मानसून की बारिश शुरू होते ही बागेश्वर जिले के कई इलाकों में हुड़किया बौल के साथ धान की रोपाई शुरू हो गई है। हुड़किया बौल की पुरानी परंपरा लोक संगीत और सामूहिक श्रम से जुड़ी है। हुड़किया बौल में स्थानीय देवी देवताओं और वीरों की वंदना करते हुए धान की रोपाई की जाती है।
मानसून की बारिश के साथ ही बागेश्वर में परंपरागत हुड़किया बौल के साथ धान की रोपाई शुरू हो गई है। जिले के कपकोट, बागेश्वर सहित गरुड़ घाटी के कई गांवों में हुड़किया बौल के साथ धान की रोपाई भी शुरू हो गई है। हुड़किया बौल पहाड़ की समृद्ध सांस्कृतिक परंपरा है। इसमें पहले भूमि के देवता भूमियां, पानी के देवता इंद्र, छाया के देव मेघ की वंदना से शुरुआत होती है।
फिर हास्य और वीर रस पर आधारित राजुला मालूशाही, सिदु-बिदु, जुमला बैराणी जैसे वीरों की पौराणिक गाथाएं गाई जाती हैं। हुड़के को थाप देता कलाकार गीत गाता है, जबकि रोपाई लगाती महिलाएं उसे दोहराती हैं। हुड़के की थाप और अपने बोलों से कलाकार काम में लगी महिलाओं को प्रेरित करने का प्रयास करता है। गीत के बोलों पर नाचती गाती महिलाएं धान की रोपाई को उत्सव सरीखा बना देती हैं।
जिलाधिकारी बागेश्वर अनुराधा पाल ने इस परंपरा के साथ धान की रोपाई कर रही महिलाओं को बधाई देते हुए खुद भी हुड़किया बौल के साथ धान की रोपाई करने की इच्छा जाहिर की है। देवभूमि की संस्कृति में हुड़किया बौल की परंपरा सचमुच अपने आप में अनूठी है। जिसे आज भी ग्रामीण संजोए हुए हैं। हुड़किया बौल सामुदायिक एकता का भी संदेश देती है। जो खेती के कठिन श्रम के काम को सरल और आनंद से परिपूर्ण कर देती है।
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