कोलकाता। कलकत्ता हाई-कोर्ट के नये आदेश से पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की मुश्किलें बढ़ सकती हैं। गुरुवार को कोर्ट ने पश्चिम बंगाल में चुनाव के बाद हुई हिंसा की निष्पक्ष जांच की मांग वाली जनहित याचिकाओं पर फैसला सुना दिया है।
कोर्ट ने कहा कि, “CBI मामले की जांच करे, इसके लिए एक SIT (special investigation team) टीम भी बनाई जाए, जिसका गठन पश्चिम बंगाल के आईपीएस अधिकारियों की अगुवाई में हो। CBI केवल हत्या और रेप के मामलों की जांच करेगी, जबकि दूसरे मामलों की जांच SIT करेगी। कोर्ट सभी जांचों पर नज़र रखेगी। कोर्ट ने राज्य सरकार को आदेश भी दिया, कि वह हिंसा से पीड़ित लोगों को मुआवजा देने की भी व्यवस्था करे।
इस बारे में कोर्ट ने CBI और SIT से 6 हफ्ते में स्टेटस रिपोर्ट भी पेश करने के लिए कहा है। कोर्ट ने राज्य सरकार और चुनाव आयोग को फटकार लगाते हुए कहा, कि राज्य सरकार जांच कराने में नाकाम रही है। चुनाव आयोग ने भी अपनी ज़िम्मेदारी ठीक से नहीं निभाई। कोलकाता पुलिस कमिश्नर सोमेन मित्रा भी इस जांच में शामिल होंगे।
पुलिस ने कहा था कि इस हिंसा में 17 लोग मारे गये हैं। जबकि भाजपा का कहना था कि उनके कार्यकताओं की मृत्यु अधिक संख्या में हुई है। भाजपाओं द्वारा तैयार की गई सूची के मुताबिक चुनाव के बाद हत्या, हिंसा, आगजनी और लूटपाट की घटनाओं की संख्या 273 थी।
जबकि ममता ने आरोप लगाया था, कि भाजपा के जीते हुए क्षेत्रों में ज्यादा हिंसा हुई थी।
जिस दिन बंगाल के चुनावी नतीजे आए थे, उस दिन कोलकाता में BJP दफ्तर को आग लगा दी गई थी। और उसके अगले दिन ख़बर आई थी, कि 2 पार्टी कार्यकर्ताओं को पीट-पीटकर मार डाला गया है। विपक्षी पार्टी के कार्यकर्ताओं पर हमले होने के मामले में गृह मंत्रालय ने बंगाल सरकार से रिपोर्ट भी मांगी थी।
हिंसा की जांच कर रही, राष्रीमाय मानवाधिकार आयोग (NHRC) की टीम ने 15 जुलाई को कलकत्ता हाई कोर्ट को 50 पन्नों की अपनी अंतिम रिपोर्ट सौंपी थी। जिसके आधार पर
कलकत्ता के मुख्य न्यायाधीश राजेश बिंदल और न्यायमूर्ति आईपी मुखर्जी, हरीश टंडन, सौमेन सेन और सुब्रत तालुकदार की अध्यक्षता वाली पीठ ने फैसला सुनाया था।
13 जुलाई को राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने हाईकोर्ट में रिपोर्ट पेश करते हुए कहा था कि “बंगाल में कानून का शासन नहीं, बल्कि शासक का कानून चलता है। बंगाल हिंसा के मामलों की जांच राज्य से बाहर कराई जाए।“
कुछ न्यूज चैनल्स और वेबसाइट्स पर रिपोर्ट का खुलासा होने से ममता बनर्जी ने ऐतराज जताते हुए कहा कि,”आयोग को न्यायपालिका का सम्मान करना चाहिए था और इस रिपोर्ट को लीक नहीं करना चाहिए था। इसे केवल कोर्ट के सामने ही रखना चाहिए था।“
1. बंगाल चुनाव के बाद हुई हिंसा के मामलों की जांच CBI से कराई जाए।
2. कई दिनों तक चलने वाली, बड़े स्तर पर हुई हिंसा से पता चलता है कि राज्य सरकार कितनी उदासीन है।
3. पता लगा है कि ये हिंसाएं सत्ताधारी पार्टी का समर्थन मिलने से हुई हैं। जिन लोगों ने चुनाव के दौरान दूसरी पार्टियों को समर्थन दिया था, ये हिंसाएं उन लोगों से बदला लेने के लिए की गईं थीं।
4. बंगाल की पुलिस और कुछ अधिकारी हिंसा की घटनाएं होते देखते रहे और कुछ तो इन घटनाओं में खुद भी शामिल रहे हैं।
कोर्ट ने मामले की सुनवाई की अगली तारीख 24 अक्टूबर को दी है। चीफ जस्टिस राजेश बिंदल, जज जस्टिस आई पी मुखर्जी, जज जस्टिस हरीश टंडन, जज जस्टिस सौमेन सेन और जज जस्टिस सुब्रत तालुकदार की पीठ ने मामले में फैसला सुनाया।
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