नई दिल्ली: गुरुवार को अधिसूचना जारी कर केंद्र सरकार ने कहा कि नागालैंड में व्याप्त अशांति और खतरनाक परिस्थितियों को देखते हुए नागरिक शक्ति की सहायता के लिए सशस्त्र बलों का उपयोग आवश्यक है। इसलिए राज्य में सशस्त्र बल विशेष अधिकार अधिनियम (AFSPA) को छह महीने के लिए और बढ़ाया गया है।
रविवार को नागालैंड के मुख्यमंत्री नेफियू रियो ने एक समिति के गठन की भी घोषणा की थी, जो पूरे पूर्वोत्तर से अधिनियम को वापस लेने पर 45 दिनों में जांच करेगी और रिपोर्ट देगी।
इसी साल 4 दिसंबर को मोन जिले में नागरिकों की गोलीबारी की घटना को देखते हुए मेघालय, मणिपुर, नागालैंड के मुख्यमंत्रियों और पूर्वोत्तर के कई क्षेत्रीय दलों ने सशस्त्र बल विशेष अधिकार अधिनियम (AFSPA) को निरस्त करने का आह्वान किया था।
आजादी के बाद पूर्वोत्तर राज्यों में बढ़ रहे अलगाववाद, हिंसा और विदेशी आक्रमणों से बचाव के लिए 1958 में AFSPA कानून लागू किया गया था। AFSPA यानि सशस्त्र बल विशेषाधिकार अधिनियम, इसके तहत सेना को किसी इलाके में जाकर ऑपरेशन करने के लिए विशेष अधिकार होते हैं। 1958 में इस कानून को अध्यादेश के रुप में लाया गया था जो बाद में जाकर कानून बना।
सबसे शुरुआत में मणिपुर और असम में AFSPA लगाया गया था। बाद में परिस्थितियों के अनुसार इसे कई राज्यों में लगाया और हटाया गया।
अलग-अलग धार्मिक, नस्लीय, भाषा, क्षेत्रीय समूहों, जातियों, समुदायों के बीच मतभेदों या विवादों के चलते राज्य या केंद्र सरकार राज्यपाल की रिपोर्ट के आधार पर किसी राज्य या क्षेत्र को अशांत घोषित कर वहाँ केंद्रीय सुरक्षा बलों को तैनात करती है।
अशांत क्षेत्र (विशेष न्यायालय) अधिनियम, 1976 के मुताबिक, एक बार अशांत घोषित होने पर क्षेत्र में न्यूनतम तीन माह के लिए AFSPA लागू रहती है।
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