पटना: शराबबंदी, नशा, शराब, ज़हर जैसी शराब के पीछे भागते लोग, मरते लोग, रोती-बिलखती जिंदगियां, चीखते-पुकारते परिवार।
बिहार में पिछले लगभग एक महीने से जहरीली शराब के सेवन से 65 से अधिक लोगों की मौत हो गई हैं। प्रदेशभर में हाहाकार मचा हुआ है। परिवार तबाह हो गए हैं, कुछ तबाही की कगार पर हैं।
राज्य में पिछले पांच सालों से शराबबंदी है। सूबे की नीतीश सरकार जिसकी वाहवाही आए साल लूटती आई है। लेकिन हाल के दिनों में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की सुशासन वाली सरकार एक बार फिर से सवालों के घेरे में हैं।
कहने को तो बिहार ड्राई स्टेट माना जाता है लेकिन बिहार ही देशभर में ऐसा प्रदेश है जहां अक्सर जहरीली शराब पीने से हज़ारों लोगों की मौत होती है।
छट पूजा के बाद 16 नवंबर को मुख्यमंत्री ने शराबबंदी कानून को लेकर समीक्षा बैठक की थी। बैठक में बड़े अधिकारियों से लेकर आला मंत्री भी शामिल थे। लेकिन बैठक के बाद की रिपोर्ट जनता से साझा नहीं की गई।
गौर करने वाली बात ये है कि मुख्यमंत्री ने एक सामाजिक जरूरत और जागरूकता अभियान जैसे कार्य को पॉलिटिकल ढांचा देने की कोशिश की है।
क्योंकि अगर धरातल पर बात की जाए तो आंकड़े जवाब देते हैं कि बिहार एक ऐसा राज्य है जहां सबसे ज्यादा शराब बनती और बिकती हैं। और उसके बाद सामने आता है ज़हर से खत्म होते आशियाने।
राजनीतिक तौर पर देखा जाए तो मुख्यमंत्री की ओर से ये कोशिश महिला वोट को अपनी ओर झुकाने की हो सकती है। क्योंकि महिलाएं ही ऐसा टारगेट होती हैं जिनके वोटों को चुनाव के दौरान आसानी से पॉलिटिकल पार्टियां अपनी ओर खींच लेती हैं।
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