NDA MPs on Emergency
NDA MPs on Emergency: देश की संसद में स्पीकर ओम बिरला द्वारा दिए गए भाषण के बाद इमरजेंसी का मुद्दा एक बार फिर गर्मा गया है. इस मुद्दे पर आरोप प्रत्यारोप की राजनीति जारी है. इसको लेकर सत्ता पक्ष के सांसदों ने भी अपनी बात रखी. सांसद कंगना ने कांग्रेस पर तंज कसते हुए कहा कि जो अपनी दादी और पिताजी के नाम पर वोट बटोरते हैं उन्हें इसकी जिम्मेदारी भी लेनी चाहिए. वहीं सांसद राजीव रंजन उर्फ ललन सिंह ने कहा कि संविधान बदलने वाले और संविधान को खतरे में डालने वाले लोग आज संविधान की बात कर रहे हैं.
दिल्ली में केंद्रीय मंत्री राजीव रंजन (ललन) सिंह ने कहा, “इमरजेंसी तो 26 जून 1975 में ही लगी थी और हम सब इमरजेंसी में जेल में थे. आज जो कांग्रेस के लोग संविधान के खतरे की बात कर रहे हैं, संविधान तो 1975 में खतरे में हुआ था. जब देश में आपातकाल लागू किया गया था तो सारे मौलिक अधिकार जब्त हो गए. संविधान बदलने वाले और संविधान को खतरे में डालने वाले लोग आज संविधान की बात कर रहे हैं.
दिल्ली में केंद्रीय मंत्री किरेन रिजिजू ने कहा, 26 जून 1975 को तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने आपातकालीन कैबिनेट बैठक बुलाई और बाद में इसकी पुष्टि की. प्रधानमंत्री ने अकेले ही निर्णय लिया. इसलिए आज हमने सदन में प्रस्ताव पारित किया है कि संविधान को इस तरह से रौंदने, ध्वस्त करने की अनुमति फिर नहीं दी जाएगी। इसलिए, हमने एक संकल्प लिया है।
दिल्ली में केंद्रीय मंत्री चिराग पासवान ने कहा, इमरजेंसी एक ऐसा दौर था जिसे इतिहास में एक कालेखंड के तौर पर देखा गया। जिस तरह से इमरजेंसी के दौर में पूरे देश को बंदी बनाने का प्रयास किया गया, देश पर तानाशाही थोपने का प्रयास किया गया. वर्तमान और आने वाली पीढ़ियों को इससे सीख लेने की जरूरत है.
दिल्ली में केंद्रीय गृह राज्य मंत्री नित्यानंद राय ने कहा, 26 जून एक ऐसा दिन है जब इंदिरा गांधी जी द्वारा लोकतंत्र की धज्जियां उड़ाकर लोकतंत्र की हत्या कर दी गई थी और देश में इमरजेंसी लागू की गई थी। लोगों के अधिकारों को छीन लिया गया था लेकिन देश के युवाओं, किसान, महिलाओं ने एक ऐसा सशक्त आंदोलन खड़ा किया और आजादी की दूसरी लड़ाई लड़कर फिर अपने संविधान के विचार के अनुरूप भारत में लोकतंत्र की स्थापना कर लोगों को आजादी दी और उनको अवसर दिया.
दिल्ली में इमरजेंसी के 50 साल पूरे होने पर भाजपा सांसद कंगना रनौत ने कहा, “जो सबसे ज्यादा संविधान की दुहाइयां देते हैं उनको इस बात की भी जिम्मेदारी लेनी चाहिए। वो अपनी दादी और पिताजी ने नाम पर वोट बटोरते हैं तो क्या वे उनके किए कारनामों की भी जिम्मेदारी लेते हैं? आज जो संविधान की सबसे ज्यादा दुहाइयां देते हैं वे खुद का भी ट्रैक रिकॉर्ड देखें।
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