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राष्ट्रीय

Ambedkar Jayanti 2023: वो कहानी… जब जातिवाद खत्म करने की ठानी

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आज देशभर में भारतीय संविधान के निर्माता बाबा साहेब डॉ भीमराव अंबेडकर की 132वीं जयंती धूमधाम के साथ मनाई जा रही है। बाबा साहेब की जयंती के अवसर पर राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी बधाई दी है। बाबा साहेब अंबेडकर ने देश में महिलाओं और शोषित वंचित समाज के अधिकारों के लिए लड़ाई लड़ी थी। 132वीं जयंती के अवसर पर हम आपको बाबा साहेब के जन्म से लेकर उनकी प्रारंभिक शिक्षा के बारे में बताएंगे। साथ ही ये भी बताएंगे कि किस तरह उन्होंने अपना सम्पूर्ण जीवन देश में सामाजिक स्वतंत्रता स्थापित करने के लिए समर्पित कर दिया।

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बालक भीम का जन्म

बालक भीम का जन्म 14 अप्रैल 1891 में मध्यप्रदेश के महूँ (वर्तमान में डॉ अंबेडकर नगर) में हुआ था। उनके पिता का नाम रामजी मालोजी सकपाल और माता का भीमाबाई था। डॉ अम्बेडकर अपने माता-पिता की चौदहवीं संतान के रूप में जन्में थे। उनके पिताजी ने भारतीय सेना की मऊ छावनी में सेवा में कार्य करते थे और यहां काम करते हुये वो सूबेदार के पद प्राप्त कर लिया था। जो भीमराव अंबेडकर आगे चलकर बाबा साहेब बने उसके पीछे उनके पिताजी मालोजी सकपाल का बहुत बड़ा योगदान है। घर की आर्थिक स्थिति ठीक नहीं थी फिर भी उनके पिताजी ने उनकी शिक्षा दीक्षा को सबसे ऊपर रखा। एक समय ऐसा भी आया जब पिता ने उनकी शिक्षा के लिए अपनी बेटियों के गहने तक बेच दिए।

बालक भीम की प्रारंभिक शिक्षा

बचपन से ही तीव्र बुद्धि के बालक रहे डॉ. भीम राव अंबेडकर की प्रारंभिक शिक्षा सतारा के शासकीय हाईस्कूल से हुई| जिसके बाद 1897 में इन्होने अपनी माध्यमिक शिक्षा मुंबई में एल्फिंस्टोन रोड स्थित सरकारी स्कूल से पूरी की। स्कूल समय के दौरान ही इन्हें जातिगत भेदभाव का पहली बार सामना करना पड़ा था। जब इन्हे क्लास में साथ नहीं बैठने दिया एवं स्वर्ण छात्रों के लिए मटके से पानी नहीं पीने दिया गया। उन्हें स्कूल में काफी ज्यादा जातिवाद का सामना करना पड़ा। बाल्यकाल में जातिवाद के बुरे अनुभवों ने बालक भीम के मन में जातिवाद से लड़ने की इच्छा को जाग्रत कर दिया एवं इन्होनें अपने जीवन में जातिवाद के विरुद्ध संघर्ष करने की ठान ली।

बाबा साहेब अंबेडकर की उच्च शिक्षा

उन दिनों जातिवाद का काफी ज्यादा बोलबाला था। देश में सामाजिक असमानता व्यापत थी। विपरित परिस्थितियों में उन्होंने ने अपनी स्कूली शिक्षा पूरी की। ऐसा देश के इतिहास में पहली बार हुआ जब किसी दलित ने मैट्रिक तक की पढ़ाई पूरी की थी। उन्होंने साल 1907 में मैट्रिक पास की। जहां एक तरफ उनके माता-पिता ने उनकी शिक्षा के लिए त्याग किया तो दूसरी तरफ बाबा साहेब अम्बेडकर ने भी मन लगाकर पढ़ाई की। उन्होंनें अपनी 12वीं की पढ़ाई पूरी की, इन्हीं दिनों अक्सर उन्हें शिक्षा के महत्व को समझाने वाले उनके पिता रामजी मालोजी सकपाल की निधन हो गया।

इसके बाद इन्होने सन 1912 में बॉम्बे विश्वविद्यालय से सम्बद्ध एल्फिंस्टन कॉलेज से बी.ए (B.A) की डिग्री पूरी की। पिता का साथ छूट जाने के बाद निर्धनता के आगे पढ़ नहीं पा रहे थे। इस दौरान उन्होंने बड़ौदा के गायकवाड़ शासक सियारजी राव गायकवाड़ को पत्र लिखा, जिसमें उन्होंने कहा कि लिखा कि मैं आगे पढ़ना चाहता हूं लेकिन कोई भी मेरी मदद नहीं कर रहा है। जिसके बाद सियारजी राव गायकवाड़ ने उन्हें मिलने के लिए बुलाया। सियारजी राव गायकवाड़ ने डॉ भीमराव अंबेडकर को उच्च शिक्षा के लिए छात्रवृति दी।

