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पारिवारिक विरोध के कारण शादी का वादा पूरा नहीं करने पर बलात्कार की सजा नहीं दी जा सकती: कलकत्ता उच्च न्यायालय

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नई दिल्ली: मंगलवार को कलकत्ता उच्च न्यायालय ने कहा कि बलात्कार के अपराध के लिए एक व्यक्ति को दंडित करना गलत होगा जब पीड़ित लड़की से शादी करने का उसका वादा परिवार के सदस्य के विरोध के कारण साकार नहीं हो पाता।

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जस्टिस जॉयमाल्या बागची और बिवास पटनायक की खंडपीठ ने अतिरिक्त जिला और सत्र न्यायाधीश, इस्लामपुर के 2015 में दिए गए फैसले के खिलाफ अपील की सुनवाई कर रही थी।

अतिरिक्त जिला और सत्र न्यायाधीश ने अपीलकर्ता को भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 376 के तहत दोषी ठहराया था और उसे 10 साल के लिए कारावास की सजा सुनाई थी। इसके साथ ही उस पर 50,000 का जुर्माना भी लगाया था।

जबरन सम्बन्ध बनाने का आरोप

अभियोजन पक्ष का यह मामला था कि अपीलकर्ता सद्दाम हुसैन ने शादी का झूठा वादा कर एक लड़की (पीड़ित) के साथ जबरन जिस्मानी सम्बन्ध बनाए। लड़की के गर्भवती होने और अपीलकर्ता से उससे शादी करने के लिए कहने के बाद, अपीलकर्ता ने अपने परिवार के सदस्यों की कड़ी आपत्ति के कारण उससे शादी करने से इनकार कर दिया था।

सद्दाम हुसैन ने बताया कि पीड़ित लड़की सहमति की सहमति से सारे सम्बन्ध बनाए गए थे। चूंकि उसके और लड़की के बीच विवाह केवल उसके परिवार की वजह से नहीं हो सका इसलिए  उस पर बलात्कार का इल्जाम नही लगाया जा सकता।

कोर्ट ने अपीलकर्ता सद्दाम हुसैन के तर्क से सहमति जताते हुए कहा कि वादा निभाने में विफलता इस बात का आधार नहीं हो सकता कि वादा बेईमानी से किया गया था।

उच्च न्यायालय ने फैसले को किया रद्द

उच्च न्यायालय ने सत्र न्यायाधीश के फैसले को रद्द करते हुए कहा, “अपीलकर्ता को दंडित करना गलत होगा क्योंकि उसके वादे को पुरा न कर पाने के लिए वो जिम्मेदार नही है। पीड़िता की जन्म तिथि 18 मार्च 1993 है और घटना के समय उसकी आयु 16 वर्ष से अधिक थी। इसलिए  पीड़िता ने सहमति की आयु (Age Of Consent) पार कर ली थी। अभिलेख में उपलब्ध सामग्री से ऐसा प्रतीत होता है कि सहवास आपसी सहमति से हुआ था। अपीलकर्ता एक युवा व्यक्ति था और बड़ों के विरोध के कारण शादी का प्रस्ताव सफल नहीं हुआ। इसलिए, यह नहीं कहा जा सकता है कि अपीलकर्ता का संबंध की शुरुआत से ही शादी करने का इरादा नहीं था”।

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