नई दिल्ली। देश के अंदर छिपे बैठे बड़े स्तर पर नुकसान पहुंचाने वाले बड़े अपराधियों को काल का ग्रास बनाने वाली दिल्ली पुलिस की ‘स्पेशल सेल’ के गठन के करीब 38 साल बाद उसमें तीन आईपीएस की एंट्री की जा रही है। जिसमें 2009 बैच के आईपीएस जसमीत सिंह, 2010 बैच के राजीव रंजन और 2011 बैच के इंगित प्रताप सिंह शामिल हैं।
इस वक्त दिल्ली पुलिस की कमान एजीएमयूटी कैडर से बाहर के आईपीएस राकेश अस्थाना के हाथों में है, जो कि अभी तक गैर-आईपीएस यानी दानिप्स (दिल्ली, अंडमान और निकोबार द्वीप समूह पुलिस सेवा) अधिकारी संभालते रहे हैं। नये अधिकारियों को मिलाकर सेल में कुल सात डीसीपी हो गए हैं।
तीन आईपीएस के अलावा जो चार डीसीपी (दानिप्स) सेल में काम कर रहे हैं, उनमें एक दक्षिणी रेंज, एक नॉर्दन रेंज, सेल की साइबर यूनिट और काउंटर इंटेलिजेंस पर डीसीपी तैनात हैं। इनमें संजीव यादव, प्रमोद कुशवाह, मनीषी चंद्रा और कमल मल्होत्रा शामिल हैं और ये सभी दानिप्स अधिकारी हैं।
सेल में हुई इस बड़ी फेरबदल से कई सवाल खड़े हो गए हैं-
1.स्पेशल सेल में सात डीसीपी की जरूरत क्या है?
2.क्या दिल्ली में केंद्र को लेकर किसी प्रकार के खतरे का कोई खुफिया अलर्ट मिला है?
3.क्या नए पुलिस आयुक्त ‘सेल’ को अपने स्तर की मजबूती प्रदान करना चाह रहे हैं?
4.क्या ‘सेल’ में लंबे समय से तैनात अफसरों का ‘आईपीएस’ विकल्प तैयार करने की कोशिश की जा रही है?
बता दें, 1983 में पंजाब में मौजूद आतंकवादियों को पकड़ने के लिए ‘ऑपरेशन सेल’ के नाम से बनी दिल्ली पुलिस की इस स्पेशल सेल में केवल 25 पुलिस कर्मियों की एक टीम हुआ करती थी, जिसके हेड एसीपी हुआ करते थे और वो क्राइम ब्रांच के डीसीपी को रिपोर्टिंग करते थे।
नब्बे के दशक में बाबरी मस्जिद विध्वंस के बाद से ‘सेल’ का काम अचानक बढ़ने लगा। एक विशेष समुदाय से जुड़े कुछ अलर्ट मिलने लगे, जिसके बाद 2001 में इसे ‘स्पेशल सेल’ का नाम दे दिया गया और दानिप्स अफसर को सेल में बतौर डीसीपी की कमान दे दी गई।
सवाल ये भी उठाया जा रहा है कि क्या अफगानिस्तान में तालिबान का कब्जा होने के बाद पाकिस्तान द्वारा भारत में आतंकी गतिविधियां तेज होने की आशंका है?
दिल्ली पुलिस के एक अधिकारी का कहना है कि सेल में भ्रष्टाचार की संभावनाएं बनी रहती हैं, क्योंकि वहाँ नियुक्त स्टाफ और अधिकारी 5 से 10 सालों तक के लिए पोस्टिंग ले लेते हैं। वहीं दूसरी तरफ सेल में लंबे समय तक काम करने वाले अच्छे अधिकारियों के उदाहरण भी हैं, जिन्हें ‘आउट ऑफ टर्न’ प्रमोशन भी मिलता रहा है।
पूर्व डीसीपी एलएन राव बताते हैं कि सेल में 780 पदों की सैद्धांतिक मंजूरी है, जबकि मौजूदा समय में लगभग 1400 का स्टाफ कार्यरत हैं। कुछ दिनों पहले छह आतंकवादियों को पकड़ा गया था। हजारों करोड़ रुपये की ड्रग्स पकड़ना, गैंगस्टर जितेंद्र गोगी या काला जठेरी को गिरफ्तार करना, लालकिला हिंसा मामले के आरोपी को ढ़ूंढ़कर दूसरे राज्य से पकड़ लाना, ऐसी बहुत सी उपलब्धियां ‘स्पेशल सेल’ के नाम दर्ज़ हैं और अब आईपीएस की एंट्री से ‘स्पेशल सेल’ में सकारात्मक बदलाव देखने को मिलेंगे।
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