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किसानों के बीच आक्रोश और बेचैनी के लिए पंजाब नहीं, भाजपा जि़म्मेदार: कैप्टन अमरिंदर सिंह

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चण्डीगढ़:  कैप्टन अमरिन्दर सिंह ने कहा कि कोविड की महामारी के दरमियान भाजपा के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार द्वारा थोपे गए अलोकतांत्रिक कृषि कानूनों के सम्बन्ध में समूचे देश की संवेदना किसानों के साथ है। उन्होंने कहा कि इन कानूनों को रद्द करने से इन्कार करने की भाजपा की हठधर्मी यह सिद्ध करती है कि इसमें भाजपा और उनकी लीडरशिप के संकुचित हित छिपे हुए हैं, जो एक बार फिर आम आदमी पर अपने पूँजीपति मित्रों का प्रभाव डालना चाहती है।

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कृषि कानून रद्द करो: कैप्टन अमरिन्दर सिंह

सीएम ने कहा कि कृषि क्षेत्र में आपकी पार्टी द्वारा पैदा की गई गड़बड़ी के लिए पंजाब को जि़म्मेदार ठहराने की बजाय आप कृषि कानून रद्द करो। उन्होंने चेतावनी दी कि अलग-अलग राज्यों में होने वाले आगामी विधान सभा चुनावों और इसके बाद अन्य चुनावों के दौरान भाजपा को अपने गुनाहों की कीमत चुकानी पड़ेगी। खट्टर सरकार द्वारा किसानों के आंदोलन को जबरन ख़त्म करने की बार-बार की जा रही कोशिशों और भाजपा के अलग-अलग नेताओं द्वारा किसानों के लिए अपमानजनक शब्दों का इस्तेमाल करना, उनकी पार्टी पर ही उल्टा पड़ेगा। 

खट्टर सरकार द्वारा किसानों के आंदोलन को जबरन ख़त्म करने की बार-बार की जा रही कोशिश

यह याद करते हुए कि किसानों ने दिल्ली की सरहदों की तरफ कूच करने से पहले दो महीने पंजाब भर में रोष प्रदर्शन किए थे, मुख्यमंत्री ने कहा कि उनके राज्य में इस समय के दौरान हिंसा की एक भी घटना नहीं देखी गई। उन्होंने आगे कहा ‘‘हाल ही में, जब गन्ना किसानों ने विरोध प्रदर्शन किए तो हमने उनको दबाने के लिए ताकत का अंधाधुन्ध प्रयोग करने की बजाय उनके साथ बातचीत की और मसला हल किया।’’

हम किसान विरोधी कानूनों के खि़लाफ़ किसानों के साथ डटकर खड़े : सीएम

कैप्टन अमरिन्दर ने कहा कि वह और उनकी सरकार किसान विरोधी कानूनों के खि़लाफ़ किसानों के साथ डटकर खड़े हैं और यहाँ तक कि भाजपा की बेरुख़ी के कारण दिल्ली की सरहदों पर जान गंवाने वाले किसानों के परिवारों को पंजाब सरकार द्वारा मुआवज़ा और नौकरियाँ भी दी जा रही हैं। उन्होंने कहा, ‘‘एक सरकार या एक राजनैतिक पार्टी जो अपनी निगरानी अधीन ऐसी घटनाओं के घटने और कीमती जीवन के नुकसान होने की आज्ञा देती हो, ज़्यादा देर टिक नहीं सकती।’’ उन्होंने भाजपा को सख़्त चेतावनी देते हुए कहा कि इससे पहले कि बहुत देर हो जाए, अपने अंहकार को छोडक़र देश के अन्नदाता की तकलीफ़ों की तरफ ध्यान दो। रिपोर्ट- ईशा ठाकुर

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