पंथनिरपेक्ष’ शब्द हटाने का कोई इरादा नहीं है. अदालत ने भी कहा है कि ‘समाजवादी’ शब्द कल्याणकारी राज्य को सोच को दर्शाता है, जबकि ‘धर्मनिरपेक्ष’ संविधान की मूल भावना का हिस्सा है.
सरकार ने संसद में बताया कि संविधान की प्रस्तावना में ‘समाजवादी’ और ‘पंथनिरपेक्ष’ शब्दों पर पुनर्विचार करने या उन्हें हटाने की कोई योजना वर्तमान में नहीं है. सरकार ने यह भी स्पष्ट किया कि इन शब्दों को प्रस्तावना से हटाने के लिए उसने कोई औपचारिक कानूनी या संवैधानिक प्रक्रिया शुरू नहीं की है. यह जानकारी कानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल ने राज्यसभा में एक प्रश्न के लिखित उत्तर के माध्यम से दी.
राजनीतिक क्षेत्रों में इस पर चर्चा या बहस हो सकती
कानून मंत्री अर्जुनराम मेघवाल ने कहा कि कुछ सार्वजनिक या राजनीतिक क्षेत्रों में इस पर चर्चा या बहस हो सकती है, लेकिन इन शब्दों के संशोधन के संबंध में सरकार द्वारा किसी औपचारिक फैसले या प्रस्ताव की घोषणा नहीं की गई है.
कोई कानूनी प्रक्रिया शुरू नहीं हुई
कानून मंत्री ने कहा कि सरकार का आधिकारिक रुख यह है कि संविधान की प्रस्तावना में ‘समाजवादी’ और ‘धर्मनिरपेक्ष’ शब्दों पर पुनर्विचार करने या उन्हें हटाने की फिलहाल कोई योजना या इरादा नहीं है. मंत्री ने यह भी स्पष्ट किया कि प्रस्तावना में संशोधन को लेकर किसी भी चर्चा के लिए गहन विचार-विमर्श और व्यापक सर्व-सम्मति की आवश्यकता होगी, लेकिन अब तक सरकार ने इन प्रावधानों में बदलाव करने के लिए कोई औपचारिक प्रक्रिया शुरू नहीं की है.
अर्जुनराम मेघवाल ने बताया कि नवंबर 2024 में, सुप्रीम कोर्ट ने 1976 के 42वें संविधान संशोधन को चुनौती देने वाली याचिकाओं को यह कहते हुए खारिज कर दिया कि संविधान में संशोधन करने की संसद की शक्ति प्रस्तावना तक विस्तारित है.
निजी क्षेत्र के विकास में कोई बाधा नहीं डालता
न्यायालय ने यह स्पष्ट किया कि भारतीय संदर्भ में ‘समाजवादी’ शब्द एक कल्याणकारी राज्य (शासन) को दर्शाता है और यह निजी क्षेत्र के विकास में कोई बाधा नहीं डालता है, जबकि ‘पंथनिरपेक्ष’ संविधान के मूल ढांचे का अभिन्न हिस्सा है.
कुछ समूह कर रहे हैं पुनर्विचार की वकालत
वहीं कुछ सामाजिक संगठनों के पदाधिकारियों द्वारा बनाए गए माहौल के बारे में अर्जुनराम मेघवाल ने कहा कि हो सकता है कि कुछ समूह अपनी राय व्यक्त कर रहे हों, या इन शब्दों पर पुनर्विचार की वकालत कर रहे हों. उन्होंने यह भी कहा कि ऐसी गतिविधियाँ मुद्दे पर सार्वजनिक विमर्श का माहौल तो बना सकती हैं, लेकिन यह जरूरी नहीं कि सरकार के आधिकारिक रुख या कार्रवाई को प्रतिबिंबित करे.
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