एक बार दिल्ली की सियासी हवाओं में नए रंग घुलते दिखाई दे रहे हैं। आपको बता दें कि मिली जानकारी के मुताबिक अब दिल्ली की राजनीति में सामाजिक कार्यकर्ता अन्ना हजारे ने एंट्री मार दी है। सामाजिक कार्यकर्ता अन्ना हजारे ने दिल्ली के CM अरविंद केजरीवाल को पत्र लिखा है और उनकी शराब नीति की आलोचना की है।
हजारे ने केजरीवाल की किताब स्वराज का जिक्र करते हुए कहा कि आपने स्वराज नाम की किताब लिखी और इसकी प्रस्तावना मुझसे लिखवाई। मेरे गांव रालेगन सिद्धि आए, मेरे गांव में 35 साल से कोई शराब बिक्री नहीं है और ना ही तम्बाकू बिक्री है।इसी कड़ी में कहा कि आज आप दिल्ली में क्या कर रहे हैं? आपके सीएम बनने के बाद पहली बार लिख रहा हूं ।
हजारे ने केजरीवाल के लिए अपने पत्र में लिखा कि आपके मुख्यमंत्री बनने के बाद पहली बार मैं आपको खत लिख रहा हूं। पिछले कई दिनों से दिल्ली राज्य सरकार की शराब नीति के बारे में जो खबरें आ रही हैं, वह पढ़कर बड़ा दुख होता है। गांधीजी के ‘गांव की ओर चलो इन विचारों से प्रेरित होकर मैंने अपना पूरा जीवन गांव, समाज और देश के लिए समर्पित किया है। पिछले 47 सालों से ग्राम विकास के लिए काम और भ्रष्टाचार के विरोध में जन आंदोलन कर रहा हूं।
महाराष्ट्र में 35 जिलों में 252 तहसील में संगठन बनाया। भ्रष्टाचार के विरोध में और व्यवस्था परिवर्तन के लिए लगातार आंदोलन किए। इस कारण महाराष्ट्र में 10 कानून बन गए। शुरू में हमने गांव में चलने वाली 35 शराब की भट्टियां बंद कीं।
अन्ना ने पत्र में कहा कि आप लोकपाल आंदोलन के कारण हमारे साथ जुड़ गए। तब से आप और मनीष सिसोदिया कई बार रालेगणसिद्धी गांव में आ चुके हैं। गांववालों का किया हुआ काम आपने देखा है। पिछले 35 साल से गांव में शराब, बीड़ी, सिगरेट की बिक्री नहीं हैं। यह देखकर आप प्रेरित हुए थे। आप ने इस बात की प्रशंसा भी की थी।
राजनीति में जाने से पहले आपने ‘स्वराज’ नाम से एक किताब लिखी थी। इस किताब की प्रस्तावना आपने मुझसे लिखवाई थी। इस ‘स्वराज’ नाम की किताब में आपने ग्रामसभा, शराब नीति के बारे में बड़ी-बड़ी बातें लिखी थीं। किताब में आपने जो लिखा है, वह आप को याद दिलाना चाहता हूं।
आपने लिखा था, ‘वर्तमान समय में शराब की दुकानों के लिए राजनेताओं की सिफारिश पर अधिकारियों द्वारा लाइसेंस दे दिया जाता है। वे रिश्वत ले कर लाइसेंस देते हैं। शराब की दुकानों की कारण भारी समस्याएं पैदा होती हैं। लोगों का पारिवारिक जीवन तबाह हो जाता हैं। विडम्बना यह है कि, जो लोग इससे सीधे तौर पर प्रभावित होते हैं, उन्हें इस बात के लिए कोई नहीं पूछता कि क्या शराब की दुकान खुलनी चाहिए या नहीं? इन दुकानों को उनके ऊपर थोप दिया जाता है।’इसमें कहीं न कहीं आप भी जिम्मेदार हो
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