Advertisement

लखीमपुर हिंसा पर कोर्ट: घटना दुर्भाग्यपूर्ण, ऐसा दोबारा नहीं होना चाहिए

Share
Advertisement

नई दिल्ली: किसानों के विरोध प्रदर्शन के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई के दौरान लखीमपुर हिंसा का जिक्र करते हुए दुख जताया है। कोर्ट ने कहा है कि ऐसी घटना दुर्भाग्यपूर्ण है और ये नहीं होना चाहिए।

Advertisement

अटॉर्नी जनरल (एजी) केके वेणुगोपाल ने घटना पर गहरा दुख जताते हुए कहा है कि इन्हें तुरन्त ही रोके जाने की जरूरत है। साथ ही जब भी ऐसी घटनाएं होती हैं कोई इसकी जिम्मेदारी नहीं लेना चाहता है।

जस्टिस एएम खनविलकर की अध्यक्षता वाली सुप्रीम कोर्ट की खंडपीठ ने कहा, हम देखेंगे कि विरोध प्रदर्शन के अधिकार का मुद्दा क्या वास्तव में भारतीय संविधान के अनुसार मूलभूत अधिकार हैं।

दरअसल, किसान महापंचायत ने जंतर-मंतर पर विरोध प्रदर्शन की अनुमति मांगी थी। लेकिन कोर्ट ने कहा था कि अगर न्यायालय चाहे तो मामले को ट्रांसफर कर इसे समाप्त भी कर सकता है।

साथ ही कोर्ट ने सवाल किया कि जब मामला पहले ही अदालत में लंबित है तो फिर विरोध प्रदर्शन कैसा?

एडीजी ने आगे कहा कि इस मामले में कई याचिकाएं दायर हुईं हैं तो फिर लगातार चला आ रहा ये विरोध प्रदर्शन क्यों? ऐसी ही दुर्भाग्यपूर्ण घटना का गवाह कल लखीमपुर बना।

वेणुगोपाल ने कहा कि अब आगे कोई विरोध प्रदर्शन नहीं होना चाहिए ताकि लखीमपुर जैसी घटना कहीं और देखने को मिले। ऐसी घटनाओं को रोका जा सके।

किसान महापंचायत का पक्ष रहे एडवोकेट अजय चौधरी ने कोर्ट को बताया कि प्रदर्शन स्थल की जगहों पर खड़े किए गए अवरोधकों में किसानों की किसी प्रकार की कोई भूमिका नहीं है।

जब मामल कोर्ट में है तो फिर प्रदर्शन कैसा- कोर्ट

कोर्ट ने सवाल किया कि जब कृषि क़ानून को कोर्ट ने स्थगित किया हुआ है तो फिर इस विरोध प्रदर्शन के मायने क्या हैं? इन प्रदर्शनों से किसी को क्या हासिल हो रहा है? जब किसानों ने अदालत के समक्ष क़ानून को चुनौती दी हुई तो फिर इन प्रदर्शनों की वैधता क्या है? फिर आप लोग विरोध प्रदर्शन कैसे कर सकते हैं?

अदालत ने ये सवाल भी किया कि आप जंतर-मंतर पर विरोध प्रदर्शन की अनुमति क्यों चाहते हैं? इसका क्या तुक है? आप प्रदर्शन भी करेंगे, क़ानून को चुनौती भी देंगे? दोनों काम एक साथ नहीं कर सकते हैं? आप एक क़ानून को चुनौती भी देंगे और प्रदर्शन भी करेंगे?

आप एक ही रास्ता चुन सकते हैं, या फिर आप अदालत जाएं, या संसद पर, या सड़कों पर?

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *