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हिन्दी दिवस पर जानें हिंदी साहित्य का सफर

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हिन्दी दिवस: हिन्दी भारत में सबसे ज्यादा बोली जाने वाली भाषा है। कहते हैं कि हिंदी भाषा में बाकी भाषाओं से इतर अशुद्धियों की गुंजाइश बहुत कम है। हिन्दी के विस्तार और हिंदी का इतिहास काफी पुराना माना जाता है। हिन्दी साहित्य का इतिहास वैदिक काल से शुरु होता है। इतिहासकार बताते हैं कि वैदिक भाषा ही हिन्दी भाषा का मूल रुप है।

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हालांकि हिन्दी भाषा को सबसे प्राचीन भाषा मानने से इनकार किया जाता है, इसके कई कारण हैं। एक कारण तो भारत में भाषाओं की विविधता है जिसकी वजह से हम अपनी मूल भाषा को बरतने में नाकाम रहे हैं। दूसरा कारण ये है कि हमने मूल भाषा के बदलाव के साथ उनके नामों में भी बदलाव कर दिए। हमने कभी ‘वैदिक’, कभी ‘संस्कृत’, कभी ‘प्राकृत’, कभी ‘अपभ्रंश’ और अब हिन्दी जैसे बदलावों को अपनाया।

लोग कहते हैं कि ‘वैदिक संस्कृत’ और ‘हिन्दी’ में तो आसमान-जमीन का अन्तर है। लेकिन बता दें कथित प्राचीन भाषाएं हिब्रू, रूसी, चीनी, जर्मन और तमिल आदि भाषाओं के भी प्राचीन और वर्तमान रूपों में आसमान-जमीन का अन्तर है, लेकिन इन देशों या सभ्यताओं ने उन भाषाओं के नाम नहीं बदले और उनके परिवर्तित स्वरूपों को प्राचीन, मध्यकालीन, आधुनिक कहा गया, लेकिन हिन्दी भाषा में हर युग की भाषा का नया नाम रखा जाता रहा है। हिंदी ने भी हर कालखंड में अपना योगदान दिया। हिंदी साहित्य ने समाज के कई कमियों को उजागर भी किया।

हिंदी साहित्य का पहला ग्रंथ

साहित्य का पहला ग्रंथ दक्षिण भारत के एक जैन कवि स्वयंभू ने करीब 960 AD में लिखा था। उस ग्रंथ का नाम पदम चरित था,  जिसे 5 हिस्सों में बांटा गया। इनमें विद्या घर कांड, उसझ्जा कांड, सुंदरकांड, युद्ध कांड और उत्तरकांड शामिल हैं। कालांतर में यही लेखन शैली रामाचरित मानस में भी अपनाया गया। हिंदी साहित्य को बाद में चार विधियों में बांटा गया। पहली विधि आदिकाल या वीरगाथा काल जो 1050-1375 AD तक थी। इसके बाद पूर्व-मध्यकाल या भक्ति-काल जो 1375-1700 AD तक थी। फिर 1700-1900 AD तक उत्तर-मध्यकाल या रीति-काल का दौर था।  चौथी विधि के तौर पर आधुनिक-काल या गद्या-काल को माना गया जो 1900-2000 AD तक चली।  

आदिकाल की मान्यता

आदिकाल के विषय में लोगों की मान्यता है कि इस काल का प्रथम ग्रंथ चंदवरदाई द्वारा रचित पृथ्वीराजरासो थी। लेकिन वास्तव में पहली किताब अब्दुल रहमान द्वारा रचित संदेशरासक थी। इस किताब को मुनि जनविजयाजी ने कई सूत्रों से एकत्र किया था। इसमें संस्कृत, प्राकृत, अपभ्रंश और देश भाषा का प्रयोग किया गया है। खुसरो और विद्यापति आदिकाल के प्रमुख लेखक माने जाते हैं। राजाओं की बहादुरी की गाथाएं दर्शाने की यह शैली मुसलमान के लगातार हमलों और राजपूतों के मन में बदले की भावनाओं के कारण आरंभ हुई थी।

