रांची: नेशनल क्राइम ब्यूरो के आंकड़ों के अनुसार 2001 से 2019 के बीच अब तक 575 महिलाओं को ‘डायन’ कहकर उनके साथ अत्याचार और मारपीट की गई है। ये आंकडे तो दर्ज हुए है लेकिन हजारों ऐसे मामले है जो किसी थाने या किसी संस्था के आंकड़ों में दर्ज नही हो पाए है। भारत में आज भी ग्रामीण इलाकों में ऐसी कुप्रथाओं का चलन है।
इन सब के बीच एक नाम सामने आता है जिन्होंने इस कुप्रथा के दंश को झेलकर समाज को बेहतर करने के लिए कदम उठाए। झारखंड की छुटनी महतो को राष्ट्रपति ने पद्मश्री से पुरस्कृत किया है। जादू-टोने और डायन जैसे कुप्रथा का जुल्म झेलने वाली औरतों के लिए छुटनी बीस सालों से काम कर रही है। छुटनी महतो उर्फ शेरनी एक पुनर्वास केंद्र चलाती हैं जहां बेसहारा औरतों की देखभाल की जाती है। समाज के लिए उनके समर्पण को देखकर उन्हें पद्मश्री से नवाजा गया।
छुटनी महतो ने बताया कि एक समय ऐसा था जब उन्हें भी डायन कहकर ससुराल वालों ने घर से निकाल दिया था। हिंदूस्तान टाइम्स से उन्होंने कहा कि पहले पंचायत ने मुझ पर 500 रुपये का जुर्माना लगाया। छह महीने बाद उन्होंने मुझे पीटा और जान से मारने की कोशिश की। मैं भाग गई। मैं पुलिस के पास भी गई पर उन्होंने शिकायत लिखने के लिए मुझसे 10 हजार रुपये मांगे। किसी ने मेरा साथ नहीं दिया।”
छुटनी बताती हैं कि अब तक उन्होंने 125 महिलाओं को समाज के इस कुप्रथा से बचाया है, इसके साथ ही उन्होंने बताया कि इस मुहिम में उनकी मदद पश्चिम सिंहभूम जिले एक डिप्टी कमिशनर अमीर खरे ने की। बता दें छुटनी महतो के जीवन से प्रेरणा लेकर साल 2014 में काला सच: दि डार्क ट्रुथ नाम की फिल्म भी आ चुकी है।
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