इसी छात्रवृति की सहायता से अंबेडकर उच्च-शिक्षा के लिए अमेरिका चले गए जहाँ इन्होंने कोलंबिया विश्वविद्यालय से अर्थशास्त्र में स्नाकोत्तर की उपाधि प्राप्त की। इसके बाद विधि की शिक्षा प्राप्त करने के लिए उन्होंने लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स में प्रवेश ले लिया। वहां पर तीसरे वर्ष उनकी छात्रवृति समाप्त हो गयी। जिसके पश्चात ये भारत लौट आये।

जातिवाद के लिए ठानी

विदेश से भारत लौट आने के बाद वह गायकवाड़ शासकों के यहाँ कार्य करने लगे। नौकरी करते समय भी जातिवाद ने डॉ. भीमराव का पीछा नहीं छोड़ा। इस कारण इन्होने नौकरी छोड़कर जातिवाद के खिलाफ लड़ने की ठान ली। यही वो समय रहा जिसने अंबेडकर को जातिवाद के खिलाफ लड़ाई लड़ने के लिए प्रेरित किया। गायकवाड़ शासकों के यहाँ नौकरी दौरान वह रहने के लिए कमरा ढूंढ रहे थे लेकिन उन्हें उनकी जाति के कारण कमरा नहीं मिल पा रहा था। वो जहां भी जाते उनसे उनकी जाति पूछी जाती और कमरे के लिए मना कर दिया जाता। इस दौरान वो कई जगह गए लेकिन उन्हें कहीं भी रहने के लिए कमरा नहीं मिला। कमरा ढूंढते-ढूंढते वह एक होटल में गए, जिसे पारसी धर्म को मानने वाले संचालित करते थे। यहां उनसे उनकी जाति नहीं पूछी गई। ऐसे में उन्हें कमरा मिल गया, लेकिन ये बात ज्यादा समय तक नहीं छिप सकी। जैसे ही उनकी जाति का पता चला उन्हें मारने के लिए लाठी डंडे लेकर सैंकड़ों लोग इकट्टा हो गए।

इसके बाद मजूबरन कमरा छोड़ना पड़ा। इसी दिन बड़ौदा में बाबा साहेब डॉ भीमराव अंबेडकर ने ये प्रण लिया कि वो इस ऊंच-नीच की व्यवस्था को खत्म कर देंगे या गोली मारकर सुसाइड कर लेंगे। इसके बाद उन्होंने अपने जीवन में खूब संघर्ष किया। उन्होंने लॉ की पढ़ाई पूरी की। बाबा साहेब अंबेडकर दुनिया के सबसे ज्यादा शिक्षित लोगों की सूचि में शामिल हैं।

बाबा साहेब अंबेडकर भारत ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया के सबसे शिक्षित लोगों की सूची में शामिल हैं। वह विदेश में जाकर अर्थशास्त्र में पीएचडी करने वाले पहले भारतीय थे। बताया जाता है कि उनकी पर्सनल लाइब्रेरी में 54 हजार से ज्यादा किताबें थीं। बाबा साहेब की डिग्रियों की बात की जाए तो उन्होंने अपने जीवन में बीए, एमए, पीएचडी, एमएससी, बैरिस्टर-एट-लॉ, डीएससी, एलएलडी, डी-लीट जैसी 32 डिग्रियां हासिल की। उन्हें मराठी, अंग्रेजी, हिन्दी, उर्दू समेत 9 भाषाओं का ज्ञान था। देश में बाबा साहेब अंबेडकर अपने समय के सबसे अधिक शिक्षिक लोगों में से एक थे।

भारतीय संविधान के निर्माता

बाबा साहेब अंबेडकर ने उच्च शिक्षा हासिल कर देश की राजनीति में अपने पैर जमाए। उन्होंने भारतीय संविधान के निर्माण में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। बाबा साहेब भारतीय संविधान की प्रारूप समिति के अध्यक्ष बने और संविधान लिखा। उन्होंने संविधान में महिलाओं को विशेषाधिकार के तहत हिंदू कोड बिल की व्यव्सथा की और ऐसे कई एक्ट और बिल बनाए।

उन्होंने अपने आखिरी समय में भारत के प्राचीन बौद्ध धर्म को अंगीकृत कर लिया। अपना समस्त जीवन देश में सामाजिक, राजनैतिक क्रांति के लिए समर्पित करने वाले बाबा साहेब डॉ भीमराव अंबेडकर जी 6 दिसम्बर 1956 को निधन हो गया।

हिन्दी ख़बर बाबा साहेब डॉ भीमराव अंबेडकर की 132वीं जयंती पर कोटि-कोटि नमन करता है।

ये भी पढ़ें: मेट्रो रेल प्रोजेक्ट-भोपाल-इंदौर में इसी महीने आएंगे डेमो कोच

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