आने वाले दिनों में और बढ़ सकते हैं पेट्रोल-डीजल के दाम, जानें क्या महंगाई के क्या हैं कारण

नई दिल्ली: पेट्रोल और डीजल की कीमतें आसमान छू रहीं हैं। कोरोना काल में पेट्रोल की कीमतों ने लोगों को परेशान कर दिया है। डीजल-पेट्रोल के दामों का ये सिलसिला अभी थमने का नाम नहीं ले रहा है। पिछले महीने से हर दूसरे दिन ईंधन के दामों में बढ़ोतरी हो रही है। सरकारी तेल विपणन कंपनियां (ओएमसी) अंतरराष्ट्रीय कच्चे तेल की कीमतों में मजबूती के कारण कीमत बढ़ा रही हैं।
सरकार भी तेल पर 08 रुपये प्रति लीटर की बढ़ोतरी हुई है। ओएमसी पर दरों को बनाए रखने का दबाव है, क्योंकि देश में पेट्रोल और डीजल दोनों दाम अब तक के उच्चतम स्तर पर हैं। हालांकि, यह संभावना नहीं है कि वे वैश्विक स्तर पर कच्चे तेल की कीमतों में वृद्धि को देखते हुए दरों को बनाए रखने में सक्षम होंगे।
बता दें कि इस महीने पेट्रोल और डीजल की कीमतें और बढ़ने के अनुमान हैं। इसकी वजह कच्चे तेल के दामों में बढोतरी होगी। कच्चे तेल के दामों में वृद्धि होना इसलिए तय है, क्योंकि सऊदी अरब और यूएई में तेल के उत्पादन को लेकर के विवाद हो गया है। दरअसल, ओपेक+ तेल के उत्पादन पर नियंत्रण पाना चाहता है, इस पर यूएई विरोध कर रहा है।
ओपेक+ क्या है?
ओपेक प्लस तेल उत्पादक देशों का एक संगठन है जिसमें इराक, कुवैत, सऊदी अरब, वेनेजुएला, अजरबैजान, बहरीन, ब्रुनेई, कजाकिस्तान, मलेशिया, मैक्सिको, ओमान, रूस, दक्षिण सूडान और सूडान आते हैं।
उल्लेखनीय है कि क्रूड ऑयल अक्तूबर 2018 के बाद पहली बार 77 डॉलर के पार निकला है। उत्पादन बढ़ाने पर ओपेक+ की बात नहीं बनी। इसके साथ ही अगली बैठक की तारीख अभी तय नहीं हुई है। दरअसल, ओपेक+ के सदस्य सऊदी अरब और रूस अगस्त से वर्ष के अंत तक प्रतिदिन 4,00,000 बैरल तेल उत्पादन बढ़ाने के पक्ष में हैं। यूएई अभी तक इस प्रस्ताव पर सहमत नहीं हुआ है।
अंतरराष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी (IEA) के मुताबिक, अगर तेल उत्पादन और आपूर्ति का स्तर बढ़ती वैश्विक मांग के अनुरूप नहीं बढ़ा, तो इससे कच्चे तेल की कीमत 100 डॉलर प्रति बैरल तक पहुंच सकती है।
कच्चे तेल की कीमतों के लेकर भारत ने हाल ही में ओपेक+ से कहा था कि कच्चे तेल का मौजूदा मूल्य काफी चुनौतीपूर्ण है। दरों को थोड़ा नीचे लाने की जरूरत है, तेल निर्यातक देशों के संगठन (ओपेक) की बैठक से पहले भारत ने कहा कि कहीं ऐसा न हो कि तेल की ऊंची कीमत का असर वैश्विक अर्थव्यवस्था में जो उपभोग आधारित पुनरुद्धार की प्रक्रिया शुरू हुई है, उस पर पड़ने लगे।
भारत के पेट्रोलियम मंत्री धर्मेंद्र प्रधान ने कहा था कि भारत तेल के दामों को लेकर संवेदनशील बाजार है, ऐसे भारत जहां कहीं भी प्रतिस्पर्धी दर होगी, वहां से तेल खरीदेगा।