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सालों पुरानी सुरंग को संरक्षित करने की योजना, सुरंग के जरिए स्वतंत्रता सेनानी को दी जाती थी फांसी

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नई दिल्ली: आज से तकरीबन 111 साल पहले 1911 में अंग्रेजी हुकूमत ने भारत की राजधानी कोलकाता से दिल्ली ट्रांसफर करने के आर्डर दिए थे। उस वक्त थॉमस नाम के एक इंजीनियर को दिल्ली की यमुना नदी के करीब नेशनल लेजिसलेटिव असेंबली बनाने का काम सौंपा गया। लगभग 2 साल में यह भवन बनकर तैयार हुआ, जिसमें उस वक्त 27 भारतीय और 31 अंग्रेज सदस्य बैठते थे। इसकी पहली बैठक 27 जनवरी 1913 में हुई थी।

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उस समय इसे नेशनल लेजिसलेटिव असेंबली के रूप में जाना जाता था, जहां पंडित नेहरू, सरदार पटेल से लेकर लोकमान्य तिलक जैसे बड़े-बड़े स्वतंत्रता सेनानी बैठ चुके हैं। सन् 1926 के बाद मौजूदा संसद भवन में नेशनल असेंबली को शिफ्ट कर दिया गया। 1926 से लेकर आजादी तक यह भवन अंग्रेजी हुकूमत के कोर्ट के रूप में इस्तेमाल किया जाता रहा। आजादी के बाद से पहले दिल्ली सचिवालय और 1993 के बाद दिल्ली विधानसभा बनाया गया।

जहां कैद रखे जाते थे भारत के क्रांतिकारी

मौखिक इतिहास के अनुसार 1857 में बहादुर शाह जफर द्वितीय और क्रांति के बाद अंग्रेजों ने लाल किले पर अपना अधिकार स्थापित कर लिया, उस दौर में लाल किले को एक कारागार गृह के रूप में तब्दील कर दिया गया था। जहां भारत के क्रांतिकारियों को रखा जाता था। वहां से तकरीबन 6 किलोमीटर की दूरी पर जहां इस वक्त मौजूदा दिल्ली विधानसभा है वहां तक एक भूमिगत सुरंग बनाई गई थी। जिसके जरिए क्रांतिकारियों को कारागार से फांसी के तख्त तक पहुंचाया जाता था।

जहां लगती थी अंग्रेजों की अदालत और सुनाई जाती थी क्रांतिकारियों को सजा

विधानसभा की इमारत में जहां पर वर्तमान में सदन लगता है। वहीं पर अंग्रेजों की अदालत लगती थी और क्रांतिकारियों को सजा सुनाई जाती थी। उस समय लालकिले में स्वतंत्रता सेनानियों को कैद कर रखा जाता था और इसी सुरंग के रास्ते लालकिले से यहां तक लाया जाता था। उस समय दिल्ली विधानसभा की मेन इमारत में पीछे की तरफ फांसी घर बना था। जहां पर क्रांतिकारियो को फांसी दी जाती थी।

दिल्ली विधानसभा अध्यक्ष की माने तो यह वही सुरंग है, लेकिन आधुनिक निर्माण मेट्रो और अन्य फ्लाईओवर के कारण बीच में टूट चुकी है। हालांकि दिल्ली सरकार और पीडब्ल्यूडी विभाग ने यह साफ कर दिया है कि आरकोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया या फिर किसी इतिहासकार की टीम को सुरंग में सर्वे की इजाजत नहीं दी जाएगी।

आजादी के 75 साल पूरे होने पर अब दिल्ली सरकार ने 14, 15 अगस्त तथा 25, 26 जनवरी को विधानसभा परिसर आम लोगों के लिए खोलने का फैसला किया है। लेकिन जल्द ही सुरंग और यहां से कुछ 100 मीटर दूरी पर जहां फांसी लगाई जाती थी, उस स्थान को पर्यटन के लिहाज से विकसित किया जाएगा। जिसके बाद पर्यटक और स्कूली बच्चे जब विधानसभा का सत्र नहीं चल रहा होगा, तब जाकर दर्शन कर सकते हैं।

दिल्ली विधानसभा के अध्यक्ष विजय गोयल के मुताबिक सुरंग को संरक्षित कराया जाएगा। योजना है कि इसे और फांसी घर को 26 जनवरी और 15 अगस्त को जनता के लिए खोला जाए। अभी फिलहाल 23 मार्च बलिदान दिवस पर इसे विशेष व्यक्तियों और मीडिया के लिए खोला जाएगा। इसी दिन विधानसभा परिषद में शहीद भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव की प्रतिमा लगाई जाएंगी।

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