निर्गुणधारा और सगुणधारा

मुसलमानों के राज में भक्तिकाल की शुरुआत हुई। कहा जाता है इस दौरान हिंदूओं पर मुसलमान शासकों ने खूब अत्याचार किए और इस स्थिति का परिणाम ये हुआ कि हिंदू मदद मांगते हुए भगवान की शरण में जाने लगे ताकि वे अपने धर्म का अंत होने से बचा सके। इस काल के दो प्रमुख भाग हैं-निर्गुणधारा और सगुणधारा। दोनों की दो उप-धाराएं हैं। निर्गुणधारा में ज्ञानाश्रयी उप-धारा है जिसके कवि कबीर, रविदास, धर्मदास को माने गये हैं। वहीं दूसरी उप-धारा प्रेममार्गी या सूफी है जिसके कवि मलिक मोहम्मद जायसी, कुतबान को माना गया है।

सगुणधारा को भी दो संप्रदायों में बांटा गया है। एक रामभक्ति जिसके कवि रामानंद, सेनापति को माना गया है। सगुणधारा की दूसरी संप्रदाय कृष्णभक्ति है जिसके कवि वल्लभाचार्य, सूरदास, स्वामी हरिदास, रसखान को माना गया है।

रीतिकाल

भक्तिकाल की समाप्ति के बाद रीतिकाल की शुरुआत हुई। इस काल में काल रस, रीति या अलंकारों को लेख में प्रयोग करने की वजह से प्रसिद्ध हैं। इस शैली को सबसे पहले केशवदासजी ने आगे बढ़ाया था। इस काल के विभिन्न शैली के कवि प्रसिद्ध हैं। जैसे रीतिबद्ध शैली के कवि देवदत्त या देव, केशवदास, वहीं रीतिमुक्त शैली के कवि घनानंद, पद्माकर थे। बता दें इस शैली को किसी भी शैली में ना लिखने की शैली के तौर पर विकसित किया गया था। इसके बाद रितिसिद्ध शैली के कवि बिहारी का नाम भी आता है। इस शैली को निजी शैली में लिखने के तौर पर विकसित किया गया था।

आधुनिककाल

रीतिकाल के बाद हिंदी साहित्य में आधुनिककाल की शुरुआत हुई। हिंदी साहित्य में गद्य रचना इसी काल में प्रारंभ हुआ। यह काल अनेक लेखनीय शैली और विषयों के मध्य से गुजरा है।

भारतेंदु युग

इस काल में सबसे पहले भारतेंदु युग की शुरुआत हुई। इस युग में कविताओं में ब्रजभाषा और गद्य में खड़ी बोली का व्यवहार किया गया। भारतेंदु हरिश्चंद्र , प्रेमघन, बालमुकुंद गुप्त इस काल के प्रसिद्ध कवि माने गए हैं।

दिवेदी युग

इसके बाद दिवेदी युग की शुरुआत हुई।  इस युग में खड़ी बोली को कविताओं में व्यवहार किया गया। पं महावीरप्रसाद दिवेदी, अयोध्या सिंह उपाध्याय हरिऔध इस काल के प्रमुख कवि थे।

छायावाद युग

कई युग से गुजरने के बाद हिंदी साहित्य आधुनिककाल के छायावाद युग में प्रवेश कर गया। यह काल्पनिकता, सौंदर्य तथा प्रकृति के प्रति प्रेम की भावना पर आधारित थी। जयशंकर प्रसाद, सुमित्रानंदन पंत, सूर्यकांत त्रिपाठी निराला और महादेवी वर्मा इस काल के प्रमुख स्तंभ माने जाते हैं।

इसके बाद प्रगतिवाद का दौर आया। यह मनुष्य के प्रति प्रेम, तथात्मक सोच, देशप्रेम और गरीब तथा असहायों के प्रति सहानुभूति पर आधारित थी। रामधारी सिंह दिनकर, बालकृष्णा शर्मा, नवीन, शिवमंगल सिंह सुमन इस काल के कवि थे।

एक दौर स्वच्छंदतावाद या हालावाद युग का आया । यह शैली केवल मनोरंजक शैली थी। शैली के प्रमुख स्तंभ थे हरिवंश राय बच्चन।

कई शैली के बाद हिंदी साहित्य प्रयोगवाद युग तक पहुंचा। इस शैली के लेखक जड़ वस्तुओं में जान डालने की कोशिश करते हैं। हीरानंद सच्चिदानंद वात्सयायन अज्ञेय, नागार्जुन, केदारनाथ सिंह, जगदीश गुप्त शैली के प्रमुख कवि थे।

Read Also: पहली बार हिंदी दिवस कब मनाया गया?

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