Criminal Law: हाल ही राष्ट्रपति की मंजूरी के बाद बने तीन नए आपराधिक कानून संशोधन अधिनियमों- भारतीय न्याय संहिता, भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता और भारतीय साक्ष्य अधिनियम को चुनौती देते हुए सुप्रीम कोर्ट के समक्ष एक जनहित याचिका (पीआईएल) दायर की गई है। बता दें कि भारतीय न्याय संहिता, भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता और भारतीय साक्ष्य अधिनियम क्रमशः भारतीय दंड संहिता (आईपीसी), आपराधिक प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) और भारतीय साक्ष्य अधिनियम की जगह लेंगे।
तीनों कानून भारत की आपराधिक न्याय प्रणाली में आमूल-चूल परिवर्तन लाने का प्रयास करता हैं और इन्हें 25 दिसंबर को भारत के राष्ट्रपति की सहमति मिलने से पहले पिछले साल शीतकालीन सत्र में संसद द्वारा पारित किया गया था। राष्ट्रपति भवन की वेबसाइट पर अधिसूचित किया गया था, लेकिन अभी तक भारत के राजपत्र में प्रकाशित नहीं किया गया है क्योंकि नियम अभी तक तैयार नहीं हुए हैं।
विशाल तिवारी की याचिका में इस बात पर जोर दिया गया है कि कानून में कई खामिया और विसंगतिया है। साथ ही विधि आयोग की सिफारिशों की अनदेखी करते हैं। याचिकाकर्ता ने बताया, “तीनों आपराधिक कानून बिना किसी संसदीय बहस के पारित और अधिनियमित किए गए क्योंकि दुर्भाग्य से इस अवधि के दौरान अधिकांश सदस्य निलंबित थे”
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