जयपुर: राजस्थान उच्च न्यायालय ने हाल ही में इस बात पर जोर दिया कि सामाजिक या सार्वजनिक नैतिकता की धारणाएं लिव-इन रिलेशनशिप में जोड़ों की सुरक्षा के रास्ते में नहीं आ सकतीं, भले ही एक साथी किसी दूसरे से विवाहित हो। कोर्ट ने कहा, ‘जब भारत में संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत जीवन और स्वतंत्रता के अधिकार की गारंटी गंभीर अपराधों के दोषी अपराधियों को दी गई है, तो “कानूनी/अवैध संबंधों” में उन लोगों को समान सुरक्षा देने से इनकार करने का कोई कारण नहीं हो सकता है’।
बता दें राजस्थान हाईकोर्ट ने फैसले में लिखा है, ‘सार्वजनिक नैतिकता को संवैधानिक नैतिकता पर हावी होने की अनुमति नहीं दी जा सकती है, खासकर जब सुरक्षा के अधिकार की कानूनी वैधता सर्वोपरि है’
हाईकोर्ट ने फैसले में आगे लिखा यह न्यायालय इस सिद्धांत को पूरी तरह से महत्व देता है कि संवैधानिक नैतिकता का सामाजिक नैतिकता पर व्यापक प्रभाव पड़ता है। यह न्यायालय मौलिक अधिकारों के क्षेत्र में होने वाले उल्लंघन या अपमान को नहीं देख सकता है, जो कि बुनियादी मानवाधिकार हैं
यह इस न्यायालय के लिए पर्याप्त रूप से स्पष्ट है कि माननीय सर्वोच्च न्यायालय का दृष्टिकोण यह है कि सभी मौलिक अधिकारों की रक्षा और सुरक्षा के लिए राज्य का कर्तव्य मौजूद है, जब तक कि कानून की उचित प्रक्रिया द्वारा दूर नहीं किया जाता है। यहां तक कि अगर कोई अवैधता या गलत काम किया गया है, तो दंडित करने का कर्तव्य पूरी तरह से राज्य के पास है, वह भी कानून की उचित प्रक्रिया के अनुरूप राज्य किसी भी परिस्थिति में मोरल पॉलिसिंग या भीड़ की मानसिकता के किसी भी कार्य को उचित प्रक्रिया, अनुमति या उपेक्षा नहीं कर सकता है।
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