राजधानी दिल्ली में केंद्र सरकार द्वारा लाए गए अध्यादेश के खिलाफ दिल्ली की केजरीवाल सरकार ने मोर्चा खोल दिया है। दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल अन्य विपक्षी दलों से अध्यादेश का विरोध करने की मांग कर रहे हैं। इसके लिए सीएम केजरीवाल अलग-अलग राज्यों के मुख्यमंत्रियों और राजनेताओं से मुलाकात कर रहे हैं। इसी कड़ी में सीएम केजरीवाल ने आज यानी बुधवार (14 जून) को कम्युनिस्ट पार्टी के महासचिव डी राजा से मुलाकात की है। सीएम केजरीवाल ने डी राजा के साथ संयुक्त प्रेस वार्ता की है।
सीएम केजरीवाल ने डी राजा का धन्यवाद किया। उन्होंने कहा कि हमारा पुराना रिश्ता है। मैं बहुत-बहुत शुक्रिया अदा करता हूं कि सीपीआई ने अपना समर्थन दिया है। दिल्ली के 2 करोड़ लोगों का ये जनतांत्रिक अधिकार है कि जिस सरकार को वो चुनकर भेजें , उसका सरकार को काम करने की सारी शक्तियां होनी चाहिए, ये एक बेसिक जनतांत्रिक अधिकार है, जिसको छीना गया है। आज सीपीआई ने दिल्ली के लोगों के लिए अपनी सपोर्ट जाहिर की है। इसके लिए मैं आपका शुक्रिया अदा करता हूं।
सीएम केजरीवाल ने कहा जितना मैं स्टडी कर रहा हूं, मैं ये देख रहा हूं कि अगर किसी को ये लगे कि दिल्ली हाफ स्टेट है इसलिए दिल्ली के लिए ऑर्डिनेंस आया है। ऐसा नहीं है, इस तरह का ऑर्डिनेंस राजस्थान, पंजाब, हरियाणा, तमिलनाडु केरल के लिए भी आ सकता है। कोई भी फुल स्टेट की सरकार ये ना समझे कि ये दिल्ली का मामला है। दिल्ली से तो इन्होंने शुरूआत की है, दिल्ली एक प्रयोग है। अगर दिल्ली में इसको नहीं रोका गया तो कल जहां-जहां नॉन बीजेपी सरकारें बनेंगी, वहां-वहां ऐसा ऑर्डिनेंस आएगा, मुझसे लिखवा लीजिए, तो सबको मिलकर इसका विरोध करना है।
उन्होंने बताया कि इसके कुछ प्रावधान है, जो अभी तक जनता के बीच में नहीं आए हैं। इन्होंने केवल सुप्रीम कोर्ट के आदेश को ही खारिज नहीं किया, इसमें तीन और प्रावधान डाली हैं, जिससे दिल्ली सरकार लगभग खत्म हो जाती है। इसमें लिखा है कि कोई मंत्री अपने सचिव को आदेश देगा तो सचिव को शक्ति दे दी गई है कि सचिव तय करेगा मंत्री का आदेश कानूनी रूप से ठीक है या गलत है। अगर सचिव को लगता है कि मंत्री का आदेश लीगलि ठीक नहीं है तो वो सचिव मंत्री का आदेश मानने से इनकार कर सकता है, ये दुनिया के अंदर पहली बार हो रहा है।
सीएम केजरीवाल ने अध्यादेश को लेकर बताया कि एक इसमें प्रावधान है, मुख्य सचिव को ये पावर दे दी गई है कि वो तय करेगा कि कैबिनेट का कौन सा निर्णय लीगल है या इनलीगल है। राज्य की कैबिनेट सुप्रीम होती है। आज भारत के इतिहास में ऐसा कभी नहीं हुआ। एक और इसमें प्रावधान है, जितने कमिशन, प्राधिकरण, बोर्ड, उन सबका गठन अब केंद्र सरकार करेगी। लगभग 50 से ज्यादा कमिशन हैं, उनका गठन केंद्र सरकार करेगी तो दिल्ली सरकार क्या करेगी। चुनाव क्यों कराते हो, तो ये बहुत ही खतरनाक अध्यादेश है। ये गलत नियत के साथ बनाया गया है।
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