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Ujjain News: सोमवती अमावस्या 30 वर्ष बाद बना कुंभ राशि में चंद्र शनि सूर्य का संयोग

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फाल्गुन मास की सोमवती अमावस्या पर सोमवार यानी आज मोक्षदायिनी शिप्रा व सोमकुंड में श्रद्धालु पर्व स्नान के लिए पहुंच रहे हैं। श्रद्धालु तीर्थ स्नान के बाद दान पुण्य कर रहे हैं। मंदिरों में भी दर्शनार्थियों का तांता लगा हुआ है। सोमकुंड पर स्नान के लिए फव्वारे लगाए गए हैं। ज्योतिषाचार्य पं.अमर डब्बावाला ने बताया स्कंद पुराण के अवंती खंड में सोमेश्वर तीर्थ की पारंपरिक मान्यता है। सोमवार के दिन अमावस्या आने पर यहां पर सोमेश्वर का पूजन किया जाता है। स्नान की परंपरा तथा दान की मान्यता यहां पर बताई गई है। बच्चों की जन्म कुंडली में चंद्रमा का कमजोर होने से वायव्य प्रभाव परिलक्षित होता है, इस दोष को दूर करने के लिए चंद्रमा की वस्तुओं का दान या सफेद वस्तुओं का दान जैसे कच्चा दूध, आटा, साबूदाना, शक्कर आदि का यथा विधि दान करने से एवं सोम तीर्थ पर पूजन अभिषेक करने से अनुकूलता प्राप्त होती है।

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27 नक्षत्रों में पंचक के 5 नक्षत्र प्रमुख

नक्षत्र मेखला की गणना के अनुसार यदि हम बात करें तो 27 नक्षत्रों में पंचक के 5 नक्षत्र प्रमुख होते हैं। जिनमें से धनिष्ठा नक्षत्र की विशिष्टता शास्त्र के द्वारा बताई जाती है। ऐसी मान्यता है कि अमावस्या तिथि पर यदि धनिष्ठा नक्षत्र आता हो तो लक्ष्मी जी की साधना करना श्रेष्ठ है। जिसके अंतर्गत कनकधारा स्तोत्र लक्ष्मी स्तोत्र पाठ के द्वारा माता की प्रसन्नता की जा सकती है।पितरों की कृपा प्राप्त करने का यह श्रेष्ठ दिन सोमवती अमावस्या पर पितरों के निमित्त तर्पण पिंडदान करना चाहिए। गाय को घास खिलाना चाहिए, वहीं ब्राह्मणों को सीधा दान भी देने की परंपरा है। ऐसी मान्यता है कि यह पितरों के निमित्त करने से वंश की वृद्धि, पारिवारिक सुख शांति होती है कलह निवृत्त होता है।

ग्रह गोचर की मान्यता के अनुसार देखें तो शनि का एक राशि में परिवर्तन ढाई साल के बाद होता है। पुनः इसी राशि में आने में तकरीबन 30 वर्ष का समय लगता है। इस दृष्टिकोण से शनि का कुंभ राशि में आना और फाग मास के कृष्ण पक्ष की अमावस्या पर सूर्य , चंद्र के साथ युति बनाना पितृ कर्म के दृष्टिकोण से विशेष माना जाता है। यही साधना के लिए भी अनुकूल बताया गया है।